#75_साल_का_हासिल
बगलें मत झाँको दो जवाब क्या यही स्वराज तुम्हारा है!
- शंकर शैलेन्द्र
तुमने माँगें ठुकराई हैं तुमने तोड़ा है हर वादा
छीना हमसे सस्ता अनाज तुम छँटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है तो हमने भी ललकारा है
मत करो बहाने संकट है, मुद्रा प्रसार इन्फ्लेशन है
इन बनियों-चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कंसेशन है
बगलें मत झाँको दो जवाब क्या यही स्वराज तुम्हारा है!
मत समझो हमको याद नहीं वो जून छियालिस की रातें
जब काले गोरे बनियों में चलती थीं सौदे की बातें
रह गई गुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है!
क्या धमकी देते हो साहब दम दाँटी में क्या रक्खा है
यह वार तुम्हारे अग्रज अंग्रेजों ने भी तो चक्खा है,
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है!
समझौता? कैसा समझौता हमला तो तुमने बोला है
महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है,
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है!
अब सँभलें समझौतापरस्त घुटनाटेकू ढुलमुलयक़ीन
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन,
जो रोकेगा बह जायेगा, ये वो तूफ़ानी धारा है!
हर जोर ज़ुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है...
(रचनाकाल सम्भवतः 1948-49)
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