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Friday, 5 May 2023

मार्क्स और अपने जीवन को याद करते हुए (Reminiscences of Marx and Engels)

"1852 में ईस्टर के मौक़े पर, हमारी छोटी बच्ची, फ्रेंज़िस्का को खांसी हुई. तीन दिन तक, वह ज़िन्दगी और मौत के बीच झूलती रही. उसकी हालत बिकट रूप से बिगड़ती गई और उसकी मौत हो गई. हमने अपनी प्यारी बच्ची की मृत देह को, पिछले कमरे में फर्श पर रखा और बाहर के कमरे में जाकर, फ़र्श पर बिस्तर बिछा लिए. हमारे तीनों बच्चे, हमारे सामने लेटे हुए थे और तीनों, अपनी छोटी बहन को याद कर, बुरी तरह बिलख रहे थे, जिसका मासूम बेजान शारीर, साथ के कमरे में फर्श पर पड़ा था. हमारी लाड़ली बेटी की मौत उस वक़्त हुई थी, जब हमारी आर्थिक हालत बहुत ही ख़राब थी. हमारे जर्मन दोस्त भी, उस वक़्त हमारी मदद करने की स्थिति में नहीं थे. एर्न्स्ट जोंस ने, जो हमारे घर अक्सर आया करते थे, हमें मदद करने का वादा किया, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया...मेरा दिल सदमे से टूट चूका था, फिर भी मैं, एक फांसीसी प्रवासी के पास गई, जो नज़दीक ही रहते थे, और जो अक्सर हमसे मिलने आया करते थे. मैंने कहा, हम बहुत ही दयनीय हालत में हैं, आप हमारी मदद कीजिए. उन्होंने हमसे दोस्ताना हमदर्दी  दिखाते हुए, तुरंत 2 पौंड दे दिए. उस पैसे से हमने, अपनी प्यारी बच्ची के लिए ताबूत ख़रीदा, जिसमें हमारी लाड़ली शांति से आराम कर सके. मेरी ये बच्ची, जब इस संसार में आई थी तब उसके लिए खिलौने नहीं थे, और जब गई, तो बहुत देर तक ताबूत के लिए तरसती रही. कितने टूटे हुए दिल से हमने, अपनी जान को उसकी क़ब्र में रखा था!!"

जेनी मार्क्स, 
कार्ल मार्क्स की जीवन संगिनी, मार्क्स और अपने जीवन को याद करते हुए (Reminiscences of Marx and Engels)

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