बड़ी मुद्दत से सजाया है मैंने शाम को।
पीकर मानूँगा न गिरने दूँगा जाम को।।
"सागर"
साक़िया!मन्दिर ओ मस्ज़िद नहीं,मयख़ाना है
देखना _यां भी ग़लत लोग ना आने लग जाएं?¿
*अहमद फ़राज़
Ek bilari wala gustakhi maaf ho
Saaki sharaab mat pi masjid me baith ker
Ek hi bottle kahi khuda na
Chhen le🙏
No comments:
Post a Comment