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Friday, 21 August 2020

राज्य और क्रांति - लेनिन, अध्याय ४

अध्याय ४

शेष । एंगेल्स की अतिरिक्त व्याख्याएं

 

मार्क्स ने कम्यून के अनुभव के महत्त्व के संबंध में बुनियादी चीजें बता दी थीं। एंगेल्स ने उसी विषय पर बार-बार विचार किया और मार्क्स के विश्लेषण और निष्कर्षों की व्याख्या की। कभी-कभी तो प्रश्न के दूसरे पहलुओं पर उन्होंने ऐसा सशक्त और स्पष्ट प्रकाश डाला कि उनकी व्याख्यानों पर विशेष रूप से विचार करना ज़रूरी हो जाता है। 

. "आवास प्रश्न

आवास प्रश्न के बारे में अपनी कृति(१८७२ ) में ही एंगेल्स कम्यून के अनुभव पर विचार कर चुके थे और राज्य के संबंध में क्रांति के कार्य भार कई बार बता चुके थे। यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस ठोस विषय की जांच-पड़ताल से एक तरफ़ तो सर्वहारा वर्ग के राज्य और वर्तमान राज्य में समानता की बातें - जिनके कारण उन दोनों को ही  राज्य कहा जा सकता है - ज़ाहिर हुईं और दूसरी तरफ़ , उनकी भिन्न्ता  

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को इंगित करनेवाली बातें, अर्थात राज्य के उन्मूलन की दिशा में संक्रमण की बातें ज़ाहिर हुईं।

 "तो फिर आवास प्रश्न किस तरह हल किया जाये ? वर्तमान समाज में उसे किसी भी अन्य सामाजिक प्रश्न की तरह हल किया जाता है - मांग तथा पूर्ति के धीरे-धीरे आर्थिक समतलन के द्वारा, एक ऐसे हल द्वारा, जो प्रश्न को फिर बार-बार पैदा करता है और इसलिए जो कोई हल है ही नहीं। इस प्रश्न को सामाजिक क्रांति कैसे हल करेगी, यह चीज़ हर मामले की परिस्थितियों पर ही निर्भर नहीं करती, अपितु कहीं अधिक व्यापक प्रश्नों से भी जुड़ी हुई है, जिनमें से एक प्रश्न शहर और देहात के बीच विरोध का उन्मूलन है। चूंकि भावी समाज के संगठन के लिए कोई काल्पनिक प्रणालियां रचना हमारा काम नहीं है, इसलिए यहां इस प्रश्न का विवेचन करना सर्वथा निरर्थक होगा। परंतु एक चीज़ निश्चित है - बड़े शहरों में यह सारी 'मकानों की कमी' दूर करने के लिए मकान पर्याप्त संख्या में मौजूद हैं बशर्ते उनका विवेकपूर्वक उपयोग किया जाये। वह स्वभावतः तभी हो सकता है, जब मौजूदा मकान-मालिकों के मकानों को हस्तगत करके मौजूदा गृहहीन मज़दूरों अथवा भीड़ भरे घरों में रहनेवाले मजदूरों को उनमें बसा दिया जाये। सर्वहारा ज्योंही राजनीतिक सत्ता हासिल कर लेगा, तब सामाजिक कल्याण के हितों से प्रेरित इस तरह का पग उठाना उतना ही सुगम होगा, जितना आधुनिक राज्य द्वारा अन्य प्रकार के संपत्तिहरण तथा रिहायशी घरों को अपने अधिकार में किया जाना" ( जर्मन संस्करण , १८८७, पृ० २२)  

यहां राज्य-सत्ता के रूप में परिवर्तन पर नहीं, बल्कि केवल उसकी सरगर्मी के अंतर्य पर विचार किया गया है। संपत्तिहरण करना और रिहायशी घरों को अपने अधिकार में किया जाना, ये कार्य वर्तमान राज्य के हुक्म से भी होते हैं। औपचारिक रूप से सर्वहारा राज्य भी मकानों पर क़ब्ज़ा करने और इमारतों को हस्तगत करने का "हुक्म" देगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि पुरानी कार्यकारी मशीनरी, नौकरशाही, जो बुर्जुआ वर्ग से संबंधित है , सर्वहारा राज्य की आज्ञाओं को पूरा करने के सर्वथा अयोग्य होंगी। 

"... यह परिलक्षित किया जाना चाहिए कि श्रम के सारे औज़ारों का वास्तविक अभिग्रहण , मेहनतकश जनता द्वारा समग्र उद्योग पर अधिकार 

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प्रूदोपथी 'विमोचन' के ठीक विपरीत है। दूसरे मामले में अलग मज़दूर आवास, ज़मीन के टुकड़े तथा श्रम के औज़ारों का स्वामी बनजाते हैं ; पहले मामले में 'मेहनतकश जनता' मकानों, कारखानों पर श्रम के औज़ारों की सामुहिक स्वामी बनी रहती है और लागत का हर्जाना पाये बिना उन्हें अलग-अलग व्यक्तियों या संघों को कम से कम संक्रमण काल में इस्तेमाल करने की शायद ही इजाजत दी जाये। इसी तरह भूमि पर स्वामित्व का उन्मूलन ज़मीन के किराये का उन्मूलन नहीं है, वरन से समाज को स्थानांतरित - भले ही संशोधित रूप में - करना मात्र है। इसलिए मेहनतकश जनता द्वारा श्रम के सारे औज़ारों का वास्तविक अभिग्रहण किराया संबंधों के बरकरार रखे जाने की संभावना क़तई खत्म नहीं करता" (पृ० ६८) 

इस अंश में इंगित प्रश्न , याने राज्य के धीरे-धीरे विलुप्त हो जाने के आर्थिक आधार के प्रश्न पर हम अगले अध्याय में विचार करेंगे। एंगेल्स अपनी बात बहुत सावधानी से कहते हैं, वह कहते हैं कि बिना लागत के मुआवजे के सर्वहारा राज्य लोगों को "कम से कम संक्रमण काल में" मकानों के इस्तेमाल की इजाज़त "शायद ही" देगा। सारी जनता की संपत्ति के रूप में मकानों के अलग-अलग परिवारों को किराये पर दिये जाने में उनके किराये की उगाही, उन पर निश्चित नियंत्रण और मकानों के आवंटन के इस या उस मानक की कल्पना निहित होती है। इन सारी बातों के लिए राज्य के किसी रूप की ज़रूरत है, लेकिन उसके लिए खास तौर से विशेषाधिकारी पदों पर आरूढ़ अफ़सरों की किसी विशेष फ़ौजी और नौकरशाही मशीनरी की ज़रूरत नहीं है। जिस स्थिति में बिना किराये के मकान देना संभव हो सकेगा, उसमें संक्रमण राज्य के पूर्ण "विलोप" से जुड़ा हुआ है।

 कम्यून के बाद और उसके अनुभव के प्रभाव के तहत ब्लांकीवादियों" द्वारा मार्क्सवाद की उसूली स्थिति अपनाये जाने के बारे में लिखते हुए एंगेल्स ने चलते-चलते उस स्थिति को निम्न प्रकार सूत्रबद्ध किया है

_ ... वर्गों और उनके साथ राज्य के उन्मूलन में संक्रमण के रूप में सर्वहारा और उसके अधिनायकत्व द्वारा राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता (पृ० ५५) 

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आलोचना में बाल की खाल निकालने के आदी  लोगों और " मार्क्सवाद के" बुर्जुवा "संहारकर्त्ताओ" को " राज्य के उन्मूलन" की मान्यता और 'डूयूरिंग मत-खंडन' के उपरोक्त उद्धरण के इस सूत्र की अराजकतावादी सूत्र के रूप में अस्वीकृति के बीच शायद विरोध दिखाई देगा। अवसरवादी अगर एंगेल्स पर भी "अराजकतावादी' होने का ठप्पा लगा दें, तो कोई आश्चर्य न होगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीयतावादियों पर अराजकतावाद का अभियोग लगाना सामाजिक-ग्रंधराष्ट्रवादियों के लिए अधिकाधिक आम होता जा रहा है।

 मार्क्सवाद ने हमेशा सिखाया है कि वर्गों के उन्मूलन के साथ राज्य का भी उन्मूलन हो जायेगा। " राज्य के धीरे-धीरे विलोप' के संबंध में 'ड्यूहरिंग मत-खंडन' का वह प्रसिद्ध अंश अराजकतावादियों पर राज्य के उन्मूलन के केवल पक्ष-पोषण का नहीं, बल्कि यह प्रचार करने का भी अभियोग लगाता है कि राज्य का "आनन-फानन" उन्मूलन हो सकता है। 

इस बात को देखते हुए कि राज्य के उन्मूलन के प्रश्न पर अराजकतावाद के साथ मार्क्सवाद के संबंध को आज का हावी "सामाजिक-जनवादी" सिद्धांत पूर्ण रूप से तोड़-मरोड़कर रखता है, अराजकतावादियों के साथ मार्क्स और एंगेल्स की एक बहस को याद करना खास तौर से लाभदायक होगा। 

. अराजकतावादियों के साथ विवाद

 

यह विवाद १८७३ में हुआ था। प्रूदोंवादियों 38, "स्वायत्ततावादियों" या "सत्तावादविरोधियों' के खिलाफ़ मार्क्स और एंगेल्स ने इटली के एक समाजवादी संग्रह में लेख लिखे थे, और जर्मन भाषा में ये लेख १९१३ में जाकर Neue Zeit में निकले थे। 

". . . अगर मजदूर वर्ग का राजनीतिक संघर्ष क्रांतिकारी रूप ग्रहण कर लेता है ," अराजकतावादियों द्वारा राजनीति की अस्वीकृति का मज़ाक़ उड़ाते हुए मार्क्स ने लिखा था, "अगर बुर्जुवा वर्ग के अधिनायकत्व के स्थान में मज़दूर अपना क्रांतिकारी अधिनायकत्व कायम कर लेते हैं, तो वे सिद्धांतों का उल्लंघन करने का भयानक अपराध करते हैं, क्योंकि अपने हथियार डाल देने और राज्य को मिटा देने के बजाय वे राज्य को एक 

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क्रांतिकारी और संक्रमणकालीन रूप दे देते हैं ताकि वे अपनी तुच्छ , गंदी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को संतुष्ट कर सकें, ताकि वे बुर्जुवा वर्ग के विरोध को कुचल सकें ..." (Neue Zeit, १९१३-१९१४, ३२ वां वर्ष , खंड १. पृ० ४०)10

अराजकतावादियों का खंडन करते समय मार्क्स राज्य के सिर्फ ऐसे " उन्मूलन" के ख़िलाफ़ लड़े थे ! उन्होंने इस मत का कदापि विरोध नहीं किया था कि जब वर्ग ग़ायब हो जायेंगे या जब वर्गों का उन्मूलन कर दिया जायेगा, तो राज्य का भी उन्मूलन कर दिया जायेगा। उन्होंने विरोध किया था इस प्रस्ताव का कि मज़दूर हथियारों के इस्तेमाल, संगठित बल प्रयोग, याने राज्य को , जिससे "बुर्जुवा वर्ग के विरोध को कुचलने' का काम लेना है, छोड़ दें। 

अराजकतावाद के विरुद्ध अपने संघर्ष के वास्तविक अर्थ के विकृत किये जाने को रोकने के लिए मार्क्स ने सोच-समझकर सर्वहारा वर्ग के लिए आवश्यक राज्य के "क्रांतिकारी और संक्रमणकालीन रूप" पर जोर दिया था। सर्वहारा वर्ग को राज्य की ज़रूरत केवल अस्थायी रूप से होती है। लक्ष्य के रूप में राज्य के उन्मूलन के संबंध में हम अराजकतावादियों से ज़रा भी असहमत नहीं हैं। हमारा कहना है कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही हमें शोषकों के विरुद्ध राज्य की सत्ता के उपकरणों, साधनों और तरीक़ों का अस्थायी तौर से इस्तेमाल करना चाहिए, उसी तरह जिस तरह वर्गों के उन्मूलन के लिए उत्पीडित वर्ग का अधिनायकत्व अस्थायी रूप से ज़रूरी होता है। अराजकतावादियों के मुकाबले अपनी बात को कहने के लिए मार्क्स सबसे पैना और स्पष्ट तरीक़ा अख्तियार करते हैं : पूंजीपतियों के जूए को उतार फेंकने के बाद मज़दूर अपने "हथियार डाल दें" या पूंजीपतियों के विरोध को कुचलने के लिए उनका इस्तेमाल करें ? लेकिन एक वर्ग का दूसरे वर्ग के खिलाफ़ हथियारों का व्यवस्थित रूप से इस्तेमाल राज्य का "संक्रमणकालीन रूप" नहीं, तो क्या है

प्रत्येक सामाजिक-जनवादी को अपने से सवाल करना चाहिए: अराजकतावादियों के साथ विवाद में राज्य के प्रश्न को क्या वह इसी ढंग से पेश करता आया है ? दूसरे इंटरनेशनल की आधिकारिक समाजबादी पार्टियों की विशाल बहुसंख्या क्या इस प्रश्न को इसी ढंग से पेश करती आयी है

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एंगेल्स ने इन्हीं विचारों का कहीं अधिक ब्योरे से और अधिक सरल ढंग से प्रतिपादन किया है। वह सबसे पहले प्रूदोंवादियों के उलझे हुए विचारों का मजाक उड़ाते हैं, जो अपने को "सत्तावादविरोधी" कहते थे, याने जो हर तरह की सत्ता, हर प्रकार की मातहती, हर किस्म के अधिकार को मानने से इनकार करते थे। एंगेल्स ने कहा : किसी फैक्टरी, किमी रेल , समुद्र में चलते किसी जहाज़ को ले लें - क्या यह स्पष्ट नहीं है कि इन जटिल तकनीकी संस्थानों में से , जो मशीन के उपयोग और बहुत-से लोगों के व्यवस्थित सहयोग पर आधारित हैं , एक भी बिना कुछ न कुछ मातहती और इसलिए बिना कुछ न कुछ सत्ता या ताक़त के काम नहीं कर सकता? वह लिखते हैं

" मैंने इस तरह के तर्क जब सबसे कट्टर सत्तावादविरोधियों के सामने रखे थे, तो वे मझे एकमात्र यही उत्तर दे सके... हां, यह सच है, लेकिन यहां मामला उस सत्ता का नहीं है, जो हम अपने डेलीगेटों को सौंपते हैं, बल्कि सौंपे जानेवाले कुछ निश्चित कार्यभार का है। ये सज्जन सोचते हैं कि वे चीज़ों का नाम बदलकर स्वयं चीजों को बदल देते हैं ..." 

इस प्रकार यह दिखला चुकने के बाद कि सत्ता और स्वायत्तता सापेक्ष अवधारणाएं हैं, कि सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओ के साथ उनके इस्तेमाल का क्षेत्र भी भिन्न होता जाता है, कि उन्हें बिलकुल निरपेक्ष समझना बेवकूफी है और आगे यह कहकर कि मशीनों के उपयोग और बड़े पैमाने के उत्पादन का क्षेत्र निरंतर बड़ा होता जा रहा है, एगेल्स सत्ता की आम बहस को छोड़कर राज्य के प्रश्न को लेते हैं। 

" स्वायत्ततावादी यदि अपने को यह कहने तक सीमित रखते कि भविष्य का सामाजिक संगठन सत्ता को मात्र उन सीमाओ के अंदर रखेगा, जिनके अंतर्गत उत्पादन की अवस्थाए उन्हें अवश्यंभावी बना देती हैं, तो हम उनसे सहमत होते, परंतु वे उन तमाम तथ्यों के मामले में अन्धे हैं , जो सत्ता को आवश्यक बनाते हैं तथा वे शब्द के विरुद्ध आग्रहपूर्वक संघर्ष करते हैं। 

"सत्तावादविरोधी राजनीतिक सत्ता, राज्य के विरुद्ध चिल्लाने तक अपने को क्यों सीमित नहीं रखते ? सारे समाजवादी इस बात पर सहमत हैं कि राजनीतिक राज्य का और उसके साथ राजनीतिक सत्ता का भावी 

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सामाजिक क्रांति के फलस्वरूप लोप हो जायेगा , अर्थात सार्वजनिक कार्य अपना राजनीतिक चरित्र खो बैठेंगे तथा समाज के हितों पर नज़र रखने वाले सामान्य प्रशासनिक कार्यों में रूपांतरित हो जायेंगे। परंतु सत्तावाद विरोधी यह मांग करते हैं कि सत्तावादी राजनीतिक राज्य का उसे जन्म देनेवाली सामाजिक अवस्थाओं को नष्ट किये जाने से पहले ही एक झटके में उन्मूलन कर दिया जाये। वे यह मांग करते हैं कि सामाजिक क्रांति का पहला काम यह होना चाहिए कि वह सत्ता का उन्मूलन करे। क्या इन सज्जनों ने कभी क्रांति देखी है ? क्रांति निश्चित रूप से सर्वाधिक - जितनी कि कल्पना की जा सकती है- सत्तावादी वस्तु होती है। वह ऐसा कार्य है, जिसमें आबादी का एक भाग राइफ़लों, संगीनों और तोपों के माध्यम से , चरम सत्तावादी साधनों के माध्यम से दूसरे भाग पर अपनी इच्छा थोपता है। और यदि विजयी पार्टी यह नहीं चाहती कि उसके प्रयत्न निष्फल रहें, तो उसे ऐसे आतंक की मदद से अपना शासन कायम रखना होगा, जिसे उसके हथियार प्रतिक्रियावादियों के मन में उत्पन्न करते हैं। यदि पेरिस कमयून ने बुर्जुवा वर्ग के विरुद्ध सशस्त्र जनता की सत्ता इस्तेमाल न की होती , तो क्या वह एक दिन भी टिक पाती? इसके विपरीत क्या हमें कम्यून की इसलिए भर्त्सना नहीं करनी चाहिए कि उसने इस सत्ता का पर्याप्त उपयोग नहीं किया

" इसलिए दो चीज़ों में से एक ही हो सकती है - या तो सत्तावाद विरोधियों को यह पता नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं और यदि ऐसा है , तो वे सिवाय भ्रम के और कुछ पैदा नहीं कर रहे हैं ; अथवा उन्हें इसका पता है और यदि ऐसा है, तो वे सर्वहारा आंदोलन के साथ गद्दारी कर रहे हैं। दोनों सूरत में वे केवल प्रतिक्रियावाद का हितसाधन कर रहे हैं" (पृ० ३६ )

इस तर्क का संबंध उन प्रश्नों से है, जिनकी जांच राज्य के धीरे-धीरे विलुप्त होने के दौरान राजनीति और अर्थव्यवस्था के पारस्परिक संबंध के सिलसिले में की जानी चाहिए ( इस पर अगले अध्याय में विचार किया गया है )। वे प्रश्न हैं : सार्वजनिक कामों का राजनीतिक कामों से सरल प्रशासनिक कामों में रूपांतरण और "राजनीतिक राज्य"। यह बादवाली अभिव्यक्ति , जिससे विशेष रूप से ग़लतफ़हमी फैल सकती है , राज्य के धीरे-धीरे विलुप्त होने की प्रक्रिया की ओर इशारा करती है : इस प्रक्रिया की एक विशेष अवस्था में विलुप्त होते हुए राज्य को अराज नीतिक राज्य कहा जा सकता है। 

 

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फिर एंगेल्स के इस तर्क में सबसे अपूर्व चीज़ वह ढंग है, जिससे उन्होने अराजकतावादियों के खिलाफ़ अपनी बात कही है। एंगेल्स के शिष्य होने का दावा करनेवाले सामाजिक-जनवादी १८७३ के बाद से लाखों बार इस प्रश्न पर अराजकतावादियों के साथ बहस कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने उस तरह बहस नहीं की, जिस तरह मार्क्सवादी कर सकते हैं और उन्हें करनी चाहिए। राज्य के उन्मूलन के बारे में अराजकतावादियों की धारणा उलझी हुई और गैर क्रांतिकारी है - एंगेल्स ने बात को इस तरह कहा था। अराजकतावादी ठीक क्रांति को, उसके उठान और विकास को , बल प्रयोग, सत्ता , अधिकार और राज्य के संबंध में उसके विशेष कार्यभारों को नहीं देखना चाहते।

 आधुनिक सामाजिक-जनवादियों द्वारा अराजकतावाद की यह आम आलोचना शुद्धतम दकियानूसी क्षुद्रता बनकर रह जाती है : "हम लोग राज्य को मानते हैं, अराजकतावादी उसे नहीं मानते !" स्वाभाविक ही है कि जो मज़दूर ज़रा भी क्रांतिकारी स्वभाव के और सोचने में समर्थ हैं, वे ऐसी अोछी बातों से दूर भागते हैं। एंगेल्स कुछ दूसरी ही चीज़ कहते हैं : वह इस चीज़ पर जोर देते हैं कि सभी समाजवादी मानते हैं कि समाजवादी क्रांति के परिणामस्वरूप राज्य ग़ायब हो जायेगा। इसके बाद वह क्रांति के प्रश्न पर ठोस रूप से विचार करते हैं - ठीक उसी प्रश्न पर, जिसे अवसरवादिता के कारण सामाजिक-जनवादी आम तौर से टाल जाते हैं और " हल करने के लिए" एक प्रकार से सिर्फ अराजकतावादियों के हाथ में छोड़ देते हैं। और सवाल को उठाकर एंगेल्स उसका सीधे-सीधे सामना करते हैं ; वह पूछते हैं : क्या कम्यून को राज्य की क्रांतिकारी सत्ता का, अर्थात शासक वर्ग के रूप में संगठित हथियारबंद सर्वहारा वर्ग का इस्तेमाल और ज्यादा नहीं करना चाहिए था?

प्रचलित आधिकारिक सामाजिक-जनवाद क्रांति में सर्वहारा वर्ग के ठोस कार्यभारों के प्रश्न को आम तौर से या तो दकियानूसी ठट्टेबाजी के साथ या बहुत से बहुत हेत्वाभासी टाल-मटोल के साथ "इंतज़ार करो और देखो' कहकर खत्म कर देता था। इस तरह के सामाजिक-जनवाद के बारे में अराजकतावादियों का यह कहना उचित ही था कि वह क्रांति के लिए मज़दूर वर्ग को शिक्षित करने के कार्यभार से मुंह मोड़ रहा है। 

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बैंकों और राज्य के संबंध में सर्वहारा को क्या करना चाहिए और किन तरह करना चाहिएइस बात के अधिकतम ठोस अध्ययन के लिए भी एंगेल्स ने पिछली सर्वहारा क्रांति के अनुभव का उपयोग किया है। 

 

. बेबेल के नाम पत्र

 

राज्य के संबंध में मार्क्स और एंगेल्स की रचनाओं में उल्लेखनीय और शायद अधिकतम उल्लेखनीय तर्क वह है, जो बेबेल के नाम लिखे गये एंगेल्स के १८-२८ मार्च, १८७५ के पत्र के नीचे दिये गये अंश में है। इस पत्र को, लगे हाथों बता दें कि जहां तक हम जानते हैं, बेबेल ने अपने संस्मरणों ( 'मेरी जीवनी से' ) के दूसरे खंड में प्रकाशित किया था , जो १९११ में , याने उसके लिखे जाने और भेजे जाने के छत्तीस वर्ष बाद निकला था।

एंगेल्स ने यह पत्र बेबेल को गोथा कार्यक्रम के उसी मस्विदे की आलोचना करते हुए लिखा था, जिसकी आलोचना मार्क्स ने ब्राके के नाम अपने प्रसिद्ध पत्र में 42 की थी। राज्य के प्रश्न का ख़ास तौर से ज़िक्र करते हुए एंगेल्स ने लिखा था

 

"...स्वतंत्र जन-राज्य स्वतंत्र राज्य में रूपांतरित हो गया है। वैयाकरण अर्थ में लिया जाये, तो स्वतंत्र राज्य वह है, जिसमें अपने नागरिकों के संबंध में राज्य स्वतंत्र है, याने एक निरंकुश सरकारवाला राज्य । राज्य विषयक सारी बात ही उड़ा दी जानी चाहिए, विशेषकर कम्यून के बाद, जो शब्द के सही अर्थ में राज्य रहा ही नहीं था। 'जन-राज्य' के बारे में अराजकतावादियों ने हमारी इतनी ताड़ना की है कि इससे हम ऊब गये हैं, यद्यपि प्रूदों के विरुद्ध मार्क्स की पुस्तक में 43 पहले ही और उसके बाद 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' में सीधे-सीधे घोषित किया गया है कि समाजवादी व्यवस्था के आगमन के साथ राज्य स्वयं विलयित हो जायेगा (sich auflost) और विलुप्त हो जायेगा। राज्य चूंकि मात्र एक संक्रमणकालीन संस्था है, जिसका उपयोग अपने शत्रुओं को बलपूर्वक दबाने के लिए संघर्ष में, क्रांति में किया जाता है, इसलिए स्वतंत्र जन-राज्य की बात करना कोरी बकवास है : सर्वहारा अभी भी जब तक राज्य का उपयोग करता है, स्वतंत्रता के हितों में नहीं करता, वरन अपने शत्रुओं को दबाने के लिए करता है और जैसे ही स्वतंत्रता की बात करना  

 

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संभव हो जाता है, वैसे ही स्वयं राज्य का अस्तित्व भी जाता रहता है। इसलिए हमारा प्रस्ताव है कि राज्य की जगह हर कहीं 'समुदाय' (Ge meinwesen)- एक बढ़िया पुराना जर्मन शब्द', जो फ्रेंच शब्द' 'कम्यून' का बड़ी अच्छी तरह अर्थ दे सकता है - का प्रयोग किया जाये" ( मूल जर्मन संस्करण का पृ० ३२१-३२२)44  

इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि यह पत्र उस पार्टी के कार्यक्रम का जिक्र करता है, जिसकी आलोचना मार्क्स ने एक दूसरे पत्र में, उपरोक्त पत्र के लिखे जाने के कुछ ही हफ्तों बाद ( मार्क्स के पत्र पर ५ मई , १८७५ की तारीख़ पड़ी है ) की थी और कि उस समय एंगेल्स मार्क्स के साथ लंदन में रह रहे थे। इसलिए जब एंगेल्स अपने अंतिम वाक्य में "हम" कहते हैं, तो निस्संदेह वह अपने साथ-साथ मार्क्स की तरफ़ से भी जर्मन मज़दूर पार्टी के नेता के सामने प्रस्ताव करते हैं कि " राज्य" शब्द को कार्यक्रम में से निकाल दिया जाये और उसकी जगह पर "समुदाय" शब्द का इस्तेमाल किया जाये।

  अवसरवादियों की सुविधा के लिए तोड़े-मरोड़े गये " मार्क्सवाद" की आजकल की प्रमुख विभूतियों को अगर कार्यक्रम को इस तरह से सुधारने की बात सुझायी जाये, तो वे "अराजकतावाद" की पुकार लगाकर कितना होहल्ला मचायेंगे

उन्हें होहल्ला मचाने दो। इसके लिए बुर्जग्रा वर्ग उनको शाबाशी देगा।

 लेकिन हम लोग अपना काम करते जायेंगे। अपनी पार्टी के कार्यक्रम को सूधारते समय हमें बिना डगमगाये एंगेल्स और मार्क्स की सलाह पर ध्यान देना चाहिए, जिससे हम सत्य के और नज़दीक पहुंच सकें , तमाम तोड़-मरोड़ को अलग करके मार्क्सवाद की पुनस्स्थापना कर सकें और मजदूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई को और भी सही तरीके से मार्ग दिखा सकें। निस्संदेह एंगेल्स और मार्क्स की सलाह को मानने के बारे में बोल्शेविकों के बीच किसी प्रकार की आपत्ति नहीं उठायी जायेगी। एकमात्र कठिनाई अगर उठ सकती है, तो वह शायद' शब्दों के बारे में होगी। जर्मन भाषा में "समदाय" का अर्थ रखनेवाले दो शब्द हैं, जिनमें से एंगेल्स ने एक का प्रयोग किया है, जिसका मतलब एक समुदाय नहीं, बल्कि समुदायों का कुल योग , समुदायों की व्यवस्था है। रूसी भाषा में ऐसा एक भी शब्द 

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नहीं है, और हो सकता है कि हमें फ्रांसीसी शब्द "कम्यून" को ही इस्तेमाल करने का फैसला करना पड़े, गोकि उसकी भी अपनी कमियां हैं। 

"कम्यून शब्द के सही अर्थ में राज्य रहा ही नहीं था" - सिद्धांत की दृष्टि से एंगेल्स ने यह सबसे महत्वपूर्ण बात कही है। जो कुछ ऊपर कहा जा चुका है, उसके बाद यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। चूंकि कम्यून को आबादी की बहुसंख्या को नहीं, बल्कि उसकी एक अल्पसंख्या को ( शोषकों को ) दबाना था, इसलिए उसका राज्य-रूप मिट रहा था। उसने बुर्जुया राजकीय मशीनरी का ध्वंस कर दिया था। विशेष दमनकारी शक्ति का स्थान अब खुद पूरी आबादी ने ले लिया था। शब्द के सही मानों में यह सब कुछ राज्य से विमुखता था। और कम्यून अगर सुदृढ़ हो गया होता , तो उसमें राज्य के जितने भी चिह्न थे , वे सब अपने आप " धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते", उसे राज्य की संस्थाओं को "ख़त्म करने" की ज़रूरत न पड़ती : जब उनके पास करने को कुछ न रह जाता , तो उनका काम भी खत्म हो जाता।

"'जन-राज्य' के बारे में अराजकतावादियों ने हमारी ताड़ना की है।" यह कहते समय एंगेल्स के दिमाग़ में खास तौर से बकूनिन और जर्मन सामाजिक-जनवादियों पर किये गये उनके आक्रमण थे। एंगेल्स ने स्वीकार किया है कि ये आक्रमण इसलिए सही थे कि "जन-राज्य" उतना ही अर्थहीन और समाजवाद से दूर था , जितना " स्वतंत्र जन-राज्य"। एंगेल्स ने कोशिश की थी कि अराजकतावादियों के खिलाफ़ जर्मनी के सामाजिक-जनवादियों के संघर्ष को सही रास्ते पर ले आया जाये , उस संघर्ष को उसूली तौर से सही बना दिया जाये , उसमें से "राज्य" के बारे में अवसरवादी पूर्वाग्रहों को दूर कर दिया जाये। कितने दुख की बात है ! एंगेल्स के पत्र को छत्तीस वर्ष तक दराज़ में बंद रखा गया। आगे चलकर हम देखेंगे कि एंगेल्स के पत्र के छप जाने के बाद भी काउत्स्की वस्तुतः उन्हीं ग़लतियों को अड़ियलपन के साथ बार-बार दोहराते रहे, जिनके विरुद्ध एंगेल्स ने चेतावनी दी थी। 

बेबेल ने एंगेल्स को अपने २१ सितंबर, १८७५ के पत्र द्वारा उत्तर दिया , जिसमें और बातों के साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रम के मस्विदे पर एंगेल्स की आलोचना से वह "पूर्णतया सहमत थे" और यह 

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कि उन्होंने लीब्कनेख्त को इसलिए लताड़ा था कि वह रियायतें करने को तैयार थे (बेबेल के संस्मरणों के जर्मन संस्करण का खंड २, पृ० ३३४) । लेकिन यदि हम बेबेल की पुस्तिका 'हमारे उद्देश्य' को लें , तो हम देखेंगे कि राज्य के संबंध में उसमें जो विचार व्यक्त किये गये हैं , वे बिलकुल ग़लत हैं

 "वर्ग शासन पर आधारित राज्य को बदलकर जन-राज्य बना देना चाहिए" (Unsere Ziele, जर्मन संस्करण , १८८६, पृ० १४) 

बेबेल की पुस्तिका के नवें ( नवें ! ) संस्करण में यह छपा था! यह आश्चर्य की बात नहीं है कि राज्य के बारे में बार-बार दोहराये जानेवाले इस तरह के अवसरवादी विचारों को जर्मन सामाजिक-जनवादियों ने अपना लिया था, खास तौर से जबकि एंगेल्स की क्रांतिकारी व्याख्याओं को अच्छी तरह दराज़ में बंद रखा गया था और जबकि जीवन की सारी परिस्थितियां ऐसी थीं, जिन्होंने जनता को बहुत दिनों तक के लिए क्रांति से "विलग कर दिया" था। 

 . एफर्ट कार्यक्रम के मस्विदे की आलोचना

 

राज्य के संबंध में मार्क्सवादी सिद्धांत की जांच-पड़ताल करते समय एफर्ट कार्यक्रम 45 के मस्विदे की आलोचना की , जिसे एंगेल्स ने काउत्स्की के पास २६ जून, १८६१ को भेजा था और जो कहीं दस वर्ष बाद जाकर Neue Zeit में छपा था , अवहेलना नहीं की जा सकती , क्योंकि उस आलोचना में मख्य रूप से राज्य के ढांचे के संबंध में सामाजिक-जनवादियों के अव सरवादी विचारों को ही लिया गया था।

 चलते-चलते हम यह भी बता दें कि अर्थव्यवस्था के प्रश्नों पर भी एंगेल्स ने बहुत ही महत्व की बात कही है, जिससे पता चलता है कि प्राधनिक पूंजीवाद के अंदर होनेवाले परिवर्तनों पर वह कितने ध्यानपूर्वक और सोच-विचार करते हुए नज़र रखते थे और इसीलिए वह किस प्रकार हमारे युग के , साम्राज्यवादी युग के कार्यभार भी एक हद तक पहले ही देख सके थे। वह उद्धरण यह है : कार्यक्रम के मस्विदे में पूंजीवाद की विशेषता बताने के लिए प्रयुक्त शब्द " योजना के अभाव" (Planlosigkeit) के संबंध में एंगेल्स लिखते हैं :

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"... यदि हम संयुक्त स्टाक कंपनियों से ट्रस्टों तक पहुंचते है . उद्योग की पूरी की पूरी शाखाओं पर प्रभुत्व और इजारेदारी काय हैं , तो निजी उत्पादन की ही नहीं, वरन योजना के अभाव की बार खत्म हो जाती है" (Neue Zeit, बीसवां वर्ष , खडं १, १९०१ - १६०२ पृ० ८) 

यहां पूंजीवाद की नवीनतम अवस्था के, अर्थात साम्राज्यवाद के सैद्धंतिक मूल्यांकन में सबसे बुनियादी चीज़ मौजूद है , याने यह कि पूंजीवाद इजारेदार पूंजीवाद बन जाता है। दूसरे पर जोर देना ज़रूरी है, क्योंकि यह ग़लत बुर्जुआ-सुधारवादी धारणा बहुत फैली हुई है कि इजारेदार पूंजीवाद' या राजकीय-इजारेदार पूंजीवाद' अब पूंजीवाद नहीं रह गया है , बल्कि उसे " राजकीय समाजवाद" या ऐसी ही और कोई चीज़ कहा जा सकता है। निस्संदेह पूर्ण नियोजन को ट्रस्टों ने पैदा नहीं किया है, न आज कर रहे हैं और न कर ही सकते हैं। लेकिन वे चाहे जितना भी नियोजन करें, पूंजीपति थैलीशाह उत्पादन की मात्रा का राष्ट्रीय पैमाने पर और अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर भी चाहे जितना भी पेशगी हिसाब लगायें , और वे चाहे जितना भी व्यवस्थित रूप से उसे चलायें, हम फिर भी पूंजीवाद के अंतर्गत ही रहते हैं - यह सच है कि यह पूंजीवाद की नयी मंज़िल है , लेकिन निस्संदेह वह अभी भी पूंजीवाद ही है। इस तरह के पूंजीवाद की समाजवाद से "समीपता' सर्वहारा वर्ग के सच्चे प्रतिनिधियों के लिए समाजवादी क्रांति की समीपता, सुगमता , व्यावहारिकता और तात्कालिकता के पक्ष में दलील होनी चाहिए, इस प्रकार की क्रांति से इनकार को बर्दाश्त करने की या पूंजीवाद को और आकर्षक रूप में चित्रित करने की , जिसकी कोशिश में तमाम सुधारवादी लगे हुए हैं , दलील कदापि नहीं।

 लेकिन हम फिर राज्य के प्रश्न पर लौटें। इस पत्र में एंगेल्स ने तीन अत्यंत मूल्यवान सुझाव रखे हैं : पहले , जनतंत्र के प्रश्न के संबंध में ; दूसरे , जातियों की समस्या के राज्य की प्रणाली से संबंध के बारे में ; और तीसरे , स्थानीय स्वशासन के संबंध में। 

जहां तक जनतंत्र का संबंध है , एंगेल्स ने उसे ही एर्फ़र्ट कार्यक्रम के मस्विदे की अपनी आलोचना का मूल केंद्र बनाया था। और अगर हम इस बात की याद करें कि एफ़र्ट कार्यक्रम को पूरी दुनिया की सामाजिक 

 

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जनवादी पार्टियों में कितना महत्व मिला है, कि वह पूरे दूसरे इंटरनेशनल  के लिये एक आदर्श बन गया है, तो यह बिना किसी अतिशयोक्ति के कहा सकता है कि उसके ज़रिए एंगेल्स ने पूरे दूसरे इंटरनेशनल की अवसर वादिता की आलोचना की थी। 

एगेल्स लिखते हैं : " मस्विदे की राजनीतिक मांगों में एक बहुत बड़ा दोष है। उसमें ठीक उसका प्रभाव है ( शब्दों पर ज़ोर एंगेल्स का है ), जो कहा जाना चाहिए था।"

 और आगे चलकर वह इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि जर्मन संविधान १८५० के घोरतम प्रतिक्रियावादी संविधान की ही एक नक़ल है , कि राइख़स्टाग , जैसा कि विल्हेल्म लीब्कनेख्त ने कहा था , "निरंकुशतावाद को ढंकने का पर्दा" है; और यह कि ऐसे संविधान के आधार पर , जोकि तमाम छोटी रियासतों की मौजूदगी को और जर्मनी की छोटी-छोटी रिया सतों के संघ को कानूनी मानता हो , "श्रम के तमाम साधनों को सार्व जनिक संपत्ति में रूपांतरित करने की इच्छा स्पष्टतया उपहासास्पद है"

 यह पूरी तरह जानते हुए कि कार्यक्रम में जर्मनी के अंदर जनतंत्र की स्थापना की मांग को शामिल करना क़ानूनी तौर पर असंभव है, एंगेल्स आगे कहते हैं : " इस विषय को स्पर्श करना खतरनाक है"। लेकिन एंगेल्स इस प्रत्यक्ष बात को मानकर चुप नहीं रह जाते , जो "सब को" संतुष्ट कर देती है। वह आगे कहते हैं : "कुछ भी हो , उसे तो किसी न किसी रूप में हाथ में लेना ही होगा। यह कितना आवश्यक है , इसे ठीक इस समय अवसरवाद प्रदर्शित कर देता है, जो सामाजिक-जनवादी अखबारों के एक बड़े भाग में फैलता (einreilsende) जा रहा है। समाजवादियों के विरुद्ध कानून 46 के फिर से लागू किये जाने के भय से अथवा उस कानून के प्रभुत्व के ज़माने में बहुत जल्दबाजी में की गयी नाना प्रकार की उद् घोषणाओं को स्मरण कर वे अब चाहते हैं कि तमाम पार्टी मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से पूरा करने के लिए पार्टी जर्मनी में विद्यमान क़ानूनी व्यवस्था को पर्याप्त माने ..." 

 इस बुनियादी बात पर एंगेल्स खास तौर से जोर देते हैं कि जर्मनी के सामाजिक-जनवादी समाजवादियों के विरुद्ध असाधारण कानून के फिर से लागू किये जाने के भय के कारण ऐसा कर रहे थे और वह इसे 

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निस्संकोच अवसरवाद कहते हैं। वह ऐलान करते हैं कि ठीक इसीलिए कि । जर्मनी में न जनतंत्र था , न अाजादी , " शांतिमय" मार्ग के सब स्वप्न बिलकुल अर्थहीन थे। एंगेल्स काफ़ी सतर्क हैं ताकि अपने हाथों को न बंधने दिया जाये। वह मानते हैं कि जनतंत्रवादी या बहुत ही स्वतंत्र देशों में समाजवाद की अोर शांतिमय विकास की " कल्पना की जा सकती है" ( केवल " कल्पना की जा सकती है")! लेकिन, जर्मनी में, वह फिर कहते हैं

"... जर्मनी में , जहां सरकार प्रायः सर्वशक्तिमान है तथा जहां राइख स्टाग और सारी दूसरी प्रतिनिधिमूलक संस्थानों के पास कोई वास्तविक सत्ता नहीं है , इस तरह की घोषणा करने का - जबकि ऐसा करने की कोई ज़रूरत ही नहीं हैमतलब है निरंकुशतावाद को ढंकने का पर्दा हटाना और स्वयं उसे ढंकने का पर्दा बन जाना।

जर्मनी की सामाजिक-जनवादी पार्टी के , जिसने एंगेल्स की इस सलाह को दराज़ में बंद कर दिया था, अधिकांश अधिकारी नेता वास्तव में निरंकुशतावाद को ढंकने का एक पर्दा साबित हुए। 

 "... इस तरह की नीति के फलस्वरूप पार्टी ठीक रास्ते से भटक सकती है। ग्राम, अमूर्त राजनीतिक प्रश्नों को सामने लाया जाता है और इस तरह उन तात्कालिक ठोसप्रश्नों को छपाया जाता है, जो पहली ही बड़ी घटनाग्रों के समय, पहले ही राजनीतिक संकट के समय खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा और क्या परिणाम निकलेगा कि निर्णायक घड़ी में पार्टी अपने को सहसा असहाय पाती है और सबसे निर्णायक मामलों पर अनिश्चितता और मतभेदों का इसलिए बोलबाला हो जाता है कि उन पर कभी बहस ही नहीं की गयी थी?.

.    "समय विशेष के क्षणिक हितों की खातिर महान , प्रमुख विचारों की यह विस्मति , पागे के परिणामों की चिंता किये बिना क्षणिक सफलता के लिए यह प्रयास तथा उनके लिए संघर्ष , वर्तमान के लिए प्रांदोलन के भविष्य की यह बलि-हो सकता है कि इस सब के पीछे 'नेक' इरादे हो, परंतु यह अवसरवाद है और अवसरवाद बना रहता है तथा 'नेक' अवसरवाद शायद सारे अवसरवादों से सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। 

" . . . यदि कोई चीज़ निश्चित है, तो वह यह है कि हमारी पार्टी तथा मजदूर वर्ग केवल जनवादी जनतंत्र के रूप में ही सत्तारूढ़ हो सकते

 

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है जैसा कि महान फ्रांसीसी क्रांति पहले ही दिखा चुकी है, यह तो नारा अधिनायकत्व के लिए विशिष्ट रूप तक है .. "

यहां उस आधारभूत विचार को , जो मार्क्स की तमाम रचनाओं के हर एक मूल सूत्र की तरह फैला हुआ है , याने यह कि जनवादी जनतंत्र दारा वर्ग के अधिनायकत्व का निकटतम रूप है , एंगेल्स ने खास तौर से स्पष्ट रूप में दोहराया है। इसलिए कि इस तरह के जनतंत्र में - जो पूंजी के आधिपत्य को और इसीलिए जनता के उत्पीड़न और वर्ग संघर्ष को ज़रा भी खत्म नहीं करता - यह संघर्ष अनिवार्य रूप से इस तरह फैलता, विकसित होता, उभरता और तेज़ होता है कि ज्यों ही उत्पीडित जनता के बुनियादी हितों को संतुष्ट करने की संभावना पैदा हो जाती है, त्यों ही उस संभावना को अनिवार्यतः और एकमात्र सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व के ज़रिए, सर्वहारा वर्ग द्वारा उस जनता के नेतृत्व के ज़रिए मूर्त रूप दे दिया जाता है। पूरे दूसरे इंटरनेशनल के लिए ये भी मार्क्सवाद के "भूले हुए शब्द हैं" और १९१७ की रूसी क्रांति की पहली छमाही के दौरान मेंशेविक पार्टी के इतिहास ने खास तौर से स्पष्ट रूप से ज़ाहिर कर दिया कि इन्हें भुला दिया गया है। 

आबादी की जातीय रचना के प्रसंग में संघीय जनतंत्र के प्रश्न पर एंगेल्स ने लिखा था

"वर्तमान जर्मनी का" ( जिसका प्रतिक्रियावादी राजतांत्रिक संविधान है और जो उतने ही प्रतिक्रियावादी ढंग से छोटी-छोटी ऐसी रियासतों में बंटा हुआ है, जिससे कि "प्रशावाद" की विशेषताएं कुल जर्मनी में विल यित होने के बजाय स्थायी बन रही हैं ) "स्थान क्या ले? मेरी राय में सर्वहारा एकीकृत तथा अखंड जनतंत्र के रूप का ही उपयोग कर सकते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका के विशाल भूभाग में संघीय जनतंत्र कुल मिलाकर अब भी एक अावश्यकता है, हालांकि पूर्वी राज्यों में वह बाधक बनने लगा है। ब्रिटेन में यह आगे की अोर एक पग होगा , जहां दो द्वीपों पर चार जातियों के लोग बसे हुए हैं और जहां एक संसद होने के बावजूद क़ानून की तीन भिन्न-भिन्न प्रणालियां साथ-साथ अस्तित्वमान हैं। छोटे-से स्विट ज़रलैंड में यह दीर्घकाल से बाधक है , उसे वहां केवल इसलिए सहन किया जा रहा है कि स्विटज़रलैंड यूरोपीय राजकीय प्रणाली का विशुद्ध रूप से निष्क्रिय सदस्य बने रहने से संतुष्ट है। जर्मनी के लिए स्विट्जरलैंड के 

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नमूने पर संघीकरण बहुत बड़ा प्रतिगामी पग होता। दो मुद्दे संघीय राज्य और पूरी तरह एकीकृत राज्य का भेद निश्चित करते हैं - एक तो प्रत्येक सदस्य राज्य , प्रत्येक प्रांत की अपनी दीवानी और फ़ौजदारी कानूनी तथा न्यायिक प्रणाली होती है ; और दूसरे, एक जन-सदन के अलावा राज्यों के प्रतिनिधियों का एक सदन भी होता है, जिसमें प्रत्येक प्रांत, चाहे छोटा हो या बड़ा, मतदान करता है ..." जर्मनी में संघीय राज्य पूर्णतः एकीकृत राज्य में संक्रमण मात्र है और १८६६ तथा १८७० में "ऊपर से हुई क्रांति' को पीछे नहीं मोड़ा जाना चाहिए, बल्कि " नीचे से किये जानेवाले आंदोलन' द्वारा उसका अनुपूरण किया जाना चाहिए। 

 

 राज्य के रूपों के संबंध में एंगेल्स ने उदासीनता नहीं दिखायी। इसके विपरीत उन्होंने तमाम संक्रमणकालीन रूपों का अत्यधिक सावधानी से विश्ले षण करने का प्रयत्न किया ताकि प्रत्येक स्थिति की ठोस ऐतिहासिक परि स्थितियों के आधार पर यह निर्णय कर सकें कि वह संक्रमणकालीन रूप किस चीज़ से किस चीज़ की ओर संक्रमण कर रहा है।

 सर्वहारा वर्ग और सर्वहारा क्रांति की दृष्टि से मार्क्स की तरह एंगेल्स भी जनवादी केंद्रीयतावाद पर, एकीकृत और अविभाज्य जनतंत्र पर जोर देते थे। संघीय जनतंत्र को या तो वह अपवाद और विकास के मार्ग में बाधा समझते थे, या राजतंत्र से केंद्रीकृत जनतंत्र की ओर संक्रमण, कुछ विशेष परिस्थितियों में "आगे की ओर क़दम" मानते थे। और उन विशेष परिस्थितियों में वह जातियों के प्रश्न को पहले रखते थे। 

छोटे-छोटे राज्यों की प्रतिक्रियावादी प्रकृति और कुछ ठोस परिस्थितियों में जातियों के प्रश्न द्वारा उसे छिपाने की प्रवृत्ति की निर्मम आलोचना करते हुए मार्क्स की तरह ही एंगेल्स ने भी जातियों के प्रश्न से कतराने की कभी लेशमात्र इच्छा भी नहीं दिखायी, ऐसी इच्छा, जिसके दोषी बहुधा हालैंड और पोलैंड के वे मार्क्सवादी हैं, जो "अपने" लघु राज्यों के संकीर्ण-कूपमंडूकतापूर्ण राष्ट्रवाद के विरुद्ध घोर क़ानूनी संघर्ष को अपना प्रस्थान-बिंदु बनाते हैं। 

इंगलैंड के संबंध में भी, जहां लगता है कि भौगोलिक परिस्थितिया, एक भाषा और कई शताब्दियों के इतिहास ने उसके विभिन्न छोटे भाग में जातियों के प्रश्न को "खत्म कर दिया" - उस देश के संबंध में भी

 

 

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एगेल्स ने इस स्पष्ट बात को ध्यान में रखा कि वहां जातियों की समस्या अभी तक हल नहीं हुई है और इसलिए उन्होंने कहा कि वहां संघीय जनतंत्र की स्थापना "आगे की अोर क़दम' होगी। साफ़ है कि यहां संघीय जनतंत्र की कमियों की आलोचना छोड़ देने या एक एकताबद्ध और केंद्रीकृत जनवादी जनतंत्र के पक्ष में अपने अत्यंत शक्तिशाली प्रचार और संघर्ष को ढीला करने की कोशिश का कहीं नाम-निशान तक नहीं है।

 लेकिन जनवादी केंद्रीयतावाद को एंगेल्स ने उस नौकरशाही भावना में कदापि नहीं समझा , जिसमें बुर्जुश्रा और टुटपुंजिया विचारधारा-निरूपक और अराजकतावादी भी इसे समझते हैं। केंद्रीयतावाद एंगेल्स के लिए ऐसे व्यापक स्थानीय स्वशासन को लेशमात्र वर्जित नहीं करता , जो "कम्यूनोंऔर जिलों के द्वारा राज्य की एकता की स्वेच्छा से रक्षा करते हुए तमाम नौकरशाही और ऊपर से "हुक्म चलाने की" प्रथा को पूर्णतया ख़त्म करता है। राज्य के मार्क्सवादी कार्यक्रम संबंधी विचारों को और विस्तार से बताते हुए एंगेल्स ने लिखा था

"... तो फिर एकीकृत जनतंत्र , पर वर्तमान फ्रांसीसी जनतंत्र के अर्थ में नहीं, जो १७६८ में स्थापित सम्राटरहित साम्राज्य के अलावा और कुछ नहीं है। १७६२ से १७६८ तक प्रत्येक फ्रांसीसी ज़िला , प्रत्येक समुदाय (Gemeinde) अमरीकी नमूने के पूर्ण स्वशासन का उपभोग कर रहा था। और यही हमारे पास भी होना चाहिए। स्वशासन कैसे संगठित हो, कैसे नौकरशाही के बिना काम किया जाये , यह हमारे सामने अमरीका तथा प्रथम फ्रांसीसी जनतंत्र प्रदर्शित कर चुके हैं और आज भी प्रास्ट्रेलिया, कनाडा तथा अन्य ब्रिटिश उपनिवेश प्रदर्शित कर रहे हैं। और इस किस्म का प्रांतीय तथा सामुदायिक स्वशासन उदाहरणार्थ स्विस संघवाद' से कहीं अधिक स्वतंत्र संस्थान है, जिसके अंतर्गत यह सच है कि प्रांत संघीय राज्य से संबंध के मामले में अत्यंत स्वतंत्र है, परंतु साथ ही वह ज़िला तथा समदाय से संबंध के मामले में भी स्वतंत्र है। प्रांतीय सरकारें ज़िला गव नरों (Bezirksstatthalter) और प्रीफ़ेक्टों को नियुक्त करती हैं, जो अंग्रेज़ी भाषाभाषी देशों के लिए अज्ञात वस्तु है और जिसे हमें अपने यहां भी भविष्य में प्रशियाई लांडराटों और रेगिरूंगसराटों" ( कमीश्नरों , जिलों के पलिस अफसरों, गवर्नरों और ग्राम तौर से ऊपर से नियुक्त किये जानेवाले तमाम अधिकारियों ) " की ही तरह दृढ़तापूर्वक मिटाना चाहिए।

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एमेल्म का सुझाव  है कि कार्यक्रम में स्वशासन संबंधी धारा इन शब्दों में लिखी जाये : "प्रांतों" (गुवेनियायों या प्रदेशों ), "जिलों तथा समुदायों में सार्वजनिक मताधिकार द्वारा निर्वाचित अधिकारियों के माध्यम से पूर्ण स्वशासन। राज्य द्वारा नियुक्त समस्त स्थानीय और प्रांतीय सता का उन्मूलन ।" 

मैं पहले भी 'प्राब्दा'47 में (२८ मई, १६१७ के अंक ६८ में ), जिसे केरेन्स्की और दूसरे "समाजवादी" मंत्रियों की सरकार ने बंद कर दिया था, बता चुका हूं कि इस धारा के संबंध में - और निस्संदेह किसी भी तरह केवल इसी संबंध में नहीं - मिथ्या क्रांतिकारी मिथ्या जनवाद के हमारे मिथ्या समाजवादी प्रतिनिधि बहुत ही घृणित रूप से जनवादिता से पथभ्रष्ट हुए हैं। स्वाभाविक ही है कि उन लोगों ने, जिन्होंने "गठबंधन" के जरिए अपने को साम्राज्यवादी बुर्जुग्रा वर्ग के साथ बांध लिया है, इस आलोचना को अनसुना कर दिया है। 

इस चीज़ को ध्यान में रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि एगेल्स सच्चे तथ्यों को लेकर , एक निश्चित उदाहरण के आधार पर लोगों के अंदर, खास तौर से टुटपुंजिया जनवादियों के अंदर फैले हुए इस पूर्वाग्रह को गलत साबित करते हैं कि केंद्रीकृत जनतन्त्र की अपेक्षा संघीय जनतन्त्र में आवश्यक रूप से अधिक स्वतंत्रता होती है। यह बात सही नहीं है। १७९२-१७९८ के केद्रीकृत फ्रांसीसी जनत्न्त्र और स्विस संघीय जनतत्र के संबंध में एगेल्स द्वारा उपस्थित किये गये तथ्यों से बह गलत साबित हो जाती है। वस्तुतः जनवादी केद्रीकृत जनतन्त्र ने सघीय जनतंत्र की अपेक्षा अधिक स्वतन्त्रता दी थी। दूसरे शब्दों में, इतिहास में ज्ञात सबसे अधिक स्थानीय, भातीय तथा अन्य प्रकार की स्वतन्त्रता संघीय जनतव ने नहीं, बल्कि केंद्रिकृत जनतन्त्र ने दी।

हमारी पार्टी के प्रचार और आंदोलन में इस चीज की ओर और मी तथा केद्रीकृत जनतव और स्थानीय स्वशासन की पूरी समस्या की और आम तोर पर बहुत कम ध्यान दिया गया तथा दिया जा रहा है। 

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. मार्क्स को पुस्तक 'फ्रांस में गृहयुद्ध' के लिए

१८६१ में लिखी गयी भूमिका

 

 'फ्रांस में गृहयुद्ध' के तीसरे संस्करण के लिए लिखित अपनी भूमिका में - इस भूमिका पर १८ मार्च , १८६१ की तारीख़ है और वह सबसे पहले Neue Zeit में छपी थी - एंगेल्स ने राज्य के प्रति रवैये से संबंधित प्रश्नों के बारे में प्रासंगिक ढंग से कही गयी कई दूसरी दिलचस्प बातों के साथ साथ कम्यन के सबक़ों का उल्लेखनीय स्पष्टता के साथ सार दिया है 48। इस सार को , जिसे कम्यून और लेखक के बीच बीस वर्षों के फ़ासले के पूरे अनुभव ने और भी गहन बना दिया है और जिसे जर्मनी में अत्यधिक प्रचलित "राज्य में अंधविश्वास" के खिलाफ़ ख़ास तौर से लक्षित किया गया था , हम पूर्ण अधिकार के साथ विचाराधीन प्रश्न के संबंध में मार्क्सवाद का अंतिम शब्द कह सकते हैं।

एंगेल्स कहते हैं कि फ्रांस में हर क्रांति के बाद मज़दूर हथियारबंद हो जाते थे; "अतः राज्य के संचालकों, बर्जा लोगों का यह प्रथम मूलमंत्र था कि मज़दूरों को निहत्था कर दिया जाये। इसीलिए मजदूरों द्वारा जीती हई प्रत्येक क्रांति के बाद एक नया संघर्ष छिड़ जाता था , जिसका अंत मज़दूरों की पराजय में होता था।

 

बुर्जुवा क्रांतियों के अनुभव का यह सार जितना संक्षिप्त है, उतना ही अर्थपूर्ण भी है। मसले के सार को - अन्य बातों के साथ ही राज्य के प्रश्न पर भी ( क्या उत्पीडित वर्ग के हाथ में हथियार हैं ? )- यहां बहुत ही उल्लेखनीय ढंग से ग्रहण किया गया है। बुर्जुवा विचारधारा से प्रभावित प्रोफ़ेसरों और साथ ही टुटपुंजिया जनवादियों द्वारा समस्या के ठीक इसी सार की सबसे अधिक अवहेलना की जाती है। १९१७ की रूसी क्रांति के समय बुर्जुमा क्रांति के इस भेद को खोल देने का सम्मान (कैवेन्याक जैसा सम्मान ) "मेंशेविक", "मिथ्या मार्क्सवादी' त्सेरेतेली को प्राप्त हुआ था। ११ जून के अपने "ऐतिहासिक' भाषण में त्सेरेतेली के मुंह से पेत्रोग्राद के मजदूरों को निःशस्त्र करने के बारे में बुर्जुवा वर्ग के निश्चय की बात निकल गयी थी- निस्संदेह उन्होंने उसका ज़िक्र अपने ही निर्णय के रूप में और सामान्यतः " राज्य की" आवश्यकता के रूप में किया था!       49 

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त्सेरेतेली का ११ जून का ऐतिहासिक भाषण निस्संदेह १९१७ की क्रांति के प्रत्येक इतिहासकार के लिए इस बात के एक बहुत ही जीते. जागते उदाहरण का काम देगा कि श्री त्सेरेतेली के नेतृत्व में समाजवादी क्रांतिकारियों और मेंशेविकों का गुट किस प्रकार क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग के विरुद्ध बुर्जुवा वर्ग से जा मिला था।

एंगेल्स का दूसरा प्रासंगिक कथन, जो भी राज्य के प्रश्न से ही संबंधित है, धर्म के बारे में है। यह बात भली भांति विदित है कि ज्यों ज्यों जर्मन सामाजिक जनवाद का पतन होता गया और वह ज्यादा से ज़्यादा अवसरवादी होता गया, त्यों-त्यों उसने इस प्रसिद्ध मूत्र में कूप मंडूकीय ढंग से, ज़्यादा से ज्यादा अवसरों पर गलत अर्थ लगाना शुरू कर दिया : "धर्म को एक व्यक्तिगत मामला घोषित कर देना"। याने इस सूत्र को तोड़-मरोड़कर यह मतलब निकाला गया कि क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग की पार्टी के लिए भी धर्म एक व्यक्तिगत मामला है !! एंगेल्स ने सर्वहारा वर्ग के क्रांतिकारी कार्यक्रम के साथ इसी घोर गद्दारी का विरोध किया था। १८९१ में उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर अवसरवाद के बहुत ही कमज़ोर अंकुर देखे थे और इसलिए बहुत ही सतर्कता से कहा था :

 "कम्यन में चूंकि प्रायः केवल मजदूर या मजदूरों के जाने-माने प्रति निधि बैठते थे , इसलिए उसके निर्णयों का निश्चित रूप से सर्वहारा स्वरूप था। इन निर्णयों द्वारा या तो ऐसे सुधारों की उद्घोषणा की गयी , जिन्हें जनतंत्रवादी बुर्जुग्रा लोगों ने महज़ बुज़दिली के कारण पास नहीं किया था , लेकिन जो मजदूर वर्ग की उन्मुक्त क्रियाशीलता के लिए प्रावश्यक अाधार प्रस्तुत करते थे- जैसे कि इस सिद्धांत का क्रियान्वयन कि जहां तक राज्य का संबंध है, धर्म वस्तुतः एक व्यक्तिगत प्रश्न है - या कम्यन ने ऐसी प्राज्ञप्तियां जारी की , जो सीधे-सीधे मजदूर वर्ग के हित में थीं और जो कुछ हद तक पुरानी समाज-व्यवस्था को गहरा आघात पहुंचाती थी...." 

" राज्य का संबंध है"- इन शब्दों पर एंगेल्स ने जर्मनी के उन अवसर वादियों पर सीधी चोट के रूप में जान-बझकर जोर दिया था, जिन्होंने घोषणा कर दी थी कि पार्टी के संबंध में धर्म एक व्यक्तिगत मामला है और इस तरह से क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग की पार्टी को अत्यंत निकृष्ट " स्वतंत्र चिंतक" कपमंडकता के स्तर पर गिरा दिया था , जो धर्म-निर 

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पेक्षता को मानने के लिए तो तैयार है, लेकिन जनता को मतिमंद बनाने वाली धर्म की अफ़ीम के खिलाफ़ पार्टी के संघर्ष के कार्यभार का परित्याग कर देती है। 

१९१४ में जर्मन सामाजिक-जनवादी पार्टी के लज्जाजनक दिवालियेपन के बुनियादी कारणों का पता लगाते समय इस पार्टी के भावी इतिहासकार को इस सवाल के बारे में उस पार्टी के सैद्धांतिक नेता काउत्स्की के लेखों के गोल-मोल ऐलानों से लेकर , जो अवसरवाद के लिए पूरा द्वार खोल देते हैं , १९१३ में Los-von-Kirche-Bewegung ( चर्च से अलग होने के अांदोलन ) की ओर पार्टी के रवैये तक में बहुत-सी रोचक सामग्री मिल जायेगी। 

लेकिन हमें देखना चाहिए कि कम्यून के बीस वर्ष बाद जुझारू सर्वहारा वर्ग के लिए एंगेल्स ने उससे क्या सबक़ निकाले थे। 

जिन सबक़ों को एंगेल्स ने सबसे अधिक महत्व दिया था , वे ये हैं

"... यथार्थतः पूर्ववर्ती केंद्रीकृत सरकार की उत्पीड़क शक्ति ही - फ़ौज , राजनीतिक पुलिस , नौकरशाही , जिसे १७६८ में नेपोलियन ने संगठित किया था और जिसे बाद में प्रत्येक नयी सरकार ने बहुमूल्य उपकरण के रूप में अपनाया था और अपने विपक्षियों के खिलाफ़ इस्तेमाल किया था ; यथार्थतः यह शक्ति ही हर स्थान पर उसी तरह मिटनेवाली थी, जैसे कि वह पेरिस में मिट चुकी थी। 

 "कम्यून प्रारंभ से ही यह महसूस करने को बाध्य हुआ था कि मज़दूर वर्ग एक बार सत्ता पा लेने पर पुरानी राज्य-मशीन से काम नहीं चला सकता; और यह कि अपनी सद्यः प्राप्त प्रभुता को सुरक्षित रखने के लिए इस मज़दूर वर्ग को एक ओर तो पुरानी दमनकारी मशीन को, जो पहले उसके खिलाफ़ इस्तेमाल की जाती थी , खत्म करना होगा और दूसरी ओर, उसे अपने ही प्रतिनिधियों और अफ़सरों से अपनी हिफ़ाज़त करने के लिए यह घोषित करना होगा कि उनमें से हरेक, बिना अपवाद के, किसी भी क्षण हटाया जा सकेगा ..." 

 एंगेल्स इस बात पर बार-बार जोर देते हैं कि न केवल राजतंत्र के अंदर , बल्कि जनवादी जनतंत्र के अंदर भी राज्य राज्य ही रहता है, अर्थात अपने अफ़सरों को , "समाज-सेवकों' को, अपनी संस्थाओं को समाज का मालिक बना देने की उसकी बुनियादी विशेषता कायम रहती है। 

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" राज्य तथा राज्य की संस्थाओं के इस प्रकार समाज-सेवक के बजाय समाज के मालिक बन जाने के खिलाफ़ , जो अतीत के सभी राज्यों में अनिवार्यतः हुअा करता था , कम्यून ने दो अचूक नुस्खे इस्तेमाल किये। अव्वल तो उसने तमाम पदों की पूर्ति - प्रशासकीय , न्याय-विभागीय और शैक्षणिक - संबंधित लोगों के सर्वमताधिकार के अाधार पर चुने हुए अधि कारियों द्वारा करायी और इस शर्त के साथ कि निर्वाचकों द्वारा किसी भी समय उनकी नियुक्ति मंसूख की जा सकेगी। दूसरे , बड़े और छोटे सभी अधिकारियों को वही वेतन दिया गया , जो अन्य मजदूरों को मिलता था। कम्यून द्वारा सबसे अधिक तनख्वाह जो किसी को दी जा सकती थी, वह ६,००० फ़क थी * । इस प्रकार पदों के पीछे दौड़ने और पदलोलपता के विरुद्ध एक कारगर रोक खड़ी कर दी गयी। यह रोक प्रतिनिधि-संस्थानों के सदस्यों को दिये गये अनुल्लंघनीय आदेशों के अतिरिक्त थी, जिनका अलग से विधान किया गया था।

यहां एंगेल्स उस रोचक सीमा-रेखा पर पहुंच जाते हैं , जहां पहुंचकर सुसंगत जनवाद एक तरफ़ तो समाजवाद में बदल जाता है और दूसरी तरफ़, समाजवाद की मांग करता है, क्योंकि राज्य को ख़त्म करने के लिए यह ज़रूरी है कि राज्य-सेवा के कामों को नियंत्रण और हिसाब किताब के ऐसे सरल कामों में बदल दिया जाये कि उन्हें आबादी का बहुत बड़ा भाग और अंत में आबादी का प्रत्येक व्यक्ति कर सके। और पदलोलुपता को पूर्ण रूप से ख़त्म करने के लिए यह ज़रूरी है कि इस बात को असंभव बना दिया जाये कि कोई राज्य-सेवा के " सम्मानित' पदों का इस्तेमाल, चाहे वे लाभरहित ही क्यों न हों, बैंकों और ज्वाइंट स्टाक कंपनियों में ऊंचे लाभवाले ओहदों पर पहुंचने के लिए कर सके, जैसा कि सभी स्वतंत्रतम पूंजीवादी देशों में बराबर होता रहता है।

 लेकिन एंगेल्स ने वह ग़लती नहीं की , जो कुछ मार्क्सवादी , उदाहरण के लिए, जातियों के अात्मनिर्णय के अधिकार के बारे में विचार करते 

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 * उस समय लगभग २,४०० रूबल , वर्तमान विनिमय दर के हिसाब से लगभग ६,००० रूबल। जो बोल्शेविक कहते हैं कि नगरपालिकामा के सदस्यों की तनख्वाह राज्य भर में अधिक से अधिक ६,००० रूबल की जगह, जो बिलकुल पर्याप्त है , ,००० रूबल कर दी जाये, वे एक अक्षम्य काम कर रहे हैं 1  

 

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समय करते हैं और यह तर्क पेश करते हैं कि पूंजीवाद के अंतर्गत यह असंभव है और समाजवाद में वह गैर ज़रूरी हो जायेगा। यह चतुरतापूर्ण लगनेवाला , किंतु वास्तव में ग़लत तर्क किसी भी जनवादी संस्था के संबंध में , जिसमें अधिकारियों का परिमित वेतन भी शामिल है , दिया जा सकता है , क्योंकि पूंजीवाद' के अंतर्गत पूर्ण रूप से सुसंगत जनवाद' असंभव है और समाजवाद में तमाम जनवाद' विलुप्त हो जायेगा।

      यह ऐसा कुतर्क है , जो इस पुराने मज़ाक़ से मिलता-जुलता है कि अगर आदमी के सिर का एक बाल और कम हो जाये, तो क्या वह अादमी गंजा हो जायेगा

जनवाद का अंत तक विकास करना, इस विकास के रूपों को ढूंढ़ना , व्यवहार की कसौटी पर उनकी परीक्षा करना , अादि - यह सब कुछ सामा जिक क्रांति के लिए किये जानेवाले संघर्ष से संबंधित कामों में ही शामिल है। अलग से लिया जाये , तो किसी भी तरह का जनवाद समाजवाद नहीं लायेगा। लेकिन वास्तविक जीवन में जनवाद' को कभी "अलग से" नहीं " लिया जायेगा", उसे दूसरी चीज़ों " के साथ लिया जायेगा", वह आर्थिक व्यवस्था पर भी अपना प्रभाव डालेगा , उसके रूपांतर की क्रिया को प्रेरणा प्रदानकरेगा , फिर स्वयं भी उस आर्थिक विकास से प्रभावित होगा और यह क्रम इसी तरह जारी रहेगा। यही जीवित इतिहास का द्वंद्व है। 

एंगेल्स आगे कहते हैं

" पहले की राज्य-सत्ता का इस प्रकार छिन्न-भिन्न होना (Sprengung) और उसके स्थान पर एक नयी और सच्ची जनवादी राज्य-सत्ता की स्थापना होना 'गहयद्ध' के तीसरे भाग में विवरण के साथ वर्णित किया गया है। पर यहां उसकी कुछ विशेषताओं को संक्षिप्त रूप में दुहराना आवश्यक था, क्योंकि खास तौर से जर्मनी में राज्य में अंधविश्वास दर्शन के क्षेत्र से बाहर निकलकर बुर्जुग्रा लोगों और बहुत-से मज़दूरों तक की सामान्य चेतना में प्रवेश कर गया है। दार्शनिक धारणा के अनुसार राज्य 'विचार का साकार रूप' है या दिव्य राम-राज है, अर्थात दार्शनिक शब्दों में वह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें शाश्वत सत्य और न्याय चरितार्थ होता है या होना चाहिए। इसी से राज्य तथा उससे लगाव रखनेवाली सभी चीजों के प्रति अंधविश्वासयुक्त श्रद्धा की भावना उत्पन्न होती है, जो और भी आसानी से इसलिए जड़ पकड़ती है कि लोग बचपन से ही यह सोचने के

आदी हैं

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कि पूरे समाज के कारबार और उसकी भलाई की देखरेख पुराने समय से चली ती व्यवस्था के अलावा और दूसरे तरीके से नहीं हो सकती - अर्थात केवल राज्य और मोटी तनख्वाहवाले उसके अफ़सरों के जरिए ही हो सकती है। पुश्तैनी राजतंत्र में विश्वास करना छोड़कर जब लोग जनबादी जनतंत्र का दम भरने लगते हैं, तो वे सोचते हैं कि उन्होंने एक असाधारण, बड़ी हिम्मत का पग उठाया है। लेकिन राज्य दरअसल एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का एक यंत्र मात्र है, राजतंत्र या जनतंत्र दोनों में सचमुच एक-सा; और ज्यादा से ज्यादा हम वर्ग प्राधान्य प्राप्त करने के हेतु चलाये गये सर्वहारा वर्ग के संघर्ष की विजय के बा उसे विरासत में मिली हुई बुराई कह सकते हैं, जिसके निकृष्टतम पहलूओ को सर्वहारा वर्ग को कम्यून की तरह तुरंत काट-छां कर फेंकना होगा और समय तक ठहराना पड़ेगा, जब तक नयी, मुक्त सामाजिक अवस्थाओ में पली एक पीढ़ी राज्य के पूरे कूड़ा-कबाड़ को घर के ढेर में डाल देने में सक्षम नहीं होती।

एंगेल्स ने जर्मनों को चेतावनी दी थी कि वे राजतंत्र की जगह जनतंत्र की स्थापना के सिलसिले में राज्य के पूरे प्रश्न पर समाजवाद की बुनियादी बातों को भूलें। आज उनकी चेतावनियों को पढ़ने से मालूम होता है कि वे मानो त्सेरेतेली और चेर्नोव जैसे श्रीमानों के लिए, जिन्होंने अपने " गठबंधन" के व्यवहार से राज्य में अंधविश्वास और उसके प्रति अंधविश्वासपूर्ण श्रद्धा प्रदर्शित की है , वस्तुतः सबक़ हों

दो बातें और : १) जब एंगेल्स ने कहा था कि राज्य "एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न का एक यंत्र" बना रहता है, राजतंत्र या जनवादी जनतंत्र, दोनों में "सचमुच एक-सा", तो इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि उत्पीड़न के रूप का सवाल सर्वहारा वर्ग के लिए उपेक्षा की चीज है, जैसा कि कुछ अराजकतावादी "सिखाते हैं" वर्ग संघर्ष और वर्ग उत्पीड़न का अधिक विस्तीर्ण, अधिक स्वतंत्र और अधिक खुला हुआ रूप तमाम वर्गों को खत्म करने के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग की अत्यधिक सहायता करता है। 

) राज्य के पूरे कूड़ा-कबाड़ को घर के ढेर में डाल देने में केवल एक नयी पीढ़ी ही क्यों सक्षम होगी? यह प्रश्न जनवाद को खत्म करने के प्रश्न से संबंधित है, जिस पर हम अब विचार करेंगे  

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. जनवाद को खत्म करने के प्रश्न पर

एंगेल्स के विचार

 

"सामाजिक-जनवादी' शब्द वैज्ञानिक रूप से ग़लत है --- इस प्रश्न के प्रसंग में एंगेल्स को इस विषय पर अपने विचार प्रकट करने का मौका मिला था

आठवें दशक में विविध विषयों पर, मुख्यतया "अंतर्राष्ट्रीय ' विषयों पर (Internationales aus dem Vol asst aal*) लिखे गये अपने लेखों के एक संस्करण की जनवरी , १८६४ की, याने अपनी मृत्यु से डेढ़ वर्ष पहले लिखी गयी भूमिका में एंगेल्स ने लिखा था कि मैंने अपने तमा लेखों में "सामाजिक-जनवादी' नहीं, बल्कि "कम्युनिस्ट' शब्द का प्रयोग किया है, क्योंकि उस समय फ्रांस के प्रूदोवादी और जर्मनी के लासालवादी52  अपने को सामाजिक-जनवादी कहते थे।

 आगे चलकर एंगेल्स लिखते हैं कि ... " इसलिए मार्क्स के लिए और मेरे लिए अपने विशेष दृष्टिकोण को बताने के लिए ऐसे ढीले-ढाले शब्द का प्रयोग करना बिलकूल असंभव था। हालत दूसरी है और शाय वह शब्द (" सामाजिक-जनवादी" ) चल सकता है (mag passieren), भले ही एक ऐसी पार्टी के लिए , जिसका र्थिक कार्यक्रम केवल तौर से समाजवादी, बल्कि सीधे-सीधे कम्युनिस्ट है और जिसका अंति राजनीतिक लक्ष्य पूरे राज्य को और इसलिए जनवाद को भी, खत्म करना है, वह अब भी असटीक (unpassend - नामुनासिब ) है लेकिन वास्तविक ( शब्द पर जोर एंगेल्स का है ) राजनीतिक पार्टियों के नाम कभी पूर्ण रूप से उनके उपयुक्त नहीं होते; पार्टी विकास करती है, लेकिन ना ज्यों का त्यों बना रहता है।"

 द्वंद्ववादी एंगेल्स अपने अंतिम दिनों तक द्वंद्ववाद के प्रति सच्चे रहे। मार्क्स ने और मैंने, वह कहते हैं, पार्टी के लिए एक बहुत बढ़िया और वैज्ञानिक रूप से सटीक नाम ढंढ़ निकाला था, लेकिन तब कोई वास्तविक पार्टी, अर्थात सर्वहारा वर्ग की जनव्यापी पार्टी नहीं थी। अब ( उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में ) एक वास्तविक पार्टी है, लेकि वैज्ञानिक रूप से उसका नाम ग़लत है। यदि पार्टी विकास करती है, यदि उसके नाम की 

* 'जन-राज्य' में से अंतर्राष्ट्रीय विषय ' - सं०

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वैज्ञानिक असटीकता उससे छिपी नहीं है और सही दिशा में उसके विकास के मार्ग में बाधक नहीं है, तो कोई बात नहीं, चल जायेगा !

संभव है कि कोई मसखरा हम बोल्शेविकों को भी एंगेल्स के ढंग पर सांत्वना देने लगे : हमारी एक सच्ची पार्टी है , वह बहुत बढ़िया ढंग से विकास कर रही है, उसके लिए "बोल्शेविक" जैसा अर्थहीन और भद्दा नाम भी " चल जायेगा", यद्यपि उससे सिवा इस बिलकुल अाकस्मिक बात के और कोई मतलब नहीं निकलता कि १९०३ की ब्रसेल्स-लंदन कांग्रेस में हम लोगों का बहुमत था 3 ... शायद अब , जब जनतंत्रवादियों और "क्रांतिकारी" कूपमंडूक जनवादियों ने जुलाई और अगस्त में हमारी पार्टी का पीछा करके "बोल्शेविक' शब्द को सर्वत्र इतना आदरणीय बना दिया है , और इसके अतिरिक्त जब पीछा करने का यह कार्य उस महान ऐति हासिक प्रगति का सूचक बन गया है, जो हमारी पार्टी ने अपने वास्तविक विकास के दौर में की है, शायद अब मैं भी पार्टी का नाम बदलने के संबंध में अप्रैल में दिये गये अपने सुझाव पर ज़ोर देने में हिचकिचाऊं। शायद साथियों के सामने अब मैं एक "समझौते" का मार्ग रखूगा, अर्थात यह कि हम अपने को कम्युनिस्ट पार्टी कहें , लेकिन "बोल्शेविक" शब्द भी कोष्ठकों में रहने दें... 

लेकिन पार्टी के नाम का प्रश्न राज्य के संबंध में क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग के रवैये के प्रश्न की तुलना में बहुत ही कम महत्व रखता है। 

राज्य के संबंध में आम तौर से दिये जानेवाले तर्कों में बराबर वही ग़लती की जाती है, जिसके खिलाफ़ एंगेल्स ने चेतावनी दी थी और जिसकी ओर चलते-चलते हमने भी ऊपर इशारा किया है, याने यह कि इस बात को निरंतर भुला दिया जाता है कि राज्य के अंत का मतलब जनवाद का भी अंत है ; कि राज्य के धीरे-धीरे विलोप का अर्थ जनवाद' का भी धीरे-धीरे विलोप है। 

        पहली नजर में यह दावा बहत ही विचित्र और अबोधगम्य लगता है। यहां तक कि किसी को यह डर भी हो सकता है कि हम समाज मे  ऐसी व्यवस्था के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिसमें बहुमत के आगे अल्पमत की मातहती के उसूल को नहीं माना जायेगा - क्योंकि इस उसूल को मानने का ही नाम जनवाद है। 

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नहीं, जनवाद और बहुमत के आगे अल्पमत की मातहती एक ही चीज़ नहीं है। जनवाद एक राज्य है, जो बहुमत के आगे अल्पमत की मातहती को मानता है , याने वह एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के खिलाफ, आबादी के एक भाग द्वारा दूसरे भाग के खिलाफ़ व्यवस्थित बल प्रयोग के लिए एक संगठन है।

 हमने अपना अंतिम लक्ष्य राज्य का, अर्थात हर प्रकार के संगठित और व्यवस्थित बल प्रयोग का , लोगों पर आम तौर से हर प्रकार की जबर्दस्ती का उन्मूलन निर्धारित किया है। हम ऐसी समाज-व्यवस्था के अाने की प्रतीक्षा नहीं करते , जिसमें बहुमत के आगे अल्पमत की मातहती के उसूल का पालन नहीं होगा। लेकिन समाजवाद की स्थापना के लिए कोशिश करते हुए हमें पूरा विश्वास है कि वह कम्युनिज्म में विकसित हो जायेगा ; और इसलिए लोगों के खिलाफ़ किसी प्रकार की जबर्दस्ती का इस्तेमाल करने की ज़रूरत , एक मनुष्य के आगे दूसरे मनुष्य की और आबादी के एक भाग के आगे दूसरे भाग की अधीनता की जरूरत भी मिट जायेगी , क्योंकि तब लोग बिना किसी जबर्दस्ती के, बिना किसी जोर दबाव के सामाजिक जीवन की बुनियादी शर्तों को मानने के आदी हो जायेंगे।

 आदत के इस तत्व पर जोर देने के लिए ही एंगेल्स " मुक्त सामाजिक अवस्थाओं में पली" एक नयी पीढ़ी की बात करते हैं , जो " राज्य के पूरे कूड़ा-कबाड़ को" - हर प्रकार के राज्य को, जिसमें जनवादी-जनतांत्रिक राज्य भी शामिल है"घूर के ढेर में डाल देने में सक्षम होगी"

 इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए राज्य के धीरे-धीरे विलोप के र्थिक धार के प्रश्न की जांच करना आवश्यक है।

 विषय सूचि 

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