अपने समय के एक पेशेवर कम्युनिस्ट क्रांतिकारी के जीवन की त्रासदी!
कामरेड धनंजय सिंह नहीं रहे। उनकी मृत्यु के बाद या तो किसी ने कुछ नहीं लिखा या फिर उनके अंतिम समय के उनके त्रासदपूर्ण जीवन पर पुराने सहयोगी के रूप में अपना क्षोभ मात्र व्यक्त किया। धनंजय सिंह के त्रासद पूर्ण जीवन से आने वाली पीढियां कई सबक ले सकती है। सामाजिक जीवन में रहने वाले किसी व्यक्ति के योगदान और उसकी कमियों के बारे में साफ़-साफ़ लिखा जाना चाहिए, ताकि क्रांतिकारी संघर्ष में लगे या कभी रहे किसी व्यक्ति का सही मूल्यांकन हो सके। एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में कई बुजुर्ग साथियों के साथ काम करने का हमारा अनुभव है ,लेकिन बी एस ए की जिस पीढ़ी का मैं हूं,उस समय वे बीएस ए का हिस्सा नहीं थे। इसलिए उनके बारे में संयुक्त मोर्चा तथा दूसरे साथियों से उनके व्यवहार के बारे में मिली जानकारी ही उनके मूल्यांकन का आधार है।
संक्षेप में उनके बारे में बताने की कोशिश कर रहा हूं।
कामरेड धनंजय सिंह बलदेव झा, अरविंद सिन्हा तथा बी एन शर्मा के साथ मिलकर 1972 में बी एस ए की स्थापना की थी। 1975 में संगठन में राजनीतिक तथा सांगठनिक मतभेदों के कारण धनंजय सिंह बी एस ए से अलग हो गए थे। 1979 से साइंस कॉलेज के युवा छात्र सतीश कुमार के नेतृत्व में बी एस ए से अलग होकर उनके साथ स्टडी सर्किल चलाने लगे थे। उनकी इस कोशिश से कई युवाओं को मार्क्सवाद लेनिनवाद तथा अन्य क्लासिक पढ़ने की दिशा तथा उत्साह मिला। लेकिन बाद में व्यवहार में जाने से रोके जाने के कारण इन युवा साथियों का उनसे तीव्र अंतरविरोध शुरू हो गया। सांगठनिक जीवन में नियम कानून के प्रतिशत सख्त कामरेड धनंजय सिंह पारिवारिक जीवन में कई बार ब्राह्मणवादी विचारधारा के सामने आत्म समर्पण करते रहे उनका अंतिम संस्कार भी आत्म समर्पण से बनी पारिवारिक परंपरा के कारण ब्राह्मणवादी रीति रिवाज के साथ हुआ, जिसे लेकर के क्रांतिकारी जमात में क्षोभ है।
1996 में बिहार में क्रांतिकारी तथा जनवादी संगठनों के संयुक्त मोर्चा के गठन के बाद कामरेड धनंजय सिंह भी बाद के दिनों में सीपीआई (एमएल) जनसंवाद के नाम से बिहार में संयुक्त मोर्चा में कभी-कभी भाग ले लिया करते थे। 2011 के बाद उनके कुछ बचे पुराने साथी उनकी निष्क्रियता के सैद्धांतिक लाइन से क्षुब्ध होकर उनसे अलग हो गए। इसके बाद वह पूरी तरह अपने परिवार के साथ रहने लगे थे।
साथी धनंजय सिंह अपने समय के प्रतिभा संपन्न नेतृत्व के लिए जाने जाते रहे हैं। क्रांतिकारी आंदोलन में न पढ़ने की एडवेंचर की जगह युवा साथियों को उन्होंने पढ़ने लिखने की सलाह दी। लेकिन उनके नेतृत्व की सबसे भारी कमी यह रही कि जो भी उत्साही युवा साथी उनके साथ जुड़े, उन्हें व्यवहार तथा आंदोलन में जाने, मेहनतकशों या छात्रों को संगठित कर संघर्ष में जाने से प्रत्यक्षतः उन्होंने रोका। इसके कारण 1995 के बाद लगभग सभी युवा साथीयों ने उनसे दूरी बना ली।
अपने शुरुआती दिनों में जन संघर्ष को आगे बढ़ाने वाले साथी धनंजय सिंह ने बाद के दिनों में जन आंदोलन तथा जन संगठन के व्यावहारिक कार्य से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया। अपने समकालीनों से उनका कोई राजनीतिक संबंध नहीं रह गया था। सीपीआई(एमएल) जनसंवाद के नाम से अपना संगठन चलाने वाले कामरेड का लगभग सभी समकालीन कार्यकर्ताओं से संवाद अवरुद्ध हो चुका था।
-- नरेंद्र कुमार
कम्युनिस्ट राजनीतिक कार्यकर्ता
1979 के आंतरिक टूट के बाद बी एस ए (बिहार स्टूडेंट्स एसोसिएशन) की एक धारा का 1981 से 1984 तक महासचिव
https://www.facebook.com/share/p/187kVuvXPd/
Manoj Kumar Jha
सतही और अपूर्ण, उनके जीवन के एक बड़े भाग में किए गए अच्छा खासा योगदान पर मौन साध लिया गया है।
Narendra Kumar
Manoj Kumar Jha मैं ने कुछ भी मौन नहीं साधा है !
आप इन पंक्तियों को देख नहीं पा रहे हैं , " उनकी इस कोशिश से कई युवाओं को मार्क्सवाद लेनिनवाद तथा अन्य क्लासिक पढ़ने की दिशा तथा उत्साह मिला।"
यदि आप मेरी अपेक्षा इससे भी उनका बड़ा योगदान मानते हैं, तो उन पर आपको लिखना चाहिए न कि सिर्फ क्षोभ व्यक्त कर मामले को उलझा देना चाहिए!
जब मैं बीएसए से जुड़ा था, तो मैंने पाया कि बी एस ए संगठन की टूट में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मैं उसपर लिखा सकता हूं लेकिन यहां मैं चुप रहा! उस टूट की पीड़ा को एक नये उत्साही युवक के रूप में झेला हूं! टूट की पीड़ा आप समझ सकते हैं!
उसके बाद उनसे जो लोग जुड़े थे, उसमें आप भी थे। ,फिर हमसे यह उम्मीद क्यों कर रहे हैं कि मैं उनके उसे स्वर्णिम काल के बारे में लिखूं ? उसके बारे में तो आप जैसे लोगों को, जिसने उनकी उस प्रतिभा और कार्य प्रणाली से सीखा है, वही लिख सकता है। हमारी आलोचना के बजाय बेहतर होगा कि उनके सकारात्मक पक्ष पर आप विस्तार से लिखिए।
मुझे तो उनसे सिखने के लिए कुछ भी नहीं मिला! या यह मिला कि जन संगठन तथा जन संघर्ष में जुटे रहना सबसे आवश्यक है, जबकि मैं पढ़ते लिखते भी रहा हूं!
Narendra Kumar
Manoj Kumar Jha मैं ने कुछ भी मौन नहीं साधा है !
आप इन पंक्तियों को देख नहीं पा रहे हैं , " उनकी इस कोशिश से कई युवाओं को मार्क्सवाद लेनिनवाद तथा अन्य क्लासिक पढ़ने की दिशा तथा उत्साह मिला।"
यदि आप मेरी अपेक्षा इससे भी उनका बड़ा योगदान मानते हैं, तो उन पर आपको लिखना चाहिए न कि सिर्फ क्षोभ व्यक्त कर मामले को उलझा देना चाहिए!
जब मैं बीएसए से जुड़ा था, तो मैंने पाया कि बी एस ए संगठन की टूट में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मैं उसपर लिखा सकता हूं लेकिन यहां मैं चुप रहा! उस टूट की पीड़ा को एक नये उत्साही युवक के रूप में झेला हूं! टूट की पीड़ा आप समझ सकते हैं!
उसके बाद उनसे जो लोग जुड़े थे, उसमें आप भी थे। ,फिर हमसे यह उम्मीद क्यों कर रहे हैं कि मैं उनके उसे स्वर्णिम काल के बारे में लिखूं ? उसके बारे में तो आप जैसे लोगों को, जिसने उनकी उस प्रतिभा और कार्य प्रणाली से सीखा है, वही लिख सकता है। हमारी आलोचना के बजाय बेहतर होगा कि उनके सकारात्मक पक्ष पर आप विस्तार से लिखिए।
मुझे तो उनसे सिखने के लिए कुछ भी नहीं मिला! या यह मिला कि जन संगठन तथा जन संघर्ष में जुटे रहना सबसे आवश्यक है, जबकि मैं पढ़ते लिखते भी रहा हूं!
MK Azad उनके करीबी लोग पहले ही खुल कर लिख चुके है, आपको पहले भी लिंक भेजा था, फिर से दे रहा हूँ:
https://www.facebook.com/share/p/1FNLabVVBa/
By Parth Sarkar
Red Salute to Comrade Dhananjay Singh!
कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (सी.सी.आई.) कॉमरेड धनंजय सिंह की स्मृति में अपने झंडे को झुकाता है, जिनका 13 अप्रैल, 2025 को निधन हो गया। कॉमरेड धनंजय सिंह बिहार के क्रांतिकारी छात्र आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वे बिहार स्टूडेंट्स एशोसियेशन (बी.एस.ए.) के नेता थे, जिसको क्रांतिकारी आंदोलन के लिए कई पेशेवर क्रांतिकारी देने का श्रेय मिलता है। उन्होंने किसान जनता और मजदूर वर्ग के कई आंदोलनों और संघर्षों का नेतृत्व किया।
हालांकि वे जयप्रकाश नारायण की आलोचना करते थे, फिर भी उन्होंने 1974 के बिहार आंदोलन में भाग लिया और सत्ता के खिलाफ रोहतास जिले में छात्रों और युवाओं के स्वतंत्र जनसंघर्षों का संचालन किया। जब अधिकांश क्रांतिकारी नेतृत्व मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा को नजरअंदाज़ कर रहा था और क्रांतिकारी आंदोलन में इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था, तब उन्होंने इसकी अहमियत पर ज़ोर दिया।
बाद में उन्होंने सीपीआई (एमएल), जनसंवाद के बैनर तले कार्य किया। हम उनकी कमियों से सीखते हुए भी उनके योगदान को उच्च सम्मान का स्थान देते हैं। उनके कई विचलनों और हमारे बीच उत्पन्न मतभेदों के बावजूद, हम अपने नेतृत्व की विरासत को उनके योगदान से जोड़ते हैं।
The Communist Centre of India dips its flag in memory of Comrade Dhananjay Singh, who passed away on April 13, 2025. Com. Dhananjay Singh was one of the leaders of the revolutionary students movement of Bihar. He was a leader of the Bihar Students Association which is credited with supplying the revolutionary movement with many professional revolutionaries. He led many agitations and movements of the peasant masses and the working class. Although critical of Jayprakash Narayan he participated in the 1974 agitation in Bihar and independently conducted mass struggles of students and youth in Rohtas district against the establishment. He stressed the importance of Marxist-Leninist theory at a time when it was neglected by most leaders in the revolutionary movement and was not taken seriously by the revolutionary movement as a whole. Later he worked under the banner of CPI (ML), Jansanwaad. We hold his contributions in high regard even while learning from his shortcomings. Despite his many deviations and consequent differences between us, we trace our legacy to his leadership.
https://www.facebook.com/share/p/1BrymbqTcN/
Dipon Mitra
আমার প্রয়াত অগ্রজ, প্রিয় বন্ধু, শিক্ষক ধনঞ্জয় সিং-এর প্রতি
কৈমুর পাহাড়তলে ছিল ছোট গ্রাম
বহুদূর বহুদূর থেকে আজ জানাই প্রণাম
সাশারাম স্টেশনের থেকে মেঠো গ্রাম্যপথে নেমে
বহু বহু পথ হেঁটে গোধূলির হাটে গেল থেমে
গোপন সঙ্ঘের শিক্ষাপ্রার্থীদের শেষ সঙ্ঘারামে
আমাদের যাত্রাপথ শেষ হলো অব্যর্থ মোকামে
তুমিই শিক্ষক ছিলে, প্রিয়তম বন্ধু ছিলে তুমি
বিশাল হৃদয় ছিল সমুদ্রের - ভূমা, তুমি ভূমি
নৈরাজ্য-প্রণীত এই পৃথিবী নামক ছোট বাজারের চাবি
দিয়েছিলে আমাদের হাতে তুলে – করেছিলে দাবি
নরকের দরজা খোলো – আখ পেষা মেশিনের মতো
কোটি কোটি শ্রমীদের জ্যান্ত পিষে লক্ষ কোটি যত
উঠেছে প্রাসাদ, ব্রিজ, তৈরি হয় বিমান, রকেট
সোনার পণ্যের স্তুপে ঢাকা পড়ে অযুত নিরন্ন শিশু পেট
সে ভীষণ হত্যাযজ্ঞে পুড়িয়েছ আমাদের হৃদয় ও প্রাণ
হত্যাকারীদের তাই ললিত উৎসব থেকে বাঁচাই আপ্রাণ
নিজেকে, নিজের কৃষ্টি, নিজের আনন্দ, দুঃখ, ক্ষত
তুমি দিয়েছিলে প্রিয়, এ আত্মসম্মানবোধ, শিক্ষা অবিরত
সহসাই চলে গেলে আমার অগ্রজ, বন্ধু, আমার শিক্ষক
সঙ্গেই থাকবে তুমি, যুদ্ধরত, ধ্বংস হবে জ্বলন্ত নরক
Oh my late elder, dear friend, teacher Dhananjay Singh
There was a small village at the foot of Kaimur hills
Today I bow down from far, far away
From Sasharam station, I walked down the rural road
After walking for many miles, we stopped at the twilight market
At the last monastery of the secret cohort’s educational seekers
Our journey ended reaching unfailingly to our destination
You were the teacher, you were the dearest friend,
you had a huge heart like the ocean – you the all-pervading, the earth
you gave us the keys to this small market called the world
Made out of chaos and the key held it in our hands - you demanded
Open the gates of hell - like a sugarcane crushing machine
Crushing the lives of millions of workers
Through the lives of millions of workers
Palaces, bridges, planes, rockets are built
The piles of gold products, hide from the view
the stomachs of thousands of innocent children
You tempered our hearts and lives through those terrible massacre
So I try to save myself from the beautiful festivals of the murderers
I protect myself, my culture, my joy, sorrow, wounds
You gave me, my dear, this sense of self-respect, unremitting schooling
If suddenly you, my elder, my friend, my teacher leave me,
You will be with me, fighting, may the burning hell is destroyed.
इसके अलावे लोकपक्ष पत्रिका में भी उनके बारे में लेख और कविता(अंग्रेजी) में आई है।
Narendra Kumar Mk Azad सीसी आई ने ही सिर्फ मूल्यांकन किया है। बाकी कविता केरूप में भावनात्मक आदरांजलि है।
MK Azad Narendra Kumar I agree with CCI evaluation. And at the moment, I have nothing to add because I do not have his organisation(PPC)'s document on socialist revolution , the stand he took perhaps during 1975-79 negating semi-feudal semi-colonial characterisation of India. Also other documents like the working class on Participative Management.
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*मेरे शिक्षक, मेरे मित्र –कॉमरेड धनंजय को समर्पित*
कौमुर की ढलानों के नीचे
एक गाँव था – धूल, पसीने और सपनों से बना,
जहाँ से निकलते थे पगडंडी,
पर सिर्फ़ पढ़ने नहीं, लड़ने की राह में।
तुम थे—
हमारे बीच से उठे हुए,
ना किसी कुर्सी पर बैठे,
बल्कि गन्ने के खेत में,
मशीन के नीचे पिसते मज़दूर के साथ।
तुमने हमें दिया
एक दुनिया की चाबी—
जिसे लूट के बाजार ने बंद कर रखा था,
और कहा: खोलो नरक के दरवाज़े,
जिससे निकल सके
हमारा आत्मसम्मान,
हमारी भूख,
हमारा इतिहास।
आज तुम नहीं हो—
पर तुम्हारी बात
हर फैक्ट्री की दीवार पर गूंज रही है,
हर जले हुए खेत में सांस ले रही है।
तुम चले गए,
पर तुम्हारा होना
हमारी लड़ाई में ज़िंदा रहेगा—
जब तक ये जलता नरक
राख नहीं बन जाता।
*एम के आज़ाद*
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