चैत्र नवरात्रि को , " हिंदू नववर्ष " या " भारतीय नववर्ष " कहना वास्तव में यह उत्तर भारतीय वर्चस्व का एक और उदाहरण है! इसे केवल हिन्दी नववर्ष ही कहा जाना चाहिए! हिन्दूओं में अनेक नववर्ष है, जैसे असमिया , तमिल, बंगला, मलयाली, यहाँ तक की गुजराती नववर्ष भी है। जैन और बौद्ध नववर्ष भी है। छोटे नागपुर में अनेक कबीलों में भी उनके अपने नववर्ष है। वास्तव में हजारों साल से दिल्ली या कहें उत्तर भारत सत्ता का केन्द्र रहा हैं,इसलिए उत्तर भारत के लोगों को ऐसा लगता है, की भारतीय संस्कृति और सभ्यता के वे ही केन्द्र है। जबकि दक्षिण भारत की सभ्यता और संस्कृति भी हजारों साल पुरानी है! उदाहरण के लिए तमिल भाषा संस्कृत भाषा की तरह ही हजारों साल पुरानी है, तथा यह करीब हजार वर्ष से तमिल समाज की मुख्य भाषा है । इसका साहित्य भी बेजोड़ है। बंगला और मलयाली सहित्य भी अनेक मामले में हिन्दी साहित्य से उत्कृष्ट है। दुर्भाग्य से हम जितना अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषा के साहित्य और संस्कृति के बारे में जानकारी है, उससे बहुत कम अन्य भारतीय भाषाओं के बारे में है, क्योंकि इनका हिन्दी में अनुवाद बहुत कम हुआ है। वास्तव में" हिन्दू राष्ट्र "की अवधारणा भी " उत्तर भारतीय ब्रहामणवादी" अवधारणा है। यही कारण है की भाजपा का प्रोजेक्ट दक्षिण भारत में सफल नहीं हो पाया। उसे वहाँ हिन्दूत्व , या राममंदिर के नाम पर वोट नहीं मिले। वास्तव में हिन्दू राष्ट्र का निर्माण जिस तरह दलित, पिछड़े और जनजातियों तथा अल्पसंख्यकों को विरोधी है, इसी तरह यह मिलीजुली भारतीय संस्कृति जिसकी अभिव्यक्ति यहाँ की विभिन्न राष्ट्रीयताओ में होती है, उसकी भी विरोधी है। इसलिए इस देश की सभी राष्ट्रीयताओ अल्पसंख्यकों तथा बहुजन समाज को मिलकर किसी भी तरह के धार्मिक राष्ट्र की अवधारणा का विरोध करना चाहिए।
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