मैं डेढ़ साल का था और मेरे पिताजी गुजर गए।समाज के सफेदपोश लोगों ने मिलकर मृत्युभोज किया।मेरी विधवा मां ने दशकों तक कर्ज के बोझ को ढोया।हम दो भाई व एक बहन का पेट भरने के लिए रात में खुद के खेत मे काम करती व दिन में मजदूरी के लिए दूसरों के खेतों में काम करती थी।
बढ़े भाई की पढ़ाई छूट गई।भाई चौदह साल की उम्र में स्टील फैक्ट्री में एक मजदूर बन गया।हम दोनों बहन-भाई स्कूल जाने लगे।अकाल पड़ गया।घर मे कुछ खाने को नहीं था।आस पड़ोस में उम्मीद भरी नजरों से देखा मगर मायूसी मिली।दोनों बहन-भाई ननिहाल उम्मीद लेकर गए थे मगर उनकी हालत भी ज्यादा ठीक नहीं थी।
एक दिन उपवास में कटा व अगले दिन नानी कुछ बाजरी लेकर आई।उस साल अकाल में राशन वितरण हो रहा था मगर एक बोरी धान के 180 रुपये कीमत थी।माँ 2-4 लोगों के पास गई।किसी ने कहा कि जमीन का क्या करेगी तो किसी ने तीसरे को संबोधित करते हुए कहा कि दे तो दें मगर वसूली कौनसे हुड़(भेड़ का नर बच्चा)बेचकर करेंगे।
भाई ने फैक्ट्री में मजदूरी करके घर चलाने का बहुत प्रयास किया मगर मजबूरी में मेरी बहन को स्कूल छोड़नी पड़ गई।संघर्ष करते-करते मेरे परिवार को गांव छोड़ना पड़ा।15 साल बाहर खेती बाड़ी की और सहारा बना एक बनिया परिवार।मैंने शिक्षा को भविष्य समझा और रातदिन एक ही बात सोचता था कि दुबारा परिवार अगर जड़ों पर खड़ा हो सकता है तो सिर्फ मेरी शिक्षा से।
मेरी नौकरी के 2साल बाद परिवार को अपने बाप की जमीन व उनके द्वारा निर्मित घर मे स्थापित कर पाया।
पिताजी के मृत्युभोज पर समाज लूटने के बजाय सहारा बन जाता,खाने के बजाय मददगार बन जाता तो मेरे भाई को पढ़ाई छोड़नी नहीं पड़ती,बहन को पढ़ाई नहीं छोड़नी पड़ती!पूरे परिवार का दर्द व बेबसी के आंसू मेरी कॉपियों में चलने वाली कलम के इर्द-गिर्द मंडराते रहे!कई बार आत्महत्या करने का ख्याल मन मे आया मगर दूसरे ही पल सोचता कि परिवार जिंदा ही मेरी शिक्षा व सफलता की उम्मीदों पर है।नहीं!यह ख्याल लड़ाकों के नहीं होते।इसपर मुझे जीत हासिल करनी है।
जीवन के इस संघर्ष में कई बार ढीठ बनना पड़ता है।
घर मे कई महीनों तड़का नहीं लगता था।
स्कूल में कभी टिफिन साथ लेकर नहीं गया।
माँ के हाथ से सीला बेग लेकर जाता था।
बिना कारी का निक्कर पहनने का अवसर बहुत कम मिला।
बहन के गौने में पहली बार पेंट पहनी थी।
11वीं कक्षा में पहली बार जूता पहना था।
जो लोग आज मृत्युभोज के समर्थक बनकर कह रहे है कि बाप ने तुम्हारे लिए इतना किया तो तुम उनके पीछे मिठाईयां तक नहीं करोगे!उनसे मेरा एक ही सवाल है मेरे बाप की मौत हुई थी उस दिन तक परिवार पर कोई कर्ज नहीं था।उनकी मौत के बाद समाज ने परिवार को कर्ज में धकेला।उसका दर्द तो आपने पढ़ ही लिया होगा?अगर किसी का बाप 5-10 लाख का कर्ज परिवार पर छोड़कर गुजर जाए तो उनके पीछे मृत्युभोज करना चाहिए या मरने पर चौराहे पर पेट्रोल डालकर फूँकना चाहिए?
बहुत कम लिखा है व ज्यादा समझा जाएं।ये भामाशाह,दानदाता जो भजन संध्या लगाते है,मंदिरों पर इंडा चढ़ाने की बोलियां आदि लगाते है उनमे से ज्यादातर बाप या माँ के पीछे मृत्युभोज करके भाई की जमीन पर नजर गड़ाये,गांव के किसी गरीब की जमीन पर कब्जा करने,24%ब्याज गरीबों से वसूली करने वाले गिद्ध निकलेंगे!
आपके एक समय का भोजन व डोडा पोस्त के चार घूंट किसी गरीब के परिवार पर क्या कहर ढहाते है वो इस बच्चे का जीवन तुम्हारी करतूतों का प्रतिबिंब बनकर तुम्हारे भविष्य को आइना दिखाता रहेगा।
प्रेमाराम सियाग
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