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Monday, 23 May 2022

राममोहन राय


"झूठ बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों में एक समान तत्व है।" 1804 में प्रकाशित फारसी पुस्तक 'तुहफत अल मुवाहिदीन' (एकेश्वरवादियों को भेंट') की अरबी में लिखित भूमिका में राममोहन राय लिखते हैं। 
पुस्तक में निष्कर्ष है कि सृजन के लिए एक सर्वोच्च शक्ति (ब्रह्म) का अस्तित्व तो स्वीकार्य है, पर उसके आगे सभी मनुष्यों को सभी कामों में अपनी बुद्धि और तर्क का इस्तेमाल करना चाहिए। धार्मिक विश्वासों द्वारा स्थापित सभी रूढियां मानवता के लिए फोडे की तरह है जो रिवाज व लंबे प्रशिक्षण से पैदा हुआ है। 
हालांकि राममोहन इस वक्त तक यूरोपीय दर्शन से भी परिचित हो रहे थे पर इन निष्कर्षों पर वे अरबी फारसी की दार्शनिक परंपरा की तार्किकता के जरिए पहुंचे थे। 1804 के बंगाल में 30 साल की उम्र में ये प्रकाशित कराने के लिए सचमुच हिम्मत चाहिए थी। इसका व छुआछूत न मानने का नतीजा था कि अन्य ब्राह्मण ही नहीं खुद उनकी मां को राममोहन से इतनी कोफ्त व नफरत हुई कि अंग्रेजी अदालत में मुकदमा दायर कर दिया कि उनकी संपत्ति में बेटे को कोई हिस्सा न मिले। राममोहन ने इस स्वतंत्र फैसले व उस पर कार्रवाई के लिए मां की तारीफ की कि इस तरह वह परंपरागत भारतीय नारियों से आगे बढ़ गई, पर विचार पर समझौता नहीं किया। 
अंततः राममोहन को भारत छोड अपने जीवन के अंतिम वर्ष इंग्लैंड में बिताने पडे। पर हमारे इतिहास में उनका जिक्र आम तौर पर सती प्रथा के विरोध तक ही किया जाता है। उनके फारसी लेखों पुस्तिकाओं में मात्र यह एक ही बची है।

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