Total Pageviews

Sunday, 12 March 2023

मक्सिम गोर्की (सर्वहारा वर्ग का मानववाद)

अरबों मेहनतक़श लोगों पर अपनी सत्‍ता जमाये रखने और श्रम का निरंकुश शोषण करने की अपनी स्वतन्त्रता को क़ायम रखने के लिए दुनिया के पूँजीपति अपना पूरा ज़ोर लगाकर फ़ासिज्म का संगठन कर रहे हैं। फ़ासिज्म जर्जर बुर्जुआ समाज के शारीरिक और नैतिक रूप अस्वस्थ -- शराबखोरी और सिफ़लिस के शिकार पूँजीपतियों और उनकी विक्षिप्त सन्तान का, जो सन 1914-18 के अनुभवों से पीड़ि‍त है, निम्न मध्यवर्ग के बच्चों का, पराजय का 'प्रतिशोध' लेनेवालों तथा उन लोगों का मिलकर संगठित होने का परिणाम है, युद्ध में जिनकी सफलताएँ भी बुर्जुआ वर्ग के लिए पराजय से कम विनाशकारी नहीं थीं। इन सब नौजवानों की मनोवृत्ति का रूप निम्न तथ्यों से पहचाना जा सकता है: ''इस वर्ष के मई महीने के आरम्भ में, जर्मनी के एस्सेन नगर में, चौदह साल के एक लड़के 'हाइन क्रिस्टेन' ने तेरह साल के अपने दोस्त 'फ्रित्ज़ वाकेनहोत्स्रज' की हत्या कर दी। हत्यारे ने बड़े शान्त भाव से बताया कि उसने पहले से ही अपने दोस्त के लिए एक कब्र खोद ली थी, जिसमें उसको गिराकर उसने हाथों से अपने दोस्त का मुँह मिट्टी में तबतक जबरदस्ती दबाये रखा जबतक उसका दम नहीं घुट गया। उसने कहा कि यह हत्या उसने इसलिए की, क्योंकि वह अपने दोस्त वा‍केनहोत्र्स्ज की हिटलर स्टॉर्मट्रूपर पर की वर्दी को हथियाना चाहता था।''
जिन्होंने भी फासिस्टों की परेडें देखी हैं, वे जानते हैं कि ये परेडें उन नौजवानों की होती हैं, जिनकी रीढ़ें रोग से सूजी हुई हैं, जिनके शरीरों पर चकत्ते पड़े हुए हैं और जो क्षयग्रस्त हैं, किन्तु जो बीमार आदमियों के उन्माद से जीवित रहना चाहते हैं और जो ऐसी किसी भी चीज़ को अपनाने के लिए तैयार रहते हैं जो उनके विषाक्त रक्त की सड़ांध को बिखेरने की उन्हें आज़ादी देती है। इन हजारों कान्तिहीन और रक्तहीन चेहरों में स्वस्थ और चमकते चेहरे दूर से ही नज़र आ जाते हैं, क्योंकि उनकी संख्या इतनी नगण्य है। निश्चय ही ये थोड़े-से चमकते हुए चेहरे सर्वहारा वर्ग के सचेत दुश्मनों के हैं या दुस्साहसी टटपूँजियों के हैं जो कल तक सोशल डेमोक्रेट थे या छोटे व्यापारी थे और अब बड़े व्यापारी बनना चाहते हैं और जिनके वोट, जर्मनी के फासिस्ट नेता मज़दूरों और किसानों के हिस्से की लकड़ी या आलू मुफ्त में देकर ख़रीद लेते हैं। होटलों के हेड-वेटर चाहते हैं कि वे अपने-अपने रेस्तराँ के मालिक हों, छोटे चोर चाहते हैं कि शासन बड़े चोरों को लूटमार और चोरी करने की जो छूट देता है वह उन्हें भी दी जाये -- ऐसे लोगों की पाँत में से फासिज्म अपने रंगरूट भरती करता है। फासिस्टों की परेड एक साथ ही पूँजीवाद की शक्ति और उसकी कमज़ोरियों की परेड होती है।
हमें आँखें बंद नहीं कर लेनी चाहिए: फासिस्‍टों की जमात में मज़दूरों की संख्‍या भी कम नहीं है -- ऐसे मज़दूरों की संख्या जो अभी तक क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग की निर्णयकारी शक्ति से बेख़बर हैं। हमें अपनेआप से यह तथ्य भी नहीं छिपाना चाहिए कि संसार का उपजीवी -- पूँजीवाद -- आज भी काफी मजबूत है, क्योंकि मज़दूर और किसान अभी भी उसके हाथ में हथियार और भोजन देते जाते हैं और उसे अपने रक्त और मांस से पौष्टिक तत्‍व प्रदान करते जाते हैं। इस विप्‍लवी जमाने का यह सबसे क्षोभजनक और शर्मनाक तथ्य है। जिस विनम्रता से मज़दूर वर्ग अपने दुश्मन को खिलाता-पिलाता है, वह कितनी घृणास्पद है। सोशल डेमोक्रेट नेताओं ने उसके मन में यह विनम्रता पैदा की है। इन नेताओं के नाम हमेशा के लिए शर्म के पीले और चिपचिपे रंग से पुते रहेंगे। कितने आश्चर्य की बात है कि बेकार और भूखे लोग इन तथ्यों को बर्दाश्त करते चले जाते हैं, जैसे मिसाल के लिए, बाजार के भाव ऊँचे रखने के लिए बड़ी तादाद में अनाज को नष्ट करना, वह भी ऐसे समय में जब बेरोज़गारी बढ़ रही है, वेतन की दरें गिर रही हैं और मध्यवर्ग के लोगों तक की ख़रीदने की क्षमता घटती जा रही है।

--- मक्सिम गोर्की (सर्वहारा वर्ग का मानववाद)

No comments:

Post a Comment