यदि भारत में मुसलमानी अत्याचार भयानक रहा, तो तत्कालीन राजपूती वीरता की कहानी भी कुछ कम लोमहर्षक नहीं है । कम से कम, राजपूतों के प्रसंग में तो यह कहा ही जा सकता है कि वे तुर्कों की तलवार को कुछ नहीं समझते थे और सच भी यही है कि मुसलमान तलवार के जोर से नहीं बढे, भारतवासियों ने उनका सामना ही नहीं किया । इसी प्रकार इस्लाम भारत में केवल खड्गबल से नहीं फैला । हिन्दू समाज में वेद-विरोधी आन्दोलन इस्लाम के उदय से कम से कम, एक हजार वर्ष पहले ही छिड़ चुका था और बहुत से लोग वेद, ब्राह्मण, प्रतिमा और व्रत-अनुष्ठानों में विश्वास खो चुके थे । धर्म-परिवर्तन के अधिक आसान शिकार ये ही लोग हुए । इस्लाम ने बहुत से ऐसे लोगों को भी अपने वृत्त में खींच लिया जो अछूत होने के कारण अपमानित हो रहे थे और बहुत से लोग इसलिए भी मुसलमान हो गए, चूँकि प्रायश्चित के नियम हिन्दुओं के यहाँ थे ही नहीं । हिंदुत्व छुइ-मुई सा नाजुक धर्म हो गया था । इसलिए गाँव के कुँए में अगर मुसलमान पानी डाल देते तो सारा गाँव स्वतः मुसलमान हो जाता और शास्त्रों के प्रहरियों को यह सूझता ही नहीं कि पानी के समान मनुष्य भी शुद्ध किया जा सकता है । आक्रमण के रास्ते में गाय पड़ गयी तो हिन्दुओं की स्वतः पराजय हो जाती थी । फ़ौज की जद में अगर मन्दिर पड़ जाते तो हिन्दुओं को कँपकँपी छूटने लगती थी ।
[संस्कृति के चार अध्याय - रामधारी सिंह दिनकर, पृष्ठ-३२०-३२१ ]
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