हम क्या हैं कभी दिखला देंगे
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ए-समा को हिला देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज्म-ए-बगावत रखते हैं
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
जिस रोज़ बगावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख्वाबों को हकीक़त कर देंगे
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम
(साभार कविता कोष)
क्रांतिकारी कवि असरार-उल-हक़ उर्फ़ मजाज़ लखनवी को उनके स्मृति दिवस पर खिराज़-ए-अकीदत
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