सब के पास स्वर्णिम इतिहास था
ब्राह्मणों के पास ठाकुरों के पास वैश्यों के पास आदिवासियों के पास कारीगरों शिल्पकारों मूर्तिकारों चित्रकारों नर्तकों संगीतज्ञों कलावंतों दरबारियों सिपाहियों कृषकों
लगभग सबके पास स्वर्णिम इतिहास था
और वे अब भी उसकी खोज में लगे थे
सारे देश में खुदाई चल रही थी
मेरे पास क्या था जिसकी खोज करता जिस पर गर्व करता
बचपन में मेरी मां एक हाथ में झाड़ू टोकरी एक से मेरा हाथ थामे मुझे घर घर ले जाती थी
और ऐसी जगह बिठा देती थी जहां कोई मुझे न छुए
या मैं किसी चीज को न छू सकूं
फिर घर के बाहर गलियारे में आंगन में झाड़ा बुहारी करती थी
लूगड़ी का डाटा मुंह पर कसकर
तारतें साफ करती थीं
परात भर भर मल सोरती थी फेंक कर आती थी
तब झोली फैलाती थी
जिसमें दूर से रोटी फेंकती थीं उन घरों की स्त्रियां
जिन्हें हम भूख लगने पर चबाते थे
अब इसमें स्वर्णिम इतिहास की क्या खोज करता मैं
क्या कहता कि सिंधु घाटी के हम मूल बाशिंदे हैं
हमारे पास तो ईश्वर भी नहीं था
हां, जीवन तो था हमारा भी
हमारे भी शादियां थीं लगन सगाई तीज त्योहार भात पैरावणी
आना जाना मिलना जुलना हंसी ठठ्ठा
पर यह ज़मीन में गडकर जीने जैसा था
हां यह बात गर्व के लायक हो सकती थी कि मेरी मां सुंदर थी
वह सचमुच सुंदर थी ,लोग अब भी कहते हैं
दुबली पतली सांवली बडरी बडरी आंखें
मोगरे के फूलों जैसे दांत
हंसती थी तो गालों में गड्ढे पडते थे
पर यह गर्व की बात ही हमारे लिए लज्जा की हुई
मैने देखा था कि उन घरों के कई मर्द
मेरी मां को देखकर लार टपकाते थे
अंधेरे कोनों में उसे दबोच लेते थे
वह बिलौटे के पंजे में कबूतरी की तरह छटपटाती थी
पर बोल नहीं पाती थी
मेरा बाप उसे मारता था और चुप रहने को कहता था
अब इसमें स्वर्णिम इतिहास कहां से खोजूं
लोग कहते हैं कि मेरे छोटे भाई की शकल
फलां पंडित जी से मिलती है
- Vinod Padraj
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