किसी के घर मे यूं ही नहीं घुस जाया जाता
फिर चाहे वह राष्ट्रपति का ही घर क्यों न हो.
रसोई में बिना पूछे कोई कैसे घुस सकता है?
वो तो बहुत 'पवित्र' जगह है
फिर चाहे वह राष्ट्रपति की ही रसोई क्यों न हो.
और बेडरूम में घुसना तो सरासर असभ्यता है
और वह भी मोटे मोटे विदेशी महंगे गद्दों पर जूतों के साथ कूदना?
यह तो बर्दाश्त के बाहर है.
किसी के निजी स्वीमिंग पूल के साफ पारदर्शी पानी में
पसीने और धूल से लथपथ शरीर के साथ
सैकड़ों की संख्या में नहाने का क्या मतलब है?
यही न, कि आप अभी तक सभ्य नहीं हुए हैं.
जिस आलीशान भवन में आपने हज़ारों की संख्या में प्रवेश किया है,
उसे 'असभ्य' तरीके से अपने पैरों तले रौंदा है,
वह एक 'महान' व्यक्ति का भवन था.
उसने आपके लिए क्या-क्या नहीं किया
पहले मुस्लिमों को ठिकाने लगाया.
आपने में से कुछ लोगों ने इस पर ताली भी बजाई.
फिर आपकी सुरक्षा के नाम पर
देश की सुरक्षा के नाम पर
लिट्टे को कुचल कर रख दिया.
नफ़रत इतनी कि
प्रभाकरन के 9 साल के बच्चे को बंकर से निकाल कर
उसके कपड़े उतार कर
उसकी खुली छाती पर
मीडिया के सामने गोली मारी.
तमिलों को बहुत 'सभ्य' तरीके से उनकी औक़ात बताई.
भले ही तमाम तस्वीरें तमिलों के बर्बर कत्लेआम की कहानी कह रही हों.
लेकिन आपने तो यही समझा कि यह सब देश की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है
अपने धर्म की पताका को सबसे ऊंचा रखने के लिए ज़रूरी है.
बुद्ध पूर्णिमा के दिन भी जब चांद पर रक्त के छींटे पड़े
तो आपको लगा कि आपका शांति पूर्ण धर्म
अब आक्रामक हो रहा है.
लेकिन इसी में आपने अपनी सुरक्षा समझी.
रोटी और नौकरी के बदले यह आक्रामक धर्म आपका ही तो चुनाव था.
आप तो खुश थे कि तमिलों - मुस्लिमों को
हाशिये पर धकेला जा रहा है.
उन्हें घुटनों के बल चलने पर मजबूर किया जा रहा है.
लेकिन सच तो यह भी है कि
किसी भी खेल को भूखे पेट कब तक देखा जा सकता है?
पेट की मरोड़ के साथ
कब तक खेला जा सकता है?
धर्म और नफ़रत से दिमाग भरता है पेट नहीं
और जब आप से न रहा गया
तो आपने रोटी की खातिर राष्ट्रपति के भवन को रौंद डाला?
यह तो सरासर एहसान फ़रामोशी है.
रोटी तो आपका चुनाव ही नहीं था.
चलिए, इसके बावजूद
आप वहां चले ही गए
तो आपने कुछ तो देखा होगा
महसूस किया होगा.
राष्ट्रपति की आलीशान भरी हुई रसोई देखकर
शायद आपको महसूस हुआ होगा कि
आपकी रसोई खाली क्यों है!
समृद्धि में बजबजाते महल को देखकर
शायद आपको अपनी गरीबी का कारण समझ आया हो!
स्विमिंग पूल के अथाह पानी को देखकर
शायद आपको अपनी गहरी प्यास का अहसास हुआ होगा!
उसके विशाल आलीशान बेडरूम को देखकर
शायद आप इसकी जादुई ताकत को पहचान पाए हो,
कि हर रात यह आपकी नींद चुम्बक की तरह कैसे खींच लेती हैं!
लेकिन एक अहसास शायद अभी बाकी है
हमारे धर्म भले ही अलग अलग हों
लेकिन हमारी रोटी एक ही है.
भूख सबकी एक ही है
बच्चों की चिंता सबकी एक ही है!
यह अहसास
हमें उनसे जोड़ेगा, जिनसे नफ़रत के बदले
हमने अपनी रोटी गवाई है.
बच्चों का भविष्य गंवाया है!
अपने भविष्य को राजा के हाथों गिरवी रखा है!
इस अहसास के बाद
रोटी और बच्चों के भविष्य की सांझी लड़ाई में
हम सिर्फ इन आलीशान, समृद्धि से बजबजाते भवनों में
प्रवेश ही नहीं करेंगे,
बल्कि उस पर बुलडोजर चलाकर
उसे समतल भी कर देंगे.
फिर वहां हम एक फुलवारी लगाएंगे
जिसमें हर रंग, हर खुशबू के फूल होंगे.
और सभी अपने रंग अपनी खुशुब पर ताउम्र इतराएँगे...
#मनीषआज़ाद
Amita Sheereen की वाल से
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