छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी बिहारी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं.
तथा धीरे- धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है.
ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है.
असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से शादी के पहले के सम्बन्ध से प्रेग्नेंट(पेट से) हो जाती है।
सच ये है की, खुद प्रेग्नेंट है इस बात की कुंती को समझने में देरी हो जाने से, कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है।
महाभारत की इस घटना ( सूर्य से वरदान वाली जूठी कहानी) को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है.
शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके.
सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके.
ये अंधविश्वास और अनीति की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं.
ज्ञात हो कि ये बीमारी बिहार से सटे यू पी के जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल रही है।
आशा है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद देश कि औरते इस बीमारी का शिकार होने से बचेगी।
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