दलित-पिछड़ावादियों से कुछ बातें
मण्डल कमीशन के शुरुआत से ही दलित-पिछड़ावादी राजनीति करके हमने देखा है। हम पहली बार मंडल कमीशन के सवाल पर गिरफ्तार हुए थे, तब हम कक्षा 11 में पढ़ते थे। कई बार जेल गए हैं, कई बार पुलिस की लाठियां खाये, दर्जनों बार-बार गिरफ्तार हुए। तब मार्क्सवाद पढ़ा तो समझ में आया कि सम्पत्ति वान जो भी हैं, सभी उत्पीड़न कर रहे हैं। कहीं भी देख लीजिए।
हम किसी जाति को उत्पीड़क नहीं मानते।
मगर भारत का संविधान सवर्णों को शोषक उत्पीड़क बता रहा है, जब कि गुजरात में आप का बैकवर्ड पटेल, उ.प्र., विहार में यादव, कुर्मी, कहीं-कहीं जाट आदि जातियों में पैदा होने वाले कुछ लोग भी सम्पत्ति वान होकर जातीय उत्पीड़न करते रहे हैं। महाराष्ट्र में महारों की स्थिति यूपी के यादवों से कमजोर न समझिए, वहां उत्पीड़ित चमार जाति के लोग महारों से अपना आरक्षण अलग करवाने के लिए मांग कर रहे हैं।
कहीं-कहीं तो सवर्णों से ज्यादा बैकवर्ड लोग छुआछूत का भेदभाव करते दिख जाएंगे। सबसे पक्के हिन्दू तो यही बने हुए हैं, दलित भी पीछे नहीं, ऊंचे पदों पर जाने के बाद वे दलितों से ही कितना भेदभाव कर रहे हैं , यह किसी से छिपा नहीं है। एक कुर्मी परिवार में मुझे प्लास्टिक की थाली में खाना खिलाया गया, मैं उस परिवार से कत्तई नाराज नहीं हुआ। दो-एक यादव परिवार में भी ऐसा ही हुआ, मैं उनसे जरा सा भी नाराज़ नहीं हुआ। मैं फिर उस परिवार में जाकर उनके प्लास्टिक के बर्तन में खाना चाहता हूँ, मुझे कोई नाराजगी नहीं। क्योंकि छुआछूत किसी एक व्यक्ति या किसी एक परिवार की बुराई नहीं है, यह हमारे पूरे समाज की बुराई है, इसे हम सब मिलकर ठीक करेंगे।
यू पी और विहार में यादवों के उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर भाजपा ने सपा और राजद को हरा दिया था। तो क्या किसी जाति को उत्पीड़क मान लिया जाये?
हमारी समझ से किसी जाति को उत्पीड़क या शोषक कहना ग़लत है।
क्योंकि न सारे सवर्ण उत्पीड़क होते हैं, न सारे यादव, न सारे जाट, न सारे कुर्मी या अन्य किसी भी जाति के सारे लोग भी उत्पीड़क नहीं होते।
जो भी सबल है, सम्पत्ति वान है वो उत्पीड़न कर रहा है। हम बार-बार कह रहे हैं उत्पीड़कों की कोई जाति नहीं होती,
आप का कहना है कि होती है।
जैसे आप उत्पीड़कों में सवर्ण जाति खोजते हैं, वैसे ही आरएसएस आतंकवाद में मुसलमान खोजता है।
क्या फर्क है आप और आरएसएस में
उसने आतंकवाद का धर्म खोज लिया,
आप ने शोषकों- उत्पीड़कों की जाति खोज लिया।
इसी बहाने आप जातिवाद की दुकान चलाइए और आरएसएस साम्प्रदायिकता की दुकान चलाए। दोनों मिलकर वोट बेचो, सरकार बनाओ। मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, अश्लीलता बढ़ाईए, अडानी अंबानी का मुनाफा बढ़ाइए।
गरीब मेहनतकश जनता जाए भाड़ में।
रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा
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