अपने बचपन के दिनों में मुझे भोजपुरी साहित्य के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर के दो नाटकोंको देखने का सौभाग्य मिला ।एक नाटक उनका था विदेशिया। विदेशिया का पाठ अदा करते हुए मुझे उन्हें देखने का सौभाग्य प्राप्त है। दूसरा नाटकतथा भाई विरोध । इनका एक नाटक लोकप्रिय था" बेटी बेचवा। ,"ऐसा कहा जाता है हजारीबाग में वे जब इस नाटक कोअभिनीत कर रहे थे तोदर्शक महिलाएं रो रही थी। यह नाटक बेमेल विवाह पर आधारित है लड़की रो रो कर अपनी अपनी व्यथा को यह गा गा कर प्रकट कर रही है सचमुच यह गीत ह्रदय विदारक है। विदेशिया नाटक में पति अपनी पत्नीको छोड़कर कोलकाता चला जाता है और जब वह लौटता है उसके साथ उसकी दूसरी पत्नी और बच्चे होते हैं पहली पत्नी अपने पति को पाकर खुश है और अपने सौतनऔर उसके बच्चे को भी अपना लेती है। उन दिनों मजदूर वर्ग के लोग घर परिवार छोड़कर कोलकाता कमाने के लिए चले जाते थे। नवविवाहिता पत्नी अपनी विरह वेदना को किसतरह से व्यक्त करती है, इसका सजीव वर्णन भिखारी ठाकुर ने अपने इस नाटक में की है । उनका एक और नाटक है जालिम सिंहजोपटना रेडियो स्टेशन से प्रसारित हुआ था। इस नाटक में जालिम सिंह जो एक सिपाही है एक महादलित लड़की से विवाह करता है ।लड़की अपनी सास को बात बात में बदला देती है वह महादलित परिवार की है ।फिर तो परिवार में कोहराम मच जाता है। उन दोनों को परिवार से अलग कर दिया जाता है ।अपने बीमार ससुर की सेवा गोरखपुर के अस्पताल मे करती है। उनकीजिंदगी बच जाती है। अस्पताल से घर आने पर अब वह अपने पतोहू को बेटी का दर्जा देकर फिर से परिवार में शामिल कर लेते हैं । उन्होंने इस नाटक में अंतरजातीय विवाह की मान्यता समाज में दिलाने की कोशिश की है और महादलित को समाज में सम्मान दिलवाने की कोशिश की है।
उनके निर्माण दिवस पर उन्हें शत-शत नमन और प्रणाम ।
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