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Saturday, 20 August 2022

हवा हो गए हत्यारे - कविता

हवा हो गए हत्यारे
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(इस सवाल के साथ कि दाभोलकर, कलबुर्गी और गौरी लंकेश के हत्यारे कभी पकड़े भी जाएंगे)

जैसे कि हवा से गोलियां बरसीं
और फिर हवा हो गए हत्यारे

थोड़ी ही देर गूंजी चीख हवा में
थोड़ी सी छटपटाहट हवा में तैर गई

हवा में बिखरे हत्या के सुराग
और हवा में ही हत्यारों के अनुमान लगे
हवा में ढूंढ़ हुई हत्यारों की
मानो हवा में छिपे बैठे हत्यारे

कई तरह की चली हवा फिर
हवा कई-कई तरह की
झुलसाती
दहलाती
अकुलाती
मदमाती
मुस्काती
हुलसाती
कितनी ही तरह की हवा

हवा में हैं कई सवाल अब
हवा में ही हैं उनके जवाब

दरअसल इस समय शासक
बिल में पैठे काले नाग की मानिंद
हवा खा रहा है
और जनता के चेहरों की हवाइयां उड़ी हुई हैं

- हरि मृदुल

(मेरी यह कविता 'अकार' के अक्टूबर, 2018 के स्वर्ण जयंती अंक में ग्यारह अन्य कविताओं के साथ प्रकाशित हुई है) 
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