ताल्लुक जब साँसें गिनने लगे,
तो मोहब्बत की मजार पर खामोशी चढ़ाओ।
न ताज़ा करो उस दर्द की मिट्टी,
न बीती बातों को बार-बार जगाओ।
जिस रिश्ते में अब न रूह बची हो,
उसे लाश की तरह सजाना क्यों?
जिस दिल ने धड़कना छोड़ दिया हो,
उसे यादों से दबाना क्यों?
दफ़न करो उस ताल्लुक को,
जिसमें अब चाहत की रौशनी नहीं।
क्योंकि जनाज़ा घर में रहे तो
महक नहीं, सड़न ही बचती है कहीं।
देर तक रखोगे तो आँसू भी सूख जाएंगे,
लोग भी पूछेंगे — "अब तक क्यों रखा है?"
तो बेहतर है वक्त रहते दफ़न करना,
क्योंकि मरा हुआ रिश्ता भी
इज़्ज़त चाहता है।
ताल्लुक खत्म हो जाये तो उसे दफ़न करो,
क्योंकि जनाज़ा देर तक घर में नहीं रखा जाता...!!
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