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Wednesday, 24 January 2024

ऐसा भी प्रधानमंत्री

छी: , कहीं ऐसा भी प्रधानमंत्री होता है, जो बंगाल की राजधानी कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में स्वयं द्वारा आयोजित  "पराक्रम दिवस" पर राज्य की महिला मुख्यमंत्री के साथ अपने गुंडों को फूहड़ और अमर्यादित टिप्पणी करने के लिए उकसाने में शर्म का अनुभव नहीं करता।

                दिल्ली में किसान आंदोलन से पूरी दुनिया में अपनी किरकिरी करा चुका प्रधानमंत्री विवश होकर २६ जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों को " ट्रैक्टर परेड " आयोजित करने की अनुमति तो देता है, पर सभी पेट्रोल पंपों को किसानों के ट्रैक्टर में डीजल देने से मनाही भी कर देता है। यह तो वही हुआ कि किसी प्यासे को पानी तो दे, पर पीने की मनाही कर दे। क्या कोई आदमी इतना भी क्रुर हो सकता है ?

जो सारे देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर कहता हो कि राष्ट्र का विकास हो रहा है, उससे बड़ा शैतान भी कोई हो सकता है क्या ?

          पूरे देश की सारी संपत्ति, संपदा, और प्राकृतिक संसाधनों, आवागमन के सभी साधनों, सारे सरकारी उद्योगों और लोक उपक्रमों, कल-कारखानों, कंपनियों और निगमों, बंदरगाहों, हाईवे , शिक्षण संस्थाओं और अस्पतालों को पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों में कौड़ियों के मोल जो बेच रहा हो, क्या ऐसा  प्रधानमंत्री राष्ट्रभक्त भी हो सकता है ?

               जो सभी सार्वजनिक मंचों से सभाओं में ( चुनावी रैली, चुनावी सभा, संसद, वैज्ञानिकों की सभा, शिक्षण संस्थाओं और अन्य जनसभाओं में) अनर्गल, अमर्यादित, बे-सिर-पैर की, सांप्रदायिक और चेतावनी भरे लहजे में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करता हो, क्या ऐसा भी सनकी प्रधानमंत्री आजतक किसी ने देखा है ?

              क्या किसी ने ऐसी कल्पना भी की होगी कि किसी देश का प्रधानमंत्री बलात्कारियों को सम्मानित करे, आतंकियों को संसद का सदस्य बनाए , गुंडों और हत्यारों से दंगा और नरसंहार करवाए, किसानों-मजदूरों और नवजवानों को गुलाम बनाने के लिए कृत-संकल्पित हो, और भक्त उसे धर्मरक्षक और राष्ट्र नायक जैसे शब्दों से विभूषित करे ? इस मामले में भी हमारे प्रधानमंत्री दुनिया में अव्वल हैं।

             जिस देश की तीन-चौथाई आबादी भूखमरी, गरीबी, लाचारी, गृहविहीन और जलालत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो, उस देश का प्रधानमंत्री दसलखिया सूट पहने, लाखों का चश्मा और जूते पहने,  कलम और घड़ी रखे, हजामत बनाने वाला स्पेन का और केश-सज्जा करने वाला इटली का हो,  लाख रुपए किलो वाली मशरूम की सब्जी और काजू की रोटी खाए, विदेश यात्रा पर ४००० करोड़ रुपए फूंक दिया हो, प्रतिवर्ष स्वयं के विज्ञापन पर हजारों करोड़ रुपए खर्च करता हो, बारह एकड़ में बने महल में रहता हो, और जिसकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर प्रतिवर्ष ६००० करोड़ रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा हो, वह अपने को गरीब का बेटा और चाय बेचने वाला कहकर अपने शाही खर्चे का औचित्य सिद्ध करता हो, क्या उसे असंवेदनशील और परपीड़क सुखवादी मानसिकता का प्रधानमंत्री कहना गलत होगा ?

जिसके कार्यकाल में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष एवं दूसरे देशों और वित्तीय संस्थाओं से सबसे अधिक कर्ज लिया गया हो, और सूद की राशि राष्ट्रीय बजट का ३० प्रतिशत हो गया हो, विदेश व्यापार में लगातार घाटा ही घाटा हो रहा हो, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का विकास दर - ३० तक पहुंच गया हो, और जो इस राष्ट्रीय विध्वंस को ही राष्ट्रीय विकास का भ्रम पाले हुए हो, उस देश बेचवा प्रधानमंत्री के लिए देशवासियों के दिलों से आह न निकलेगी, तो और क्या होगा ?

              देश के पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की तिजोरी भरने के लिए भारत के बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम (किसानों-मजदूरों और नवजवानों के साथ ही दलित, शोषित, पिछड़े, अतिपिछड़े, जनजातीय समुदाय और अल्पसंख्यकों ) का हासियाकरण और विस्थापन करने वाला अकेला प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ही हैं। इस विशाल आबादी को सारे संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं से वंचित कर उन्हें गुलाम बनाने के लिए प्रतिबद्ध प्रधानमंत्री को क्या कहा जाए ? ऐसे दायित्वबोध से परे, असंवेदनशील, अमानवीय और परपीड़क प्रधानमंत्री की कल्पना भी कोई कैसे कर सकता है ?

               लाकडाउन के दौरान लाखों मजदूरों को जेठ की तपती धूप में तारकोल की सड़कों पर बिना किसी सवारी के नंगे पैर हजार किलोमीटर तक चलने के लिए मजबूर करने वाले प्रधानमंत्री को क्या इंसान कहा जा सकता है ?  रास्ते में छांव, भोजन, पानी और दूसरे ज़रूरीयात चीजों की आपूर्ति की बात तो छोड़िए ही, उन्हें रास्ते में पुलिस और गुंडों से पिटवाया गया, जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत तक हो गई। लेकिन, नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनकी नजरों में ये मजदूर इंसान नहीं, कीड़े-मकोड़े थे, जिनका जीना और मरना कोई महत्व नहीं रखता । क्या ऐसा ही होता है गरीब का चाय बेचने वाला बेटा ?

               सरकार की जनविरोधी नीतियों, निर्णयों और कार्ययोजनाओं का विरोध करने वाले, उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले,प्रश्न करने वाले, आलोचना करने वाले, आंदोलन और जनसंघर्ष करने वाले साहित्यकारों, कवियों, कलाकारों,पत्रकारों,  विचारकों, सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ताओं,मानवाधिकारवादियों, धर्मनिरपेक्षतावादियों और बुद्धिजीवियों को या तो मौत के घाट उतार दिया गया, या फिर बिना किसी सबूत के जेल के सीखचों के पीछे तिल-तिल कर मरने के लिए छोड़ दिया गया। इसी तरह देश के विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों ( जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, यादवपुर विश्वविद्यालय आदि) में छात्र-छात्राओं को सबक सीखाने और सरकार विरोधी प्रदर्शन करने और नारे लगाने के जुर्म में पुलिस और संघी गुंडों से पिटवाया गया, गायब करवा दिया गया, या फिर जेल में डलवा दिया गया। आखिर शिक्षण संस्थाओं और अस्पतालों को भी पूंजीपतियों के हाथों बेचने वाले प्रधानमंत्री को क्या कहा जाए ? ऐसे व्यक्ति को सिर्फ   "मानसिक रोगी " ही कहा जा सकता है।

              क्या इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर हम भारतीय यह शपथ नहीं ले सकते हैं कि भारत के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए ऐसे क्रुर, अहंकारी, राष्ट्रद्रोही, मानसिक दिवालिया और फासीवादी प्रधानमंत्री को जितनी जल्दी हो सके, हटाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दें।

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