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Monday, 9 May 2022

पाकिस्तानी उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद युसूफी के हास्य और व्यंग्य

हिन्दुस्तान में जन्मे जाने-माने पाकिस्तानी उर्दू लेखक और व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद युसूफी हास्य और व्यंग्य के ग़ालिब माने जाते थे। आइये, उनकी कुछ व्यंग्यभरी वनलाइनर्स पर नज़र डालें :


"इस्लाम के लिये सबसे ज़्यादा कुर्बानी बकरों ने दी है।"


"मर्द की आंख, और औरत की ज़ुबां का दम सब से आख़िर में निकलता है।"


"इस्लामिक वर्ल्ड में आज तक कोई बकरा नेचुरल डेथ नहीं मरा।"


"दुश्मनी के लिहाज़ से दुश्मनों के तीन दर्ज़े होते हैं... दुश्मन, जानी दुश्मन और रिश्तेदार।"


"आदमी एक बार प्रोफ़ेसर हो जाये तो ज़िन्दगीभर प्रोफेसर ही रहता है... चाहे बाद में वह समझदारी की बातें ही क्यों न करने लगे।"


"उस शहर की गलियां इतनी तंग थीं, कि गर मुख़्तलिफ़ जीन्स (opposite sex) आमने-सामने हो जायें... तो निकाह के अलावा कोई गुंजाइश नहीं रहती।"


"वो ज़हर दे के मारती तो दुनिया की नज़र में आ जाती, अंदाज़-ए-क़त्ल तो देखो...हमसे शादी कर ली।"


"दुनिया में ग़ालिब वो अकेला शायर है... जो समझ में ना आया तो दुगना मज़ा देता है।"


"कुछ लोग इतने मज़हबी होते हैं... कि जूता पसंद करने के लिये भी मस्ज़िद का रुख़ करते हैं।"


"मेरा तआल्लुक उस भोली-भाली नस्ल से है... जो ये समझती है कि बच्चे बुज़ुर्गों की दुआओं से पैदा होते हैं।"


"हमारे ज़माने में तरबूज़ इस तरह खरीदा जाता था, जैसे आजकल शादी होती है... सिर्फ सूरत देखकर।"


"सिर्फ 99 प्रतिशत पुलिस वालों की वजह से बाकी 1 प्रतिशत भी बदनाम हैं।"


"हुकूमतों के अलावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक्की से खुश नहीं होता।"


"फूल जो कुछ ज़मीं से लेते हैं... उससे कहीं ज़्यादा लौटा देते हैं।"


"हमारे मुल्क की अफ़वाहों की सबसे बड़ी ख़राबी ये है कि वो सच निकलती हैं।"

Salman Arshad जी की वॉल से
वाया Kanupriya जी

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