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Saturday, 20 August 2022

डा.नरेन्द्र दाभोलकर की एक निर्भीक कविता...



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*मूर्तियों को पूजने के बजाय*
*मानवता को पूजता हूं मैं!*
*काल्पनिक देवताओं को न मानकर,*
*फुले साहू अम्बेडकर को पढ़ता हूं मैं!*
*छाती ठोककर बोलता हूं,*
*असत्य को नकारने वाला* 
*नास्तिक हूं मैं!*

*पोथी पुराण पढ़ने के बजाय*
*शिवाजी को पढ़ता हूं मैं!*
*पत्थर के सामने क्यों झुकूं?*
*जिजाई, सावित्री,रमाई के सामने नतमस्तक होता हूं मैं!*
*छाती ठोककर बोलता हूं*
*असत्य नकारने वाला* 
*नास्तिक हूं मैं!*

*पसीने की कमाई दानपेटी में डालकर, ब्राह्मणों के घर नहीं भरता हूं मैं!*
*प्यासे को पानी, भूखे को अन्न देकर उनमें ही देव खोजता हूं मैं!*
*छाती ठोककर बोलता हूं
असत्य नकारने वाला 
नास्तिक हूं मैं!*

*हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई के रूप में न जीकर,*
*मानव बनकर जीता हूं मैं*
*धर्मों के पाखंडों को न मानकर*
*मनुष्यता को जपता हूं मैं!*
*छाती ठोककर बोलता हूं* 
*असत्य नकारने वाला* 
*नास्तिक हूं मैं!*

*कर्तव्यनिष्ठ मानव से पत्थर को श्रेष्ठ नहीं समझता हूं मैं,*
*मंत्र, होमहवन, कर्मकांड को पैरों तले रौंदकर*
*अपने विवेक पर भरोसा रखता हूं मैं,*
*छाती ठोककर बोलता हूं 
असत्य नकारने वाला 
नास्तिक हूं मैं!*

*बिल्ली के रास्ता काटने से रुकता नहीं सीधे मंजिल पर पहुंचता हूं मैं!*
*अंधश्रद्धा को मिट्टी में रौंदकर*
*विज्ञानवाद स्वीकारता हूं मैं!*
*छाती ठोककर बोलता हूं* 
*असत्य नकारने वाला* 
*नास्तिक हूं मैं!*

*डा. नरेंद्र दाभोलकर*

*मराठी से हिन्दी अनुवाद*
*चन्द्र भान पाल*

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