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Thursday, 20 April 2023

जॉर्ज एंजेल 11 दिसम्बर 1887 को शहीद हुए चार मज़दूर नेताओं में से एक

*दुनिया के मज़दूरो एक हो*

*जॉर्ज एंजेल 11 दिसम्बर 1887 को शहीद हुए चार मज़दूर नेताओं में से एक*

मैंने जर्मनी 1872 में  छोड़ा क्योंकि मशीनों ने कारीगरों को कंगाल कर दिया था और इन्सान जैसी ज़िन्दगी जीने लायक काम भी उनके हाथों को मिलना मुश्किल हो गया था. मैं अपने परिवार के साथ उस अमेरिका में आ गया जहाँ के आज़ादी के किस्से हमने बहुत सुने थे. आप मेरा पिछला इतिहास देख सकते हैं. बम फेंकना छोडिए, मैंने कभी कोई अपराध नहीं किया. ये पहला मौका है जब मैं किसी अदालत के अन्दर घुसा हूँ. अमेरिका महान देश है, दुनिया में सबसे अमीर है लेकिन यहाँ भी मैंने ऐसे अनेक लोगों को देखा है जो कचरे के डिब्बे से निकालकर अपना पेट भरते हैं. उनकी ज़िन्दगी में कोई आनंद नहीं, कोई उत्साह नहीं. इस 'आज़ाद' मुल्क में आकर जब मैंने गौर से देखा तो पाया कि यहाँ भी कमोबेश वही हालात हैं. काम की तलाश में न्युयोर्क, फिलाडल्फिया भटका और बाद में शिकागो आ गया. हर तरफ वही हालात हैं. 

हम काम करना चाहते हैं. हमारे हाथों को काम क्यों नहीं मिलता? मैं ये सोचकर परेशान रहने लगा. फिर मैंने किसी से कार्ल मार्क्स का नाम सुना. मेरी मेहनत की कमाई के जो भी पैसे मेरी जेब में थे उनसे मैंने कार्ल मार्क्स, लासेल और हेनरी जॉर्ज की किताबें खरीदीं. मैं राजनीति को समझने लगा और जल्दी ही मेरी समझ आ गया कि 'चुनाव का अधिकार' तो एक धोखा है, एक पाखंड है. मैं जिस सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सभाओं में जाने लगा था, वो मैंने बंद कर दिया और 'इंटरनेशनल वर्किंग मेन एसोसिएशन' से जुड़ गया. मुझे जर्मनी में सुनी कार्ल शुर्त्ज़ की बात समझ आ गई कि समाजवाद के बगैर मज़दूरों की मुक्ति नहीं हो सकती. वे कहीं के भी नागरिक बनें,, बनें या ना भी बनें, मज़दूरों को इस व्यवस्था में कोई अधिकार नहीं मिल सकते. सारे कानून ऐसे हैं जो मज़दूरों की ज़िन्दगी से आज़ादी और खुशियों की चाह छीन लेते हैं. मैंने देखा, शिकागो के मज़दूर उसी समाजवाद की लड़ाई लड़ रहे हैं जिसे मैंने किताबों में पढ़ा था और मुझे उनसे जुड़कर बहुत ख़ुशी हुई.

मैं सरकारी वकील ग्रिन्नेल और उसके सहायक फर्दमेन को बताना चाहता हूँ कि आप हम 7 मज़दूरों को फांसी और एक को 15 साल जेल में डालकर समाजवादी आन्दोलन को नहीं रोक पाओगे. बस यही होगा कि अगर आप बोलने नहीं दोगे तो हम लड़ने का तरीका बदल लेंगे. मज़दूर बना कुछ भी सकते हैं, ये बात अगर आप की समझ नहीं आई है तो समझ लीजिए. मैंने हे मार्केट मीटिंग में भाषण दिया था और उससे पहले भी अनेकों बार भाषण दिया है. एक बात बताइये, मज़दूर ज़मीन के अन्दर खानों में जाकर ऐसी पुरानी जर्जर मशीनों में काम करते हैं जिनकी मरम्मत नहीं होती. फिर हादसा होता है सैकड़ों मज़दूर मर जाते हैं, क्या आप उस मालिक को फांसी देते हैं जो उन सब का कातिल है. नहीं ना? फिर जब हम इन्सान जैसी ज़िन्दगी जीने के लिए काम के घंटे 8 करना चाहते हैं, पगार में 10 सेंट बढ़ोत्तरी के लिए सभा करते हैं तो आप हम पर गोलियां क्यों चलाते हैं? और एक बात, क्या आप लोगों को ये 'चुनाव की आज़ादी' बिन लड़े मिल गई थी? आज जैसे हालात हैं उनमें मैं चुप नहीं बैठ सकता, ये बात मै स्पष्ट कर देना चाहता हूँ.

सारे अधिकार अमीरों को ही क्यों मिलते हैं? मज़दूरों के हिस्से कुछ भी क्यों नहीं आता. ऐसी सरकारों का मैं कभी भी सम्मान नहीं कर सकता. उनकी पुलिस और जासूसों के बावजूद मैं ऐसी सरकारों से लडूंगा. मैं पूंजीपतियों से भी ज्यादा ऐसी सत्ता से नफ़रत करता हूँ जो इस पूंजीवादी व्यवस्था को चलाती है, उन्हें ही सारे अधिकार देती है. जहाँ तक मेरे ऊपर इस आरोप की बात है कि मैं पूंजीवाद के नकारात्मक प्रभाव में आ गया हूँ , उस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना. मेरी सबसे बड़ी चाहत एक ही है कि मज़दूर अपने दोस्तों और दुश्मनों को जल्दी पहचान जाएँ. 

*जॉर्ज एंजेल  (15.04.1836-11.11.1887) *

*मई दिवस जिंदाबाद*
*शिकागो के अमर शहीदों को लाल सलाम*

*साभार- सत्य वीर सिंह*



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