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Sunday, 28 August 2022

तोलस्तोय

लेनिन के शब्दों में "कला के उच्चतम शिखर पर स्थित" तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में "सत्य और सौन्दर्य के खोज-मार्ग का चिर पथिक" तथा "साहसी चिन्तक" लेव निकोलायेविच तोलस्तोय (रूसी उच्चारण के अनुसार 'लेफ़ तलस्तोय') का जन्म पुराने (जूलियन) कैलेण्डर के अनुसार 28 अगस्त एवं नये (ग्रेगोरियन) कैलेण्डर के अनुसार 9 सितम्बर 1828 को मास्को से लगभग 200 किलोमीटर और तूला नगर से 14 किलोमीटर दूर यास्नाया पोल्याना नाम की जागीर में एक समृद्ध तथा उच्च कुलीन परिवार में हुआ था। लेव तोलस्तोय के पूर्वज उन इने-गिने लोगों में से थे जिन्हें रूस में सबसे पहले 'काउंट' की उपाधि मिली थी। उनकी माँ महाकवि पुश्किन की दूर की रिश्तेदार थी। 2 वर्ष की उम्र में ही उनकी माँ का देहान्त हो गया था और 9 वर्ष पूर्ण होने से पहले ही उनके पिता भी चल बसे थे। उनका लालन-पालन उनकी दो बुआ ने किया था। लेव तोलस्तोय स्कूली छात्र के रूप में सामान्य ही थे एवं गणित में उनकी रुचि नहीं थी। इसके बावजूद उनकी विशेषता यह थी कि रुचि की बातों एवं विषयों को वे बड़े ही लगनपूर्वक स्वयं सीख-समझ लेते थे। उनकी पत्नी का कथन है कि "उन्होंने जीवन में जो कुछ सीखा, अपने आप ही सीखा और सो भी बड़ी चाह से, जल्दी-जल्दी तथा बड़ी लगन से।" दर्शनशास्त्र का ज्ञान भी उन्होंने स्वाध्याय से ही प्राप्त किया था और विद्यार्थी जीवन में ही इसके अनेक अंगों में महारत हासिल कर ली थी। दर्शन के अतिरिक्त सैन्य पृष्ठभूमि का भी तोलस्तोय के रचनात्मक जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। उनके पिता, दादा, परदादा और परदादा के पिता भी सेना में रहे थे। उनके पिता ने नेपोलियन के विरुद्ध 1812 के महान् देशभक्ति-पूर्ण युद्ध में भाग लिया था। उनके बड़े भाई भी स्वेच्छा से सेना में गये थे और इसी परम्परा के अनुरूप युद्ध का वास्तविक रूप देखने-समझने के लिए लेव तोलस्तोय भी 22 वर्ष की आयु में सन् 1851 में सेना में, एक बाहरी व्यक्ति के रूप में, भर्ती हो गये थे। 5 वर्ष तक वे सेना से सम्बन्धित रहे और उन्होंने काकेशिया, डेन्यूब और क्रीमिया की लड़ाइयों में भाग लिया। इस प्रकार उन्हें ज़ारशाही की सरकारी और फ़ौजी मशीन की सारी गतिविधियों की व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छी जानकारी हो गयी जिसका उनके लेखन में अभूतपूर्व योगदान रहा। सैन्य सेवा के साथ उनका अध्ययन एवं कमोबेश लेखन भी जारी रहा।
          महान् लेखक बहुत हुए पर तोलस्तोय उन महान् लेखकों में से हैं जिनकी रचनाएँ सजग पाठकों को स्वयं में तन्मय हो जाने के लिए आमंत्रित करती हैं। परिवेशगत भिन्नता के कारण सरसरी नजर डालने पर भले ही उनकी रचनाएँ कुछ क्षण के लिए अजनबी लगे, परन्तु ज्योंही आप तत्पर होकर उसे पढ़ने लगेंगे, स्वतः उसका एक अंग बन जाएँगे। गम्भीरता के बावजूद पठनीयता एवं संप्रेषणीयता का मणिकांचन योग है तोलस्तोय की रचनाओं में। ईसा की नीतिप्रद लघु कथाओं से लेकर संसार के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के रूप में मान्य 'युद्ध और शान्ति' जैसी परिस्थितियों के साहचर्य में सामाजिक संरचनाओं के ताने-बानों को प्रतीकित एवं अप्रत्यक्ष रूप से निर्देशित करने वाली महान् रचना तक तोलस्तोय ने उस सर्जनात्मक क्षमता का परिचय दिया जो सचमुच बेजोड़ है। तोलस्तोय की नैतिक मान्यताओं एवं रचनात्मक स्थापनाओं में अन्तर की चर्चा होती रही है। इस सम्बन्ध में स्वाभाविक रूप से यह कहावत सही सिद्ध होती है कि "कहानी का भरोसा करो, कहानीकार का नहीं।" एक सही रचना-प्रक्रिया स्वयं में वह खराद मशीन है जो रचनाकार की भी कतिपय ओढ़ी गयी मान्यताओं को स्वतः कतर कर फेंक देती है।
         रचनाओं पर विस्तृत विचार यहाँ न सम्भव है, न उचित। जिज्ञासु पाठकों को तोलस्तोय की रचनाओं का किञ्चित् विस्तार से उत्तम विमर्शात्मक परिचय पाने के लिए राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'आन्ना कारेनिना' की कात्यायनी एवं सत्यम द्वारा लिखित 22 पृष्ठों की भूमिका अवश्य पढ़नी चाहिए।
          'बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था' जैसी आत्मकथात्मक उपन्यासत्रयी एवं 'कज्जाक', 'युद्ध और शान्ति', 'आन्ना कारेनिना', 'पुनरुत्थान' जैसे महान् उपन्यासों से लेकर 'दो हुस्सार', 'इंसान और हैवान' (एक घोड़े की कहानी, उसकी अपनी ज़बानी), 'सुखी दम्पती', 'इवान इल्यीच की मृत्यु', 'क्रूज़र सोनाटा' एवं 'नाच के बाद' जैसी उपन्यासिकाओं/लम्बी कहानियों तथा अनेक कहानियों, नाटकों एवं वैचारिक साहित्य के हिन्दी अनुवाद के माध्यम से तोलस्तोय आज हिन्दी के अभिन्न साहित्यकार की तरह हो गये हैं जिनकी रचनाओं से गुजरे बिना कोई अपने-आपको भी एक उत्तम हिन्दी साहित्यिक व्यक्तित्व नहीं मान सकता है। यह नितान्त प्रसन्नता की बात है कि तोलस्तोय की रचनाओं को सफलतम अनुवादकों का सहयोग मिला। 'युद्ध और शान्ति' एवं 'आन्ना कारेनिना' जैसी रचनाओं का मूल रूसी से किया गया हिन्दी अनुवाद निस्सन्देह हमारे लिए गौरव की बात है।
            तोलस्तोय की लगभग समग्र रचनाएँ उनके जीवनकाल में ही अंग्रेजी अनुवाद के रूप में प्रकाशित हो चुकी थीं। अंग्रेजी में 28 खंडों में प्रकाशित तथा archive.org पर pdf रूप में उपलब्ध 'The Complete Works of Count Tolstoy' में संकलित समग्र रचनाओं की क्रमबद्ध सूची (INDEX) मैंने तैयार की है और उसे पीडीएफ रूप में अपलोड करवा दिया है ताकि उन 28 खंडों का उपयोग तो सहज हो ही, साथ ही जिज्ञासु पाठक एक नजर में उनकी प्रायः समग्र रचनाओं के नाम प्रामाणिक रूप में जान सके। इसे निम्नांकित लिंक पर क्लिक करके आसानी से डाउनलोड किया जा सकता है:


            तोलस्तोय की प्रशंसा में अनेक विद्वानों ने बहुत-कुछ कहा। इसी क्रम में इसाक बाबेल ने कहा था कि "यदि विश्व स्वयं लिख पाता तो वह तोलस्तोय की तरह ही लिखता।"
         आइए इस महान् रचनाकार की रचनाओं से जुड़कर उन्हें सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित करें तथा उनका यह वाक्य हमेशा याद रखें कि "जहाँ सरलता, भलाई और सच्चाई नहीं है, वहाँ महानता नहीं हो सकती।" (युद्ध और शान्ति, खंड-4, पृष्ठ-240).


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