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Sunday, 6 November 2022

शोक गीतों के खिलाफ

#शोक गीतों के खिलाफ
जीवन रचने के लिए
लाखों गतिशील मनुष्य चाहिए
यह गति जब अपना लय खोता है 
जिंदगियां खामोश हो जाती हैं
 एक अहम साथी चाहिए
जीवन जीने के लिए 
यह मायने नहीं रखता कि 
वह साथी स्त्री है या पुरुष 
या वह उम्र के किस पड़ाव पर है
 जीवन को गति देने के लिए 
सामाजिक सरोकारों से प्रतिबद्ध लोगों का
 सानिध्य कितना महत्वपूर्ण है! 
लेकिन समय का दुर्भाग्य है कि
 सामाजिक सरोकार डूबता जा रहा है 
क्षितिज के पार
उदास शाम की तरह 
जो उभर आती है पहाड़ के गांवों में 
लोग आत्म केंद्रित होते जा रहे हैं
क्षुद्रता की हद तक!
 यह कितना दुखद है!
शोक गीतों की तरह!
लेकिन यह भी तो सच है
रात का अंधेरा प्रकृति का अर्धसत्य है
प्रकृति अपनी गति से जब
 किसी आकार को विखेर  रहा होता है
कहीं दूर अंधेरे को चीर कर 
सूरज निकल रहा होता है
मनुष्य वृद्ध होता है 
युवा जोड़े आलिंगनबद्ध हो अंगड़ाई लेते हैं
और फिर शिशुओं की किलकारियां गूंज उठती है 
उन  शोक गीतों के खिलाफ!

Narendra Kumar 

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