हिन्दुस्तान में जन्मे जाने-माने पाकिस्तानी उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद युसूफी हास्य और व्यंग्य के ग़ालिब माने जाते थे। आइये, उनकी कुछ व्यंग्यभरी वनलाइनर्स पर नज़र डालें :
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"इस्लाम के लिये सबसे ज़्यादा कुर्बानी बकरों ने दी है।"
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"मर्द की आंख, और औरत की ज़ुबां का दम सब से आख़िर में निकलता है।"
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"इस्लामिक वर्ल्ड में आज तक कोई बकरा नेचुरल डेथ नहीं मरा।"
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"दुश्मनी के लिहाज़ से दुश्मनों के तीन दर्ज़े होते हैं... दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार।"
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"आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाये तो ज़िन्दगीभर प्रोफेसर ही रहता है... चाहे बाद में वह समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे।"
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"उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं, कि गर मुख़्तलिफ़ जीन्स (opposite sex) आमने-सामने हो जायें... तो निकाह के अलावा कोई गुंजाइश नहीं रहती।"
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"वो ज़हर दे के मारती तो दुनिया की नज़र में आ जाती, अंदाज़-ए-क़त्ल तो देखो...हमसे शादी कर ली।"
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"दुनिया में ग़ालिब वो अकेला शायर है... जो समझ में ना आया तो दुगना मज़ा देता है।"
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"कुछ लोग इतने मज़हबी होते हैं... कि जूता पसंद करने के लिये भी मस्ज़िद का रुख़ करते हैं।"
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"मेरा तआल्लुक उस भोली-भाली नस्ल से है... जो ये समझती है कि बच्चे बुज़ुर्गों की दुआओं से पैदा होते हैं।"
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"हमारे ज़माने में तरबूज़ इस तरह खरीदा जाता था, जैसे आजकल शादी होती है... सिर्फ सूरत देखकर।"
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"सिर्फ 99 प्रतिशत पुलिस वालों की वजह से बाकी 1 प्रतिशत भी बदनाम हैं।"
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"हुकूमतों के अलावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक्की से खुश नहीं होता।"
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"फूल जो कुछ ज़मीं से लेते हैं... उससे कहीं ज़्यादा लौटा देते हैं।"
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"हमारे मुल्क की अफ़वाहों की सबसे बड़ी ख़राबी ये है कि वो सच निकलती हैं।"
Salman Arshad जी की वॉल से
वाया Kanupriya जी
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