Rupam Mishra की इस कविता के साथ अपनी ओर से भी ईद मुबारक और साथियों का यह साथ मुबारक!
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डॉ कफ़ील , सफूरा , शरजील उन जैसे सभी लड़ने वाले दोस्तों के नाम -
बहुत सी चलती सांसो के बचे रहने के लिए
तुम्हारा बचे रहना बहुत जरूरी है
इस कठिन समय में कैसे भी करके तुम बचे रहना
अन्न पानी के अकाल से कहीं ज्यादा
ये आदमीपने का अकाल है
ये हादसों का समय है
होने को कुछ भी हो सकता है
तुम्हारे करुणा से भरे मन को
जबरी क्रूरता की मुहर लगाई जा सकती है
तुम्हारे नाम को लाल घेरे में रखा जा सकता है
तुम्हारा फोन टेप हो सकता है
एकदूसरे में भीगी हुई निर्वस्त्र आत्माओं को
घसीट कर बाजार में लाया जा सकता है
तुम भले भलमनसाहत की मेयार में ढले हो
पर किसी सँझरतिया में
जीप में तुम्हें धकेलती हुई पुलिस देखकर
तुम्हारे पिता को गद्दार कहा जा सकता है
देखना ! किसी भी क्रांति के स्वर में
तुम्हारी माँ और प्रेमिका का रुदन एकमेव न हो जाये
तुम रो लेना
जब सच बोलने के लिए तुम्हारे साथियों पर लाठियां पड़ी हों और तुम बच गए थे
पर अफसोस न करना
तुमपर थोपी गयी इस लड़ाई के लिए , लड़ते रहना
एक आरामतलब कौम अपने आराम के लिए कायर हुई जा रही है
तुम जानते हो
अदब और उदारता के नाम पर शुरू हुए मध्यमवर्गीय भगोड़ेपन को
अब संघर्ष की राह बहुत उजाड़ है
तुम एक मजबूत दुश्मन के आगे मिमियाती बिल्ली की लाल लाल आँखों के आगे आ गये हो
तुम सब बचे रहना मेरे दोस्तों !
◆ईद मुबारक हो◆
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