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Tuesday, 14 March 2023

मार्क्स , वर्ल्ड की लगभग आधी आबादी जिनकी फालोवर है......



 ऐसे महान शख़्सियत,वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स जो दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार थे, आज उनकी पुण्यतिथि है। उनका जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी के ट्रियर शहर में हुआ था. कार्ल मार्क्स ने दुनिया को समाज और आर्थिक गतिविधियों के बारे में अपने विचारों से आंदोलित कर दिया।

उनके विचारों से प्रभावित होकर कई क्रांतियों की नींव 
पड़ी,वह ताउम्र कामकाजी तबके की आवाज बुलंद करते रहे। इसके कारण उन्हें पूंजीपती वर्गों का काफी विरोध भी सहना पड़ा। 

अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें जर्मनी, फ्रांस और बेल्जियम से भगा दिया गया था. साल 1864 में लंदन में 'अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ' की स्थापना में उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

उन्होंने कहा था: पूंजी मृत श्रम है , जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है। 

दार्शनिक के तौर पर उनका मानना था कि लोगों की खुशी के लिए पहली आवश्यकता 'धर्म का अंत' है।उन्होंने कहा था कि 'धर्म लोगों का अफीम है'। 

उनके अनुसार नौकरशाह के लिए दुनिया महज एक हेर-फेर करने की वस्तु है। 'अमीर गरीबों के लिए कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते। 

उन्होंने कहा था इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह , दुसरे एक मज़ाक की तरह। 

 उन्होंने हमें सिर्फ़ कम्युनिस्ट घोषणापत्र और दास कैपिटल जैसी किताब ही नहीं दी बल्कि कुछ ऐसी कविताएं भी दी हैं......जो पूंजीवाद की असलियत और समाजवाद की ज़रूरत को हमारे सामने अलग ढंग से रेखांकित करती हैं। आइए आज पढ़ते हैं ऐसी ही एक कविता.... 

बेरोजगारी (unemployment) 
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इतनी चमक-दमक के बावजूद

तुम्हारे दिन

तुम्हारे जीवन

को सजीव बना देने के

इतने सवालों के बावजूद

तुम इतने अकेले क्यों हो मेरे दोस्त ?

 
जिस नौजवान को कविताएं लिखने और

बहसों में शामिल रहना था

वो आज सड़कों पर लोगों से एक सवाल

पूछता फिर रहा है

महाशय, आपके पास क्या मेरे लिए

कोई काम है?

वो नवयुवती जिसके हक़ में

ज़िंदगी की सारी ख़ुशियां होनी चाहिए थी

इतनी सहमी-सहमी व इतनी नाराज़ क्यों है ?

 

शहरों में

संगीतकार ने

क्यों खो दिया है

अपना गान ?

 
अदम्य रोशनी के बाक़ी विचार भी

जब अंधेरे बादलों से अच्छादित है

जवाब

मेरे दोस्त ..हवाओं में तैर रहे हैं

समा लो अपने भीतर

जैसे हर किसी को रोज़ का खाना चाहिए

महिला को चाहिए अपना अधिकार

कलाकार को चाहिए रंग और अपनी तूलिका

उसी तरह

हमारे समय के संकट को चाहिए

एक विचार धारा

और एक अह्वान--

अंतहीन संघर्षों, अनंत उत्तेजनाओं,

सपनों में बंधे

मत ढलो यथास्थिति के अनुसार

मोड़ो दुनिया को अपनी ओर

समा लो अपने भीतर

समस्त ज्ञान

घुटनों के बल मत रेंगों

उठो—

गीत, कला और सच्चाइयों की

तमाम गहराइयों की थाह लो

-----  कार्ल मार्क्स

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