भारत के नरोदवादी डॉ. अम्बेडकर के उद्धरण का खूब इस्तेमाल करते हैं कि "भारत में मज़दूर वर्ग के दो शत्रु हैं – ब्राह्मणवाद और पूँजीवाद"। लेकिन बात सिर्फ़ इतनी नहीं है। डॉ अम्बेडकर आगे लिखते हैं कि कांग्रेस, सोशलिस्ट और वामपन्थी तीनों अस्पृश्य कामगारों के विशेष दुश्मन ब्राह्मणवाद से संघर्ष करने को तैयार नहीं हैं।
वास्तव में डॉ. अम्बेडकर के उद्धरणों को काट-छाँट कर मार्क्सवाद के साथ उसके समन्वय की कोशिश करना मार्क्सवाद नहीं बल्कि सार-संग्रहवाद है। जबकि सच तो यह है कि डॉ अम्बेडकर अपने पूरे विश्ववदृष्टिकोण में पूँजीवादी थे।
1936 में डॉ. अम्बेडकर ने ब्राह्मणवाद और पूँजीवाद को भारत में मज़दूर वर्ग का मुख्य शत्रु घोषित किया था। वहीं आज़ादी के तुरन्त बाद पूँजीवादी नेहरू की सरकार बनते ही जब नेहरू सरकार ने तेलंगाना में जमीन के बँटवारे के लिए लड़ रही दलित-मेहनतकश आबादी के ऊपर सेना भेजकर दमन किया तो न केवल इस पर चुप रहे बल्कि सरकार में भी बने रहे।
वास्तव में डॉ. अम्बेडकर के विचारों में इतना स्कोप है कि संघी फ़ासिस्ट भी उनके विचारों को इस्तेमाल कर लेते हैं। कुछ उदाहरण देखिए -
"मैं आपको कम्युनिस्टों से सावधान रहने की चेतावनी देता हूं। वो (कम्युनिस्ट) मजदूरों के हितों के खिलाफ काम करते हैं और मेरा विश्वास है कि कम्युनिस्ट मजदूरों के दुश्मन हैं।
- डॉ बी आर अम्बेडकर, नागपुर चुनावी सभा, 4 दिसम्बर 1945.
"कम्युनिस्टों ने मजदूरों का हमेशा शोषण और दमन किया है। मैं कम्युनिस्टों का पक्का दुश्मन हूँ।"
- डॉ बी आर अम्बेडकर, बहिष्कृत जिला सम्मेलन, मसूर - सतारा जिला, सितंबर 1937
"कोई भी धर्म जो साम्यवाद को जवाब नहीं देगा वो ज़िन्दा नहीं रह सकता।"
- डॉ. बी आर अम्बेडकर, 5 फरवरी 1956
"कम्युनिज्म आपको जंगल की तरफ ले जाएगा, अराजकता की ओर धकेलेगा। कम्युनिस्ट कम्युनिज्म की स्थापना के लिए विरोधियों की हत्या करने से भी हिचकिचाते नहीं है। कम्युनिस्ट अराजक हैं, उन्हें हिंसा का मार्ग प्रिय है "
- डॉ बी आर अम्बेडकर, विश्व बौद्ध सम्मलेन, काठमांडू - नेपाल, (तारीख उपलब्ध नहीं है)
इतना ही नहीं, काल्पनिक समाजवादी चार्ल्स फूरिये के एक प्रसिद्ध उद्धरण 'किसी समाज की प्रगति को महिलाओं की प्रगति से मापा जा सकता है' को भी डॉ अम्बेडकर के नाम से अक्सर चस्पा कर दिया जाता है, जबकि सच तो यह है कि महिलाओं के प्रति भी डॉ अम्बेडकर के जो विचार थे, वह बुर्ज़ुआ जनवादी दार्शनिकों से भी पीछे थे। यहाँ तक कि महिलाओं के संसद में भागीदारी के सवाल पर भी डॉ अम्बेडकर ने टिप्पणी की थी कि "स्वधर्म छोड़कर महिलाएँ राजनीति करती घूमें इसके जैसी शर्म की बात कोई और नहीं" (डॉ. भीमराव अम्बेडकर : लेख तथा वक्तव्य भाग 3 (वर्ष 1946-1956), खण्ड – 40, पृ. – 467)
अगर ऐसे उद्धरणों की काट-छाँट की जाये तो विवेकानन्द से लेकर बहुत से लोगों को मार्क्सवाद के साथ फिट किया जा सकता है।
वास्तव में अपने तात्कालिक और संकीर्ण राजनीतिक लाभों के लिए विचारधारा और राजनीति में इस तरह का घालमेल निकृष्ट कोटि का राजनीतिक अवसारवाद है।
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