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Tuesday, 2 August 2022

शकील बदायूँनी

1946 में मुम्बई में हकीम मिर्ज़ा बेग देहलवी की अध्यक्षता में एक मुशायरा आयोजित हुआ ।  हकीम मिर्ज़ा मुम्बई के साहित्यिक गतिविधियों के एक ख़ास स्तम्भ थे। उस मुशायरे में जिगर मुरादाबादी, मजरूह सुल्तानपुरी, माहिर उल क़ादरी, जोश मलीहाबादी जैसे शायरों के बीच दिल्ली से एक शायर आया था जो दिल्ली में एक सप्लाई अफसर था। उसदिन का मुशायरा बहुत कामयाब रहा । 
उस मुशायरे में एक फ़िल्म निर्माता फाज़ली साब मौजूद थे । वे मेहंदी नाम की एक फ़िल्म बना रहे थे। उन्होंने मुशायरा देखने के बाद निर्णय लिया कि फ़िल्म में भी एक मुशायरे का सीन होना चाहिए । दो दिन बाद स्टूडियो में सारे शायर को आमंत्रित किया गया। रात भर मुशायरे की शूटिंग चलती रही। सुबह सारे शायर को निर्माता ने नगद भुगतान किया। दिल्ली का वो सप्लाई अफ़सर  शायर को सात सौ रुपया मिला। उसे यकीन नहीं हुआ कि फ़िल्म में एक नज़्म सुनाने के लिए इतने पैसे मिल सकते हैं। वह मात्र 75 रुपये महीने कमाता था। 

वह दिल्ली वापिस जाकर अपनी नौकरी करने लगा। दो महीने बाद हक़ीम मिर्ज़ा का एक ख़त उस सप्लाई अफसर के नाम आया कि एक बड़े प्रोड्यूसर अपने फ़िल्म स्टूडियो में आपको गीतकार की नौकरी देना चाहते हैं। आप एकबार मुम्बई आके उनसे मिल लीजिए । आपके आने जाने का रेल किराया फ़िल्म  स्टूडियो देगा ।  अपने घरवालों से सलाह लेकर वह शख़्स मुम्बई पहुँचा । मुम्बई के मोहम्मद अली रोड पर स्थित हक़ीम मिर्ज़ा के क्लीनिक में अपना सामान रखा। प्रोड्यूसर की कार क्लीनिक पे आके रुकी। वह प्रोड्यूसर थे मशहूर निर्माता निर्देशक ए आर कारदार । कारदार खुद उस सप्लाई अफसर शायर को लेकर अपने कारदार फ़िल्म स्टूडियो (अब राजकमल स्टूडियो) परेल पहुँचे। बड़े केबिन में सिर्फ़ दो लोग मौजूद थे कारदार साब और दिल्ली से आया वह शख़्स।  कारदार ने कहा कि यंग मैन, आप जो नौकरी कर रहे हो इसमें 20 साल बाद ज़्यादा से ज़्यादा सेक्रेटरी बन जाओगे। जिसमें आपको 1200 ₹ पगार मिलेगा। अगर इस फिल्मी दुनिया में आपकी किस्मत ने साथ दिया तो एक गाने के लिए दो से तीन हज़ार पा सकते हो ।  अभी आप जो पगार पा रहे हो उससे पांच गुना पगार मैं आपको देने के लिए तैयार हूं। बतौर गीतकार आपको मेरी फ़िल्म कम्पनी में काम करना होगा । उस सप्लाई अफसर शायर ने उनकी फ़िल्म कम्पनी ज्वाईन कर ली। प्रोड्यूसर ने अपने मुलाजिमों के रहने के लिए दादर पूर्व में स्टेशन के पास एक बंगला किराए पे ले रखा था। उस बंगले का एक कमरा इस शायर को रहने के लिए दे दिया गया । कारदार प्रोडक्शन द्वारा निर्मित फ़िल्म में उस शायर के लिखे सारे गीत बहुत मशहूर हुए । उस फ़िल्म के संगीतकार  थे नौशाद। एक लोकप्रिय गीत जिसे गायिका और अभिनेत्री उमा देवी उर्फ़ टुनटुन ने गाया था- 'अफ़साना लिख रही हूँ ' । फ़िल्म का नाम था 'दर्द' और वह सप्लाई अफसर गीतकार थे शकील बदायूँनी । 

उस दादर के बंगले में ही संगीतकार नौशाद भी रहते थे। नौशाद को शकील बदायूँनी के लिखे बोल बेहद पसंद आए । नौशाद ने उनके साथ एक कामयाब जोड़ी बनाने का फ़ैसला कर लिया। 
        
तभी मुल्क के बंटवारे का स्वर गूंजने लगा। पंजाब और बंगाल में कौमी दंगे भड़क उठे। उसकी तपिश मुम्बई भी पहुंच गई। सारे फ़िल्म स्टूडियो में काम बंद हो गए । दादर के उस बंगले में रहनेवाले ज़्यादातर मुलाजिम मुस्लिम थे। बताया गया कि उनके लिए यह एरिया सुरक्षित नहीं है। कारदार के असिस्टेंट डायरेक्टर रहे एस यू सन्नी अब निर्देशक बन चुके थे। वर्ली में उनका बंगला था। नौशाद साब वहाँ शिफ्ट हो गए । कुछ लोग दादर मुसाफिरखाना में चले गए जो पुलिस चौकी के पास था। शकील बदायूँनी अपने तीन मित्रों के साथ भिन्डी बाज़ार के एक खोली में शिफ़्ट हो गए। वहाँ इनकी जान पहचान वाला एक ग्रामोफोन रिकॉर्ड की दुकान थी। इस दंगे फसाद के बीच रात में शकील अपने दोस्तों के साथ उसकी दुकान खुलवा के अंदर से कुंडी लगा लेते थे और वे सब बैठकर फ़िल्म दर्द के गीत ग्रामोफोन पर सुना करते थे। 

तभी शकील बदायूँनी को पता चला कि कारदार साब अपने फ़िल्म स्टूडियो को बंद करके पाकिस्तान शिफ्ट हो गए। महबूब स्टूडियो के मालिक महबूब खान भी पाकिस्तान चले गए। माहौल इतना ख़राब था कि शकील के कई रिश्तेदार भी पाकिस्तान शिफ्ट होने लगे।  शकील के दोस्तों ने कहा कि अब इस देश में मुसलमानों का कुछ नहीं होनेवाला। हमें भी अब पाकिस्तान शिफ्ट चलना चाहिए। शकील ने अपने दोस्तों के कहने पर मुम्बई से कराची के लिए समुद्री जहाज का टिकट 20 ₹ में खरीद लिया। जाने से पहले वह नौशाद से मिलने के वास्ते गए। नौशाद को जब मालूम हुआ कि शकील का पाकिस्तान जाने का प्लान बन गया है उन्होंने उसी वक़्त उन्हें टिकट लौटाने को कहा और दिलासा दिया कि कुछ दिनों में हालात बिल्कुल ठीक हो जाएंगे।  शकील ने उनकी बात मान ली और वह भी एस यू सन्नी के बंगले में शिफ्ट हो गए ।  लेकिन अब सबको आजीविका की चिन्ता सताने लगी थी क्योंकि जमापूंजी सब खत्म हो रहे थे।
तभी जे बी एच वाडिया ने एस यू सन्नी के निर्देशन में एक फ़िल्म की घोषणा कर दी। जिसमें शकील को गीतकार और नौशाद को संगीतकार के लिए साइन कर लिया गया। फ़िल्म में कलाकार थे दिलीप कुमार, नरगिस । 1948 में रिलीज उस फिल्म का नाम था 'मेला' । इस फ़िल्म के ज़्यादतर गीत सुपरहिट हुए।  जिसमें एक मुकेश का गाया मशहूर गीत था- "गाए जा गीत मिलन के, तू अपनी लगन के"। 

शकील का रहने का अभी भी कोई ठिकाना नहीं था। फ़िल्म मेला के बाद शकील रहने के लिए बांद्रा चले गए। बांद्रा में उनका स्कूल टाइम का एक दोस्त साकिर का दो मंजिला मकान था। उसके ग्राउंड फ्लोर पर वह शिफ्ट हो गए। बदायूँ से उन्होंने अपना परिवार भी बुला लिया। कुछ ही दिन बाद साकिर पाकिस्तान चले गए और फिर वहीं बस गए। अब उस मकान के सर्वेसर्वा शकील हीं थे। उसी मकान की पहली मंजिल को नौशाद साहब ने अपना आशियाना बना लिया। 

तभी ख़बर आई कि पाकिस्तान से कारदार साब और महबूब खान लौटकर मुम्बई आ गए। महबूब खान ने शकील और नौशाद की जोड़ी के साथ फ़िल्म 'अनोखी अदा' शुरू की।  फ़िल्म अंदाज़, उड़नखटोला, बाबुल, दीदार, आन, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुग़ले आज़म, गंगा जमुना के संगीत रचकर शकील और नौशाद की जोड़ी हिन्दी सिनेमा जगत में इतिहास रच दिया। 

निर्माता निर्देशक विजय भट्ट ने फ़िल्म बैजू बावरा में गीतकार के लिए कवि प्रदीप को साइन कर लिया था। संगीतकार के लिए नौशाद साब को अनुबंधित किया। नौशाद ने गीतकार के लिए शकील बदायूँनी का नाम सुझाया। विजय भट्ट ने कहा कि नौशाद मियां...इस फ़िल्म में भजन लिखने हैं गज़ल नहीं।  नौशाद ने कहा कि जी हाँ हुजूर... शकील साब भजन ही लिखेंगे। शकील साब को सिचुएशन दी गई । उन्होंने दो भक्ति गीत लिखे।  नौशाद ने दोनों गीत कम्पोज करके विजय भट्ट को सुनाया । भजन सुनते हीं उन्होंने उसी वक़्त शकील बदायूँनी को गीतकार के लिए साइन कर लिया।  वे भजन थे- 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज'...  'ओ दुनिया के रखवाले'..। 

1960 के बाद शकील बदायूँनी नौशाद साब से अलग दूसरे संगीतकारों के साथ काम करना शुरू किए। एम सादिक जो गुरुदत्त की फ़िल्म चौदहवीं का चांद का निर्देशन करने जा रहे थे। वे शकील बदायूँनी को गुरूदत्त से मिलाने ले गए। गुरुदत्त ने कहा कि शकील साब मुझे खुशी है कि आप मेरी फिल्म के गीत लिखने जा रहे हैं। पिछली दफा आपसे 'कागज़ के फूल' के गीत लिखवाना चाह रहा था लेकिन आपने सीधे मना कर दिया था। उन्होंने जवाब दिया कि अब मैं आपकी हर फ़िल्म के गीत लिखने के लिए तैयार हूँ। गुरुदत्त ने उनको फ़िल्म चौदहवीं का चाँद और साहब बीवी और गुलाम दोनों फिल्मों के लिए बतौर गीतकार साइन कर लिया। शकील साब के लिखे गीत ने फिर जादू चलाया। "चौदहवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो .... ना जाओ सैंया छुड़ा के बैंया ..... साकिया आज मुझे नींद नहीं आएगी सुना है तेरे महफ़िल में" ये गीत बहुत मशहूर हुए थे। 

1961 में शकील साब को 'चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब' के लिए  बेस्ट गीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
1962 में फ़िल्म घराना के गीत 'हुस्नवालों तेरा जवाब नहीं' के लिए और  1963 में फ़िल्म बीस साल बाद के गीत "कहीं दीप जले कहीं दिल" के लिए बेस्ट गीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
शकील ऐसे शायर थे जिनके गीतों के बग़ैर रोमांटिक फिल्मों की कहानियां पूरी नहीं होती थी । उनकी शायरी में इंसान की वो ज़िन्दगी मौजूद होती है जो ख़्वाबों में दिखती है। साहिर और शकील दोनों समकालीन शायर थे लेकिन दोनों का नज़रिया अलग था । मसलन ताजमहल पर लिखे दोनों के गीत मशहूर हैं। जहाँ साहिर लिखते हैं " एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक।"
वहीं शकील लिखते हैं " एक शहंशाह ने बनवाके हसीं ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है"

साठ के दशक में रेडियो स्टेशन पर एक प्रोग्राम के लिए बेग़म अख़्तर मुम्बई आई थी।   शकील बदायूँनी को जब मालूम हुआ कि बेग़म अख़्तर मुम्बई आई हैं और आज शाम को वी टी (अब सीएस टी) स्टेशन से उनकी ट्रेन है। शकील साब आनन फानन में वी टी पहुँचे। ट्रेन सीटी दे चुकी थी। वह भागते हुए कोच तक आए। खिड़की से उन्होंने बेग़म अख़्तर को एक कागज़ पकड़ाया और कहा कि आपके लिए एक गज़ल लिखी है।  लखनऊ रेडियो स्टेशन के प्रोग्राम में बेग़म अख़्तर ने शकील साब की लिखी गज़ल गायी। वो गज़ल इतनी मकबूल हुई कि गज़ल संसार की सिग्नेचर ट्यून बन गई। वो गज़ल थी 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया '

फ़िल्म लीडर, मेरे महबूब, दिल दिया दर्द लिया के गीत 'कोई सागर दिल को बहलाता नहीं',  दो बदन के गीत 'लो आ गई उनकी याद' या 'जब चली ठंडी हवा' जैसे लिखे इनके गीत रेडियो और ग्रामोफोन पर लोग सुन रहे थे तभी शकील साब टी बी रोग से ग्रसित हो गए । उन्हें पंचगनी के सेनेटोरियम में भर्ती कराया गया। नौशाद को पता था कि इन्हें पैसे की कमी है।  एक सच्चे दोस्त के नाते उन्होंने शकील साब को बतौर गीतकार तीन फिल्में साइन कराई । प्रोड्यूसर से एक साथ पूरे पैसे लेकर उन्होंने शकील साब के इलाज का बंदोबस्त किया। शकील बदायूँनी ने तीन फिल्मों के गीत पंचगनी के सैनिटोरियम में रहकर लिखी।  वे तीन फिल्में थी राम और श्याम, आदमी और संघर्ष । जिसके गाने "आज की रात मेरे दिल की सलामी लेले, आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़, मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दो तो फिर मेरी चाल" बहुत लोकप्रिय हुए। 

पंचगनी से स्वस्थ होने के बाद शकील साब मुम्बई वापिस आ गए । उसके बाद दूसरे संगीतकारों के लिए दो साल तक फिल्मों के गीत लिखते रहे।  एकदिन अचानक फिर उनकी तबियत बिगड़ी। लगभग 54 साल की उम्र में 20 अप्रैल 1970 को बॉम्बे हॉस्पिटल में उन्होंने आख़िरी सांसे ली ।  

शकील बदायूँनी#106वीं जयंती# 3 अगस्त 1916#


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