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Tuesday, 29 November 2022

सुकरात: ब्राजील का क्रांतिकारी फुटबॉलर



अपने जीवन के शुरुवाती दौर में लगभग सभी युवाओं की तरह सुकरात भी अपना करियर बनाना चाहते थे, हालांकि एक जन पक्षधर परिवार से होने के कारण उन्होंने चिकित्सा को अपने करियर के रूप में चुना ताकि वो अपने देश की गरीबी और भारी असमानता को कम करने में योगदान दे सकें| 

परंतु सुकरात के दर्शन प्रेमी पिता (जिन्होंने अपने दर्शन प्रेम के कारण अपने बेटे का नाम सुकरात रख दिया) ने उन्हें समझाया कि कैसे फुटबॉल के प्यार में उनके देश के लोग पागल हैं और सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाने के लिए इससे बेहतरीन मंच कोई और नहीं है| अपने पिता को याद करते हुए वो बताते हैं की कैसे, सैन्य तानाशाही में गिरफ्तारी के डर से उनके पिता को बोल्शेविक किताबें जलानी पड़ी थी। हालांकि अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने के बाद ही उन्होंने पेशेवर तौर पर फुटबॉल खेलना शुरू किया । 

70 के दशक के मध्य में वह कोरिंथियंस फुटबॉल क्लब में शामिल हुए, इस दौर में ब्राज़ीलियाई फ़ुटबॉल में एक दमनकारी प्रणाली काम कर रही थी जिसे 'कॉन्सेंटराकाओ' कहा जाता था, यह व्यवस्था सैन्य तानाशाही की कठोर और लोकतंत्र विरोधी मानसिकता का प्रतीक थी| इस व्यवस्था के तहत ब्राज़ीलियाई फ़ुटबॉल खिलाड़ी के हर कदम को नियंत्रित किया जाता था।

1981 में वामपंथी विचारों वाले एडिलसन अल्वेस को कोरिंथियंस फुटबॉल का क्लब निदेशक नियुक्त किया गया|अल्वेस, सुकरात और व्लादिमीर नाम के एक अश्वेत खिलाड़ी की तिकड़ी ने क्लब और खेल के लिए एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण का निर्माण किया जिसे आगे चल कर "कोरिंथियंस लोकतंत्र आंदोलन" के रूप में जाना जाने लगा।  सुकरात ने   क्लब को एक भ्रूण लोकतंत्र की प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया, जिससे सैन्य तानाशाही को एक वैचारिक चुनौती दी जा सकती है और वह इस बात को जानते थे कि देश के विशाल मज़दूर वर्ग के दिलों में खेल के प्रति अनूठी लोकप्रियता सैन्य तानाशाही को क्लब के संचालन में हस्तक्षेप करने और उसे कुचलने से रोकेगी। 

सुकरात की जीवनी लिखने वाले लेखक एंड्रयू डाउनी इस आंदोलन के बारे में बताते हैं की:-

"सुकरात मानते थे कि खिलाड़ियों की मालिश करने वाले, कपड़े धोने वाली महिला, स्टेडियम के चौकीदार, खाना बनाने वाले व खेल से जुड़े अन्य सभी लोग खेल में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जितनी कि राइट बैक, मिडफील्डर या गोलकीपर, और उन्होंने प्रस्ताव दिया कि जीत के बोनस में इन सभी लोगों को भी हिस्सा दिया जाएगा जो मान लिया गया। सुकरात के नेतृत्व में, कोरिंथियंस क्लब में व्यावहारिक रूप से सभी मामले - चाहे वह पिच पर हो या बाहर दोनों - बहस, मतदान और जवाबदेही का विषय बन गए।  खेल से जुड़े सभी प्रमुख प्रश्न जैसे किन खिलाड़ियों को क्लब में लेना है, व छोटे प्रश्न जैसे खाने के मेन्यू में क्या होगा सब लोगतांत्रिक तरीके से किया जाता था, क्लब असल मायने में लोकतंत्र की प्रयोगशाला बन गया।"

सुकरात के साथी खिलाड़ियों में से एक इस परिघटना का वर्णन करते हुए कहते हैं: "हमने एक ऐसे लोकतंत्र का निर्माण किया जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा रहा था|"

यह टीम तानाशाही विरोधी आंदोलन का प्रतीक बन चुकी थी,1982 में, कोरिंथियंस ने एक मैच में अपनी शर्ट पर 'आई वांट टू वोट फॉर माई प्रेसिडेंट' लिखवा कर खेला । उस समय तक, ब्राजील की सेना जुंटा सैकड़ों लोगों का कत्लेआम कर चुकी थी। 1983 में, टीम एक बैनर के साथ मैदान पर उतरी जिस पर लिखा था "जीत या हार लेकिन हमेशा लोकतंत्र के साथ"।

1986 मेक्सिको वर्ल्ड कप के समय, अमेरिका ने लीबिया पर बमबारी की थी, सुकरात जो ब्राज़ील की वर्ल्ड कप टीम का हिस्सा थे अमरीकी साम्राज्यवाद विरोधी हेडबैंड पहनकर मैदान पर खेलने उतरे|

एक और रोचक तथ्य यह है कि क्यूबा की क्रांति के समर्थन में सुकरात ने अपने एक पुत्र का नाम फिदेल रखा।

सैन्य तानाशाही के खिलाफ़ लड़ने वाले सुकरात, अपने जीवन अंतिम दौर में पूंजीवादी लोकतंत्र के भी खुले आलोचक रहे और इस बात को कहने से कभी नहीं कतराते थे कि लोकतंत्र आंदोलन अपने वादों को पूरा करने में विफल रहा है। 2011 में जब उनकी मृत्यु हुई, सुकरात ब्राजील में होने वाले आगामी 2014 विश्व कप के बारे में एक उपन्यास पर काम कर रहे थे। जिसमें वह लिखते हैं कि कैसे इस व्यवस्था ने गरीबी से त्रस्त झुग्गियों में नर्क जैसा जीवन जीते लाखों लोगों की पहुंच से वर्ल्ड कप को बाहर कर दिया है| 

बात फुटबॉल की हो रही हो तो सुकरात को याद करना आवश्यक है, एक ऐसा खिलाड़ी जो इटली खेलने चले गए ताकि वह "मूल भाषा में ग्राम्शी को पढ़ सकें और मजदूरों के आंदोलन के इतिहास का अध्ययन कर सकें।"


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