कितना अच्छा है कि कोई ईश्वर नहीं
है यहां
सिर्फ है उसका सेमल के फल सा
खरगोश के सींग सा
बांझ के बेटे सा
भूस- भरे जर्जर बाघ सा
एक अर्थ हीन, खोखला,भुरभुराता हुआ नाम
जो आता रहता है वक्त -बेवक्त
धूर्त सत्ताधारियों, शोषक व्यापारीयों
और पाखंडी पुजारियों के काम
और जिसे भोले भाले बोधहीन दीन- दु:खी लोग
लगाते रहते हैं अपने दु:ख- दर्दो पर
समझ कर बाम.
रणजीत
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