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Tuesday, 26 March 2024

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह --बाबा बुल्लेशाह

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 
--बाबा बुल्लेशाह

होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 
नाम नबी की रतन चढ़ी बूँद पड़ी अल्लाह अल्लाह 
रंग-रंगीली ओही खिलावे जो सखी होवे फ़ना-फ़िल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 

अलस्तो-बे-रब्बेकुम पीतम बोले सब सखियाँ ने घुँघट खोले 
क़ालू-बला ही यूँ कर बोले ला-इलाहा इल-लल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 

नहनो-अक़रब की बंसी बजाई मन-अरफ़-नफ़्सह की कूक सुनाई 
फ़सम्मा वज्हुल्लाह की धूम मचाई विच दरबार रसूलल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 

हाथ जोड़ कर पाँव पड़ुँगी आजिज़ हो कर बिंती करूँगी 
झगड़ा कर भर झोली लूँगी नूर मोहम्मद सल्लल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 

फ़ज़कुरूनी की होरी बनाऊँ वश्कुरूली पिया को रिझाऊँ 
ऐसे पिया के मैं बल-बल जाऊँ कैसा पिया सुब्हान-अल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह 

सिब्ग़तुल्लाह की भर पिचकारी अल्लाहुस-समद पिया मुँह पर मारी 
नूर नबी दा हक़ से जारी नूर मोहम्मद सल्लल्लाह 
'बुल्लिहा' शौह दी धूम मची है ला-इलाहा इल-लल्लाह 
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह।

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(कुल्लियाते-बुल्लेशाह में संकलित)

होली खेलने, रंग लगाने के हुड़दंग से इतर भी होली के ज़ाविये रहे हैं। सूफ़ी शायरों ने इसे तसव्वुफ़ या अध्यात्म के रूपक में भी ढाला है। बेशुमार कविताएँ उर्दू में मिलती हैं। हिंदुस्तान एक जटिल इलाक़ा है, दूध और विष के परे भी बहुत कुछ मौजूद रहा है यहाँ जिसे तेज़ी से ख़त्म करने पे कुछ ताक़तें फ़िलवक़्त आमादा हैं। 

ईदे-गुलाबी यानी होली मुबारक ❤️

(ईदे-गुलाबी नाम से होली का वृहद उत्सव दिल्ली के लाल क़िले में मुग़ल बादशाह मनाया करते थे कभी)
⚪️
अदनान कफील दरवेश की वॉल से साभार

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