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Friday, 29 July 2022

पहचान की राजनीति को गालियों से नहीं पहचान सकते


  
ठाकुर अमर सिंह जब सपा के कद्दावर नेता थे, तब दलितों पिछड़ों का बहुत पक्ष लेते दिखते थे, आरएसएस और भाजपा की आलोचना करते थे, इससे कुछ लोग समझते थे कि ये तो पिछड़ों के मसीहा हैं। वह मसीहा जब मरने लगे तो अपनी करोड़ों की पैतृक सम्पत्ति दलित,  या पिछड़ी जाति के संगठन को नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दान कर दिए। कोई आदमी अपनी सम्पत्ति का वारिश उसे ही बनाता है जो उसके दिल के बहुत करीब हो।
 
इसी तरह सतीश मिश्रा जी हैं, संघ और भाजपा को लताड़ते हैं मगर चुनाव आता है तो बसपा में रह कर भाजपा को जिताने का आह्वान करवाते हैं। उनकी जाति पर मत जाइए।  मायावती जी तो दलित ही हैं, मगर संघ को खुश करने के लिए एस सी/एस टी ऐक्ट को संशोधन करके उसे नख-दन्त विहीन शेर बना देती हैं।
 
इसी तरह मुलायम सिंह यादव जी हैं, जनता पार्टी की सरकार थी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने पिछड़ी जाति को 15% आरक्षण देने की बात किया तो संघ के लोग नाराज़ होकर अविश्वास प्रस्ताव लाए थे, तब मुलायम सिंह यादव ने कैबिनेट मंत्री रहते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ वोट देकर रामनरेश यादव की सरकार को गिरा कर संघ को खुश कर दिया था और उस वक्त नारा चला "राम नरेश वापस जाओ, लाठी लेकर भैंस चराओ।" इसी तरह अखिलेश यादव जी संघ को खुश करने के लिए प्रमोशन में आरक्षण खत्म कर देते हैं।
  
संघ के लोग किस संगठन में कहां-कहां बैठे हैं आम आदमी इसका अंदाजा नहीं लगा सकता। कुछ अपवादों को छोड़ कर लगभग सभी दलों के प्रमुख या महत्वपूर्ण पदों पर संघ के लोग काबिज हैं। यहां तक कि कई कम्यूनिस्ट पार्टियों में भी हैं। 
  
आप को याद होगा छात्र नेता कन्हैया कुमार जी दलितों का भावनात्मक शोषण करने के लिए जयभीम लाल सलाम बोलते हैं। आरक्षण की खूब वकालत करते हैं, आरएसएस के टीवी चैनलों पर इनके चेहरे को खूब चमकाया जाता है। फिर इन्हें कांग्रेस में भेज दिया जाता है।
 
ओवैशी महाराज किस तरह आरएसएस को मदद पहुंचा रहे हैं, ये तो आम आदमी समझने लगा है। ऐसे बहुत लोग हैं जो दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों का हितैषी बनने का दिखावा करके जातिवाद और साम्प्रदायिकता को हवा देकर जनता में फूट डालकर शासक वर्ग को मजबूत कर रहे हैं। 
   
मुलायम सिंह यादव जी खुद को मुल्ला मुलायम कह कर मुसलमानों का हितैषी बनने का ढोंग कर रहे थे। इसी तरह फेसबुक पर एक महिला को देखा वो खुद को 'मुल्ली', 'लेडी ओवैशी', 'मुस्लिमों का सेलिब्रिटी' कहती हैं, पानी पी पी कर संघ को गाली देती है, बादल सरोज जैसे लोग उसकी मार्क्सवाद विरोधी पोस्ट पर तारीफ करते हैं, वह महिला अपने आलोचक को मुस्लिम विरोधी या संघी कहकर ब्लाक या अन्फ्रेंड कर देती है, झूठे आरोप लगाती है, गेट आउट कहती है। इससे लोगों को लग सकता है कि वह महिला संघ विरोधी होगी। मगर यह सब भ्रम है। 

बहुत लोग आरएसएस को गाली देते रहते हैं, आम आदमी भ्रमित हो जाता है, उसे लगता है कि वह आरएसएस को गाली दे रहा है तो जरूर आरएसएस का विरोधी होगा। मगर याद रहे, गाली देना विरोधी होने की पहचान नहीं है, गाली तो बारात में सुने होंगे जब कन्या पक्ष की महिलायें वर पक्ष के लोगों को गाली देती हैं। गाली सुनने वाले भी खूब खुश होते हैं। सुबह तक गाली गवाई के रूप में वे महिलाएं पैसा भी पाती हैं। अत: गाली भी दुश्मनी का पैमाना नहीं है। अगर विरोध व्यवहारिक और सैद्धान्तिक दोनों स्तरों पर नहीं है तो वह विरोध भी एक तरह से विरोधियों के लिए सहयोग ही होता है। 
   
इस सच्चाई को सभी लोग जानते हैं कि सभी धर्मों में अमीर और गरीब हैं, सभी जातियों में अमीर और गरीब हैं, महिलाओं में भी अमीर और गरीब हैं। अगर कोई मायावती की तरह सारे दलितों की बात करता है, मुलायम सिंह की तरह सारे पिछड़ों की बात करता है, या ओवैसी की तरह सारे मुसलमानों या मोदी की तरह सारे हिन्दुओं की बात करता है। मगर इन जातीय,धार्मिक समूहों के 95% गरीबों की बात नहीं करता, तो सही मायने में वह जातिवाद और साम्प्रदायिकता की ही बात करके जनता की एकता को तोड़कर शोषक वर्ग का काम आसान कर रहा होता है।
  
दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, मुसलमानों, हिन्दुओं, सिक्खों, इसाईयों में जो लगभग 95% गरीब और शोषित-पीड़ित हैं, उनकी बात संघ के लोग नहीं करते। क्योंकि गरीबों की बात करेंगे तो गरीबों की एकता की बात जरूर करना होगा, और गरीबों की एकता की बात करेंगे तो जाति, धर्म, पंथ, रंग, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र के झगड़ों से ऊपर उठकर जनता को गोलबन्द करना होगा मगर इससे अमीरों को खतरा होगा इसी लिए संघ के लोग जहां भी हैं, वे किसी न किसी जाति, धर्म, पंथ, रंग, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र का ही पक्ष लेते हैं। कोई संघी होकर भी मुसलमानों का पक्ष लेता हुआ दिखता है, तो कोई दलितों का, कोई पिछड़ों, कोई आदिवासियों… का पक्ष लेने के नाम पर मुर्मू को राष्ट्रपति तक बना देता है, मगर शोषित-पीड़ित गरीब 'वर्ग' की बात नहीं करता है। ये लोग कभी-कभी उत्पीड़न के खिलाफ तो दिख जाते हैं मगर शोषण के खिलाफ कत्तई नहीं होते। 
 
जो लोग शोषित-पीड़ित वर्ग का पक्ष लेने की बजाय जाति, धर्म, पंथ, रंग, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र के नाम पर किसी भी समूह का पक्ष ले रहे हैं वे गरीबों की एकता खण्डित करके शोषक वर्ग का ही काम कर रहे हैं। सावधान रहें, हर पीली धातु सोना नहीं होती।

*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*

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