*#किसानआंदोलन #जोरम*
"जोरम" नाम से मनोज वाजपेई अभिनीत फिल्म आई है।
कल जब नेट बंद था तो मोबाइल में डाउनलोड की हुई "जोरम" देखने लगा, ये महसूस करते हुए की सड़को पर पंजाब के किसान सरकार से लोहा ले रहे है।
झारखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर सरकारों ने कितना जुल्म किया है। हजारों सालों से जंगलों में अपने परिवार, रीति रिवाजों के साथ सुखम्य जिंदगी जी रहे आदिवासियों को इसलिए जंगलों से खदेड़ा दिया गया की इन जंगलों की धरती में कोयला था।। जिसे सरकारों ने पूंजीपतियों को दे दिया और उनके लिए जंगल खाली करवाने थे।।
जंगलों को जब खोदा जाता है तो इस आदिवासी ही नही मारे जाते, हजारों पेड़, नदियां, पंक्षी, जानवर भी मारे जाते है।
प्रकृति को मारना ईश्वर को ही मारना है,, भगवान पत्थरों के मकान में रखी मूर्ति का नही प्रकृति का ही नाम है जो जीवन चलाती है।
जब आदिवासियों को खदेड़ा गया तो बहुत सारे आदिवासी जिन्होंने कभी शहर भी नही देखे थे वे मुबई आकर मजदूरी करने लगे धारावी जैसे सल्म एरिया में कीड़े मकोड़ों की तरह सड़ने लगे, आप सोचिए जिन्होंने जंगल की खुली आबोहवा में जीवन जिया ही उनके लिए धारावी किसी नरक से कम नहीं होगी।
जो आदिवासी जंगल छोड़ने को तैयार नहीं थे उनके परिवारों को सुरक्षा बलो ने गोलियों से भून दिया,, जिन्होंने प्रतिशोद में बंदूके उठा ली उन्हे माओवादी घोषित कर दिया गया और ढूंढ ढूंढ कर, एक एक का एनकाउंटर कर जंगल आदिवासी मुक्त कर दिया।
दिल्ली किसान आंदोलन में शामिल किसान आदिवासी नही है इसलिए डटकर खड़े है सरकारों से लोहा ले रहे है, अगर आदिवासी होते तो अब तक मार दिए गए होते और देश को खबर भी नहीं लगती।।
जो किसान मोदी के भक्त बने बैठे है उन्हे "जोरम" देखनी चाहिए,,
जब किसी किसान, आदिवासी से उसकी जमीन छीनने की साजिश रची जाए तो वो कितना भयानक होता है।
अहिंसक आंदोलन तभी तक लड़े जाते है जब तक सरकार दमन की सीमाएं न लांघे,, बंदूक की नोक पर जीवन, रोजी छीनने का प्रयास जब होता है तो किसान माओवादी ही बनते है। वो मौत से पहले स्वाभिमान बचाने की अंतिम लड़ाई होती ही।
*कॉ पृथ्वीराज बुडानिया*
No comments:
Post a Comment