आवाम के शायर वामिक जौनपुरी की पुण्यतिथि पर
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प्रगतिशील लेखक संघ का हिस्सा रहे वामिक जौनपुरी ने अपनी नज्मों से आजादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया। ब्रिटिश साम्राज्यवाद और उसकी लूट के खिलाफ वामिक साहब ने कई नज्में लिखीं जिसकी वजह से उन्हें अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी। इनकी नज्मों में बंगाल के अकाल पर लिखी इनकी नज्म इतनी प्रचलित हुई कि वो एक आंदोलन बन गई।
'भूका है बंगाल रे साथी, भूका है बंगाल' वह नज्म है, जिससे वामिक जौनपुरी की शोहरत पूरे मुल्क में फैली। साल 1944 में लिखी गई इस नज्म ने उन्हें एक नई पहचान दी। इस नज्म का पसमंजर साल 1943 में बंगाल में पड़ा भयंकर अकाल है। इस अकाल में उस वक्त एक आंकड़े के मुताबिक करीब तीस लाख लोग भूख से मारे गए थे। वह तब, जब मुल्क में अनाज की कोई कमी नहीं थी। गोदाम भरे पड़े थे। बावजूद इसके लोगों को अनाज नहीं मिल रहा था। एक तरफ लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर रहे थे, दूसरी ओर अंग्रेज़ सरकार के कान पर जूं तक नही रेंग रही थी। बंगाल के ऐसे अमानवीय और संवेदनहीन हालात की तर्जुमानी 'भूका है बंगाल' नज्म में है। यह नज्म, बंगाल के अकाल पीड़ितों की आवाज़ बन गई। आईए इस नज्म पर नजर-ए-सानी करें,
"पूरब देस में डुग्गी बाजी फैला दुख का जाल
दुख की अगनी कौन बुझाये सूख गए सब ताल
जिन हाथों ने मोती रोले आज वही कंगाल रे साथी
आज वही कंगाल
भूका है बंगाल रे साथी भूका है बंगाल
कोठरियों में गांजे बैठे बनिये सारा नाज
सुंदर नारी भूक की मारी बेचे घर घर लाज
चौपट नगरी कौन संभाले चारों तरफ भूचाल रे साथी
चारों तरफ भूचाल
भूका है बंगाल रे साथी भूका है बंगाल"
वामिक जौनपुरी ने इस नज्म में न सिर्फ अकाल से पैदा हुए दर्दनाक हालात का पूरा मंजर बयां किया है, बल्कि नज्म के आखिर में वे बंगाल वासियों से अपनी एकजुटता दर्शाते हुए कहते हैं,
"प्यारी माता चिंता जिन कर हम हैं आने वाले
कुंदन रस खेतों से तेरी गोद बसाने वाले
खून पसीना हल हंसिया से दूर करेंगे काल रे साथी
दूर करेंगे काल
भूका है बंगाल रे साथी भूका है बंगाल"
एक नई उम्मीद, नया हौसला बंधाने के साथ इस नज्म का इख्तिताम होता है।
इप्टा के 'बंगाल स्कवॉड' और सेंट्रल स्कवॉड ने 'भूका है बंगाल' नज्म की धुन बनाई और चंद महीनों के अंदर यह तराना मुल्क के कोने-कोने में फैल गया। इस नज्म ने लाखों लोगों के अंदर वतनपरस्ती और एकता, भाईचारे के जज्बात जगाए। इप्टा के कलाकारों ने नज्म को गा-गाकर बंगाल रिलीफ फंड के लिए हजारों रुपये और अनाज बंगाल के लिए इकट्ठा किया। इससे लाखों हमवतनों की जान बची। नज्म की मकबूलियत को देखते हुए, इसका मुल्क की दीगर जबानों में भी तर्जुमा हुआ।
(कुछ हिस्सा 'जनचौक' से साभार)
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