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Saturday, 5 November 2022

आलोचना की स्वतंत्रता'

'आलोचना की स्वतंत्रता' निस्संदेह मौजूदा समय का सबसे फैशनेबल नारा है। यह सभी देशों और समाजवादियों और जनवादियों के बीच चल रहे विवादों में सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्दा है। विवाद में शामिल पार्टियों में से कोई एक अगर आलोचना की स्वतंत्रता के लिए गंभीर अपील करे तो पहली नजर में इससे ज्यादा विचित्र बात कोई और नजर नहीं आएगी। बहुतेरे यूरोपीय देशों के संवैधानिक कानून, विज्ञान और वैज्ञानिक अन्वेषणों के लिए स्वतंत्रता की गारंटी करते हैं। क्या इन कानूनों के खिलाफ इन देशों की अग्रणी पार्टियों के भीतर आवाज उठाई गई है? 'यहां कुछ न कुछ गलत निश्चित रूप से है।' यही किसी भी उस दर्शक की टिप्पणी होगी, जिसने आलोचना की स्वतंत्रता के इस फैशनेबल नारे को सुना होगा। इस नारे को बार-बार दोहराया तो जाता रहा है, लेकिन उसके प्रति उठे विवादों के सारतत्व को भेदा नहीं जा सकता है। 'बिलकुल साफ है कि यह नारा एक पारंपरिक शब्द-खंड या उक्ति है, जो संक्षिप्त नामों की तरह इस्तेमाल के क्रम में वैधानिक और लगभग जातीय (एक वर्ग-विशेष का) पद हो गया है।'

'स्वतंत्रता' एक महान शब्द है। लेकिन उद्योग की स्वतंत्रता के बैनर तले सर्वाधिक लुटेरे किस्म के युध्द हुए हैं। श्रम की स्वतंत्रता के बैनर तले श्रमिक लूटे गए हैं। 'आलोचना की स्वतंत्रता' शब्दपद के इस आधुनिक इस्तेमाल में भी ऐसा ही फरेब अंतर्निहित है। जो लोग इस बात में यकीन रखते हैं कि उन्होंने सचमुच विज्ञान में तरक्की हासिल की है, वे इस स्वतंत्रता की मांग नहीं करेंगे कि पुराने के साथ-साथ नए विचार चलें बल्कि वे यह चाहेंगे कि नए विचार पुराने विचारों की जगह ले लें। 'आलोचना की स्वतंत्रता जीवित रहे' का मौजूदा आर्त्तनाद खाली कनस्तर से गूंजती आवाज सा प्रतीत होता है।

-क्या करें
(लेनिन)

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