Total Pageviews

Wednesday, 14 February 2024

डार्विनवाद और अवतारवादी मायाजाल ++++++++++++++++++++

डार्विनवाद और अवतारवादी मायाजाल
++++++++++++++++++++

चार्ल्स डार्विन का आज जन्मदिन है. 

डार्विन ने इंसानियत को एक वैज्ञानिक समझ देने की दिशा में जो योगदान दिया है वह अद्वितीय है. 

डार्विन ने जिस तरह से दर्शन और धर्म दर्शन को एक करारा धक्का दिया उससे यूरोप में एक नया युग शुरू हुआ. ऐसे अन्य वैज्ञानिक या विचारक बहुत ही कम हैं जिनकी तुलना डार्विन से की जा सके. न्यूटन, गेलिलियो, रदरफोर्ड या आइन्स्टीन जैसे वैज्ञानिकों ने जिस तरह से मनुष्यता को प्रभावित किया है उनकी तुलना में भी डार्विन का योगदान मौलिक रूप से भिन्न और गहरा है. 

भौतिकी, गणित, खगोल, रसायन, चिकित्सा या भेषज इत्यादि में जो भी नयी प्रस्तावनाएँ आयीं उनसे तकनीक को पैदा करने में बहुत मदद मिली है. लेकिन डार्विन की खोज ने जीव विज्ञान में जिस गुत्थी को सुलझाया है उससे दर्शन और धर्म दर्शन को बड़ा धक्का लगा है और उसी के परिणाम में एक नया वैचारिक युग शुरू हुआ है. 

मार्क्स और एंगेल्स अपनी स्थापनाओं के लिए जिस वैज्ञानिक प्रष्ठभूमि और प्रमाण को खोज रहे थे वह डार्विन ने उन्हें उपलब्ध करा दी. 

मार्क्स और मार्क्सवादियों ने डार्विन की खोज को बहुत मूल्य दिया है और एक ठोस जीव वैज्ञानिक खोज को दर्शन और विश्वव्यवस्था बदलने के लिए इस्तेमाल किया है. 

यूरोप में डार्विनवाद ने बहुत कुछ बदल दिया और फिर यूरोप ने एशिया को बदला. इस तरह एशिया और शेष गैर यूरोपीय जगत ने उपनिवेशों के रूप में डार्विन को समझना शुरू किया. 

दक्षिण एशिया में भी डार्विन का विरोध हुआ और डिवाइन क्रियेशन ( जगत की रचना ईश्वर ने की) की थ्योरी पर आधारित धर्मसत्ता और राजसत्ता ने इसका खूब विरोध किया.

लेकिन बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि सनातनी वेदान्तिक बाबाओं ने डार्विन को भी चबाकर निगलने की भरसक कोशिश की है. 

न केवल बुद्ध या कबीर का यहाँ ब्राह्मणीकरण हुआ है, बल्कि डार्विन के सिद्धांत को भी वेद वेदान्त और पुराणों में दिखाने का प्रयास हुआ है. 

आजादी के पहले भारत में नियो वेदान्त और नियो हिन्दुइज्म के जनक स्वामी विवेकानन्द और थियोसोफिकल सोसाइटी ने भारतीय पुराणों में बतलाये गये अवतार और अवतारों के क्रम को डार्विन के क्रम विकास (एवोल्यूशन) की भारतीय खोज की तरह प्रचारित किया. 

उन्होंने यह प्रचारित किया कि मत्स्यावतार से लेकर कल्कि अवतार तक की भारतीय पौराणिक मान्यता, असल में डार्विन के क्रमविकास की तरह का कोई प्राचीन भारतीय सिद्धांत है. 

इस बात को एक अन्य भारतीय नियो वेदान्तिक बाबा – अरबिंदो घोष ने दोहराया. 

बाद में एक अन्य वेदांती ओशो रजनीश ने भी इसी बात को कई जगह दोहराया है और आजकल जग्गी वासुदेव भी इसी भाषा में अवतारवाद को डार्विनवाद से प्राचीन और एवोल्यूशन की भारतीय थ्योरी के रूप में दिखाने का प्रयास करते हैं. 

इस प्रचार को गंभीरता से नहीं लिया गया है. 

यह आश्चर्यजनक बात है. पूरे यूरोप को हिलाकर रख देने वाले डार्विनवाद को भारतीय वेदान्तिक अवतारवाद ने जिस तरह से निगलने का प्रयास किया है, वह कोई छोटी मोटी बात नहीं है. 

इस केस स्टडी को कभी उसके तार्किक विस्तार में सामने नहीं लाया गया. 

अरबिंदो घोष ने फ्रेडरिक नीत्शे की "विल टू पावर", "सुपरमेन" और डार्विन के "एवोल्यूशन" की खिचड़ी बनाकर जिस "अतिमानस" का सिद्धांत दिया वह हालाँकि ज्यादा टिक न सका, लेकिन वेदान्तिक पाखण्ड किस तरह ज्ञान की राजनीति को राजनीति के ज्ञान से चलाता है- इसकी यह बहुत अच्छी केस स्टडी तैयार कर दी. 

आज भी अरबिंदो घोष के अतिमानस को नजदीक से देखें तो उसमे नीत्शे और डार्विन साफ़ नजर आते हैं. 

लेकिन विवेकानन्द, थियोसोफी, अरबिंदो, ओशो या जग्गी वासुदेव जिस तरह डार्विनवाद को अवतारवाद में प्रक्षेपित करते हैं उसका गहरा अर्थ समझा जाना चाहिए. 

गौतम बुद्ध और कबीर की क्रान्ति को जैसे उन्हें अवतारवाद और ब्राह्मणवाद में दबाकर खत्म किया गया उसी तरह का खेल डार्विन के साथ भी खेला गया है.

 हालाँकि यह बात अलग है कि भारत सहित शेष दक्षिण एशिया इतना आलसी और अनपढ़ निकला कि उस पर डार्विन का वैसा असर नहीं हुआ, जैसा यूरोप में हुआ. 

एक अन्य कारण उपनिवेशी दासता की भी है. 

खैर, इस सबके बावजूद नियो वेदान्त या नियो हिन्दुइज्म ने डार्विन के क्रमविकासवाद को अवतारवाद में प्रक्षेपित करने का अपना इन्तेजाम कर लिया था ताकि भारत में डार्विनवाद और मार्क्सवाद की आग को घुसने से रोका जा सके. 

लेकिन क्या हम इस बात को दुबारा सामने लाकर भारत की सनातन वेदान्तिक षड्यंत्र बुद्धि को बेनकाब कर सकते हैं? 

डार्विन ही नहीं आइन्स्टीन की सापेक्षिकता और नील्स बोर के क्वांटम फिजिक्स को भी आजकल वेद वेदान्त में दिखाया जा रहा है. 

ब्लेक होल, बिग बैंग और क्वांटम इंटेगल्मेंट सहित टेलीपोर्टेशन को भी रहस्यवाद में जाने किन किन व्याख्याओं में घुमा फिराकर घुसेड़ा जा रहा है. 

एक अन्य वेदांती बाबा दीपक चोपड़ा तो खुले आम क्वांटम हीलिंग करते ही हैं और इसके लिए रिचर्ड डाकिंस ने उनकी खूब खिंचाई भी की है लेकिन फिर भी यह सब बंद नहीं होता. 

यह सब जानना क्यों जरुरी है? 

इसलिए कि इस सबसे हम यह जान सकेंगे कि भारत असल में वेदान्तिक षड्यंत्रों में इतनी बुरी तरह से फंसाया गया है कि दुनिया का कोई भी विचार हो, कितनी भी क्रांतिकारी प्रस्तावना क्यों न हो, उसे भारतीय बाबा किसी न किसी तरह बर्बाद करना जान गये हैं. 

इसलिए बहुत गौर से देखा जाए तो भारत की गहनतम समस्या वेदान्त ही है. 

अवतारवाद और आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म के अन्य अंधविश्वास इसी जहरीले क़ुवें से निकलते हैं.

डार्विनवाद को अवतारवाद द्वारा निगलने की इस असफल योजना को चर्चा में लाना जरुरी है. 

कम से कम इस देश के शोषितों/निर्बल तबके  को इसपर ध्यान देना चाहिए ताकि वे यूरोपीय पुनर्जागरण के प्रकाश को भारत तक न पहुँचने देने के वेदान्तिक षड्यंत्रों को समझ सकें.

Courtesy: 
DrSanjay Jothe

No comments:

Post a Comment