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Friday, 19 August 2022

भौतिकवादी दर्शन ईश्वर को किस रूप में मानता है?


प्रकृति में दो चीज़ें हैं- पदार्थ और चेतना।
ईश्वर क्या है? क्या ईश्वर किसी पदार्थ का नाम है या वह एक चेतना है?

नि:सन्देह और निर्विवाद रूप से ईश्वर कोई पदार्थ नहीं वह एक चेतना ही है। सभी धार्मिक लोग ईश्वर को एक चेतना मानते हैं। और भौतिकवादी दर्शन भी उसे चेतना ही मानता है।
 तो फिर अन्तर्विरोध कहाँ है?
दरअसल आस्तिक लोगों की कल्पना है कि ईश्वर नाम की चेतना पहले से मौजूद थी, उसी ने पदार्थ जगत को बनाया है।
भौतिकवादी दर्शन कहता है कि नहीं, पदार्थ जगत पहले से है, ईश्वर नाम की चेतना बाद में आई।

अब सवाल यह खड़ा हो गया कि पदार्थ और चेतना में कौन पहले है।

  आस्तिकों की नजर में तो चेतना या विचार ही पहले दिखाई देता है। और जो भौतिकवादी दर्शन से परिचित नहीं हैं, ऐसे 99% नास्तिक लोगों को भी लगता है कि विचार ही प्राथमिक है। वे तर्क देते हैं कि कुम्हार के मन में पहले घड़ा बनाने का विचार आता है तभी तो घड़ा बनाता है। उसके मन में सुराही बनाने का विचार आता है तो सुराही बना देता है। इससे लगता है कि विचार ही पहले है।

  इसी तरह आस्तिक लोग तर्क देते हैं कि जैसे कुम्हार के मन में विचार आया कि घड़ा बनाया जाए तो उसने घड़ा बना दिया, ठीक उसी तरह ईश्वर के मन में विचार आया कि एक दुनिया बनायी जाए तो उसने एक दुनिया बना दिया।

   ये लोग यह नहीं तर्क करते कि मिट्टी का बर्तन बनाने का विचार आने से पहले मिट्टी तो थी। अत: पदार्थ ही प्राथमिक होता है। अगर किसी ईश्वर के मन में दुनिया बनाने का विचार आया होगा, तो दुनिया बनाने के लिए 'क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा' आदि कहाँ से ले आया? ये सब तो पहले से ही कहीं रहा होगा। 

 पदार्थ प्राथमिक है विचार बाद में है इसके अनगिनत उदाहरण दिये जा सकते हैं। जैसे-
आग लगने की भौतिक घटना पहले होती है उसे बुझाने का विचार बाद में आता है।
गर्मी लगने की भौतिक घटना पहले घटती है पंखा चलाने का विचार बाद में आता है।
ठंड लगने की भौतिक घटना पहले घटती है स्वेटर पहनने का विचार बाद में आता है।
बरसात  की भौतिक घटना पहले होती है छाता लगाने का विचार बाद में आता है।
साँप  निकलने की भौतिक घटना पहले  होती है उसे मारने का विचार बाद में आता है।
रूप पहले, नाम बाद में आता है।
आप के दिमाग में जो भी विचार पैदा हो रहे हैं, सबका भौतिक आधार जरूर है।

मस्तिष्क रूपी पदार्थ पहले और विचार बाद में। चेतना में से मस्तिष्क को नहीं पैदा किया जा सकता है बल्कि मस्तिष्क से चेतना पैदा होती है। इसी तरह अनगिनत उदाहरण दिये जा सकते हैं जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि भौतिक परिस्थिति पहले होती है उससे सम्बन्धित चेतना का वजूद बाद में होता है। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा जहाँ विचार पहले और पदार्थ बाद में हो। विचार या चेतना को प्राथमिक मानने के कारण सारे लोग तरह-तरह के अंधविश्वासों में फँसकर अपना समय, शक्ति और संसाधन बर्बाद करते रहते हैं।

 उपरोक्त उदाहरणों में हम देखते हैं कि जिस तरह की भौतिक परिस्थितियां होती हैं उसी तरह के विचार पैदा होते हैं। भौतिक परिस्थितियां ही विचार का स्रोत होती हैं। चेतना हमेशा पदार्थ से ही निकलती है। हमारे भाव, विचार, चेतना या कल्पना की उड़ान कितनी भी ऊँची हो परन्तु उसका आधार वस्तुगत ही होता है। इस आधार पर देखें तो ईश्वर भी एक विचार/चेतना ही है। इसके भी पैदा होने का कोई न कोई भौतिक आधार जरूर होगा। बिना भौतिक आधार के ईश्वर ही नहीं कोई भी चेतना पैदा नहीं हो सकती। इससे सिद्ध होता है कि दुनिया पहले है, ईश्वर का वजूद बाद में आया है। 

ईश्वर, परलोक, स्वर्ग, नर्क, पुनर्जन्म से संबन्धित चेतना या विचारों का भी भौतिक आधार पहले से मौजूद होता है।

  प्राचीन काल में प्रकृति की शक्तियों को देखकर दैवी शक्ति की कल्पना पैदा हुई। प्राचीन काल के छोटे-छोटे पशुपालक राजाओं को देखकर देवताओं की कल्पना पैदा हुई। महाराजाओं को देखकर महादेव की कल्पना हुई, सम्राटों को देखकर सबका ईश्वर एक होने की कल्पना आयी। 
  राजाओं का महल ऊंचाई पर होता था। इसे देखकर ही कल्पना की गयी कि परलोक ऊपर ही होगा। किला/महल के चारो तरफ गहरी खाईं को देखकर यह कल्पना की गयी कि परलोक में भी वैतरणी नाम की नदी होगी। राजा के दरबार को देखकर ही स्वर्ग की कल्पना की गयी। राजा की जेल को देख कर नर्क की कल्पना की गयी। जेल की यातनाओं को देखकर नर्क में यातनाओं की कल्पना की गयी। बीज बोने, फसल काटने और फसल से तैयार बीज का एक हिस्सा पुनः बोने, और हर साल दोहराई जाने वाली इसी प्रक्रिया को देखकर पुनर्जन्म की कल्पना पैदा हुई, राजा के बनाए कानून से ही पाप और पुण्य की कल्पना पैदा हुई, पक्षियों को देखकर पुष्पक विमान की कल्पना पैदा हुई‌…..। इसी तरह उनकी हर कल्पना का भौतिक आधार है। अलौकिक जगत की सारी चीजें लौकिक जगत से ही नकल की गयी हैं। इसलिए लौकिक  जगत का वजूद पहले है और अलौकिक जगत यानी पाप, पुण्य, स्वर्ग, नर्क, देवी, देवता, ईश्वर और उनका परलोक आदि का वजूद बाद में है। संक्षेप में बस इतना ही। फिर कभी...
                                             रजनीश भारती
                                         जनवादी किसान सभा


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