हम औरतें केवल सेक्स और देह पर ही ट्रोल नहीं होती हैं. अपने मन की किसी भी बात पर ट्रोल होने का हमारा पूरा हक है. हर होली, दीवली या किसी भी समय मुझे अरशााना अज़मत की यह कविता याद आती रहती है. यह कविता मात्र ईद के लिए नहीं है, हर पर्व, त्यौहार या किसी भी खास मौके पर हर आम औरत की हकीकत बयान करती है. आप भी पढिए.
बताया गया कि आज अक्षय तृतीया भी है. हमारे पास राहिल और सहर द्वारा भेजा गया शीर- खुरमा आ गया है. अब आप में से कोई अक्षय तृतीया पर सोना भी भेज दीजिए तो और मज़ा आ जाए.
"हम औरतों की ओर से ईद मुबारक यह कहते हुए-
औरतों की ईद
अरशाना अज़मत
औरतों की ईद यानी ..
रोज के मुकाबले जल्दी जगने का दिन ..
बावर्चीखाने में ज्यादा खटने का दिन ..
ज्यादा खाना पकाने का दिन..
ज्यादा तरह के खाने पकाने का दिन ..
ज्यादा बर्तन धोने का दिन..
ज्यादा सफाई करने का दिन..
औरतों की ईद यानी ..
रोज के मुकाबले देर से खाने का दिन..
देर से नहाने का दिन..
देर से बिस्तर में जाने का दिन..
देर से टीवी देखने या न देखने का दिन..
ज्यादातर औरतें नहीं जानतीं कि ईद पर रिलीज होती है सलमान खान की पिक्चर..
ज्यादातर नहीं जाती सिनेमा हॉल में पिक्चर देखने...
ज्यादातर को ईदी भी नहीं मिलती..
ज्यादातर नहीं खरीद पातीं अपनी पसंद की झुमकियां...
ज्यादतार दूसरे दिन पहनती हैं चाव से सिलवाया सूट और चूड़ियां..
औरतें बनाती हैं देग भर बिरयानी और खाती हैं मुट्ठी भर चावल...
वो भी अक्सर सबके खा लेने के बाद.. .
रायता, चटनी और सलाद खत्म हो जाने के बाद..
औरतें सुबह सूरज निकलने से पहले बनाती हैं सेवंई ..
औरतें शाम को सूरज ढलने के बाद खाती हैं सेवंई ..
ज्यादातर ईद के दिन घर से नहीं निकलतीं..
ज्यादातर किसी से ईद मिलने नहीं जातीं..
ज्यादातर से ईद मिलने कोई नहीं आता..
उंगलियों पर गिनने लायक होते हैं औरतों के मेहमान...
कहानियों में भी ..
औरतें अमीना होती हैं वे घर में रहती हैं ..
औरतें हामिद नहीं होतीं, वे मेले में नहीं जातीं ..
औरतों को चिमटे की जरूरत होती है ...
और जरूरत पूरी करने के लिए हामिद की..
औरतें खुद नहीं खरीदतीं अपने लिए चिमटा..
औरतें शामिल होती हैं इबादत में ..
तैयारियों में ...
खरीदारी में ...
बाजार भर में दिखती हैं औरतें ...
औरतें गायब हो जाती हैं ईद के जश्न से ...
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यह रचना अरशाना अज़मत की है। अरशाना पत्रकार हैं। लखनऊ में रहती हैं।"
विभा रानी जी से साझा पोस्ट
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