*ऐसे नहीं मिलते माफिया मिट्टी में*
असद का फर्जी एनकाउंटर, अतीक और अशरफ की पुलिस अभिरक्षा में हत्या के बाद सत्तापक्ष के नेताओं के बयान जिस तरह से आ रहे हैं तथा सत्तापक्ष के नेताओं के चेहरे पर जो क्रूर हँसी दिख रही है इनसे साफ हो जाता है कि प्रदेश में गैंगवार चल रहा है। सत्ता की कुर्सी पर बैठा हुआ गैंग विपक्ष वाले गैंग के सदस्यों को मार रहा है और शूटरों द्वारा धार्मिक नारे लगवाकर गैंगवार को साम्प्रदायिक रूप दिया जा रहा है। ऐसा करके देश को नफरत और दंगे की आग में जलाने की साजिश हो रही है। यह साजिश सत्तापक्ष की ओर से वर्तमान में नगर निकाय चुनाव और निकट भविष्य में लोकसभा चुनाव में लाभ लेने के लिए भी हो रही है। यह भी कहा जा रहा है कि एक नेता खुद को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पुलिस प्रशासन का दुरुपयोग कर रहा है। इन घिनौनी साजिशों में जेल, अदालत, पुलिस प्रशासन खुलेआम सत्तापक्ष की मदद कर रहा है, यह बहुत शर्मनाक है।
उ.प्र. के एक मंत्री का बयान है कि 'पाप और पुण्य का हिसाब इसी जन्म में होता है।' इसका मतलब सीधा सा है कि पुलिस द्वारा पोषित अपराधियों ने दूसरे अपराधियों के पाप का हिसाब गोली मारकर कर दिया, एक मंत्री कहता है कि 'कुदरत ने फैसला कर दिया', इसका मतलब यह भी है कि अब न्यायालय की कोई जरूरत नहीं है। अपराधियों की बन्दूकें ही न्याय करेंगी और इसे कुदरत का फैसला बता दिया जायेगा।
क्या ऊँचे-ऊँचे पदों पर बैठे लोग किसी गैंग के सदस्य या सरगना हैं? अगर ऐसा ही है तो जेल, अदालत, सेना, पुलिस का इस्तेमाल सत्ताधारी गैंग के सहयोगियों की तरह होगा ही।
सत्ता पक्ष के नेता का कहना है कि "माफिया को मिट्टी में मिला देंगे" और विपक्ष के कई नेताओं ने एक लिस्ट जारी करके बताया कि 'माफिया को मिट्टी में मिलाने की बात एकतरफा है', वो सत्तापक्ष के माफियाओं को मिट्टी में नहीं मिलाएँगे केवल विपक्ष के माफिया को मिट्टी में मिलायेँगे। सत्तापक्ष और विपक्ष के आरोपों-प्रत्यारोपों से सिद्ध हो जाता है कि माफियाओं के कई बड़े-बड़े गैंग हैं कुछ सत्ता में हैं कुछ विपक्ष में है।
यदि सत्तापक्ष और विपक्ष का आरोप- प्रत्यारोप सही है, जो लगता भी है, तो इसी तरीके से कानून को ताक पर रख कर फर्जी एन्काउन्टर और सत्ताधारियों द्वारा प्रायोजित हत्याएँ करायी जाती रहेंगी तो कोई भी आरोपी न्यायालय अथवा पुलिस के सामने समर्पण नहीं करेगा बल्कि वह जेल, अदालत, पुलिस से बचने के लिए छिपकर दूसरे कई तरह के अपराधों को अंजाम देता रहेगा। पत्रकार बन कर जो हत्यारों ने घटना को अंजाम दिया, इससे पत्रकारों को भी हमेशा शक से देखा जाएगा।
वो कह रहे हैं माफिया को मिट्टी में मिला देंगे मगर माफिया इस तरह गैंगवार और साम्प्रदायिक उन्माद के जरिए नहीं मिटाए जा सकते। पहले जानना होगा कि माफिया बनते कैसे हैं।
माफिया या बाहुबली सिर्फ बन्दूकों से नहीं बनते, बन्दूकों से सिर्फ शूटर बन सकते हैं। बड़े माफिया वही बनते हैं जो सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन के मालिक होते हैं। इतनी बड़ी जमीनों की हैसियत के आधार पर ही वे सरकार से ठेका, पट्टा, कोटा, परमिट, लाइसेंस, एजेन्सी, अनुदान, सस्ते कर्ज आदि हासिल कर लेते हैं। जमीन की हैसियत के अनुसार ही वे गुण्डे/शूटर पालते हैं। इन्हीं सब रसूखों के बलपर वे सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियों से टिकट हासिल कर लेते हैं और संसद व विधानसभाओं में पहुँचकर किसानों, मजदूरों, बुनकरों के खिलाफ कानून बनाते हैं तथा पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाते हैं। अत: खेती करने वाली 60% आबादी के पास जमीन न होना तथा मुठ्ठी भर सामन्ती घरानों के पास सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन होना ही आज के रावण की नाभि का अमृत है। जब तक सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन सामन्ती रावणों के कब्जे में रहेगी तब तक, कितना भी मिट्टी में मिलाने का दम्भ भरें, रावणों को खत्म नहीं कर सकते और सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन की ताकत से नये-नये रूप में रावण पैदा होते रहेंगे। एक मरेगा तो दूसरा उसकी जगह ले लेगा।
विपक्ष ही नहीं सत्तापक्ष में भी ऐसे बहुत रावण भरे पड़े हैं जिनके पास सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन नाभि के अमृत के रूप में आज भी है जबकि वे खेत में पैर भी नहीं रखते। ऐसे लोगों के कब्जे की जमीनें जब तक भूमिहीन व गरीब किसानों में बाँटी नहीं जाएगी तब तक कोई भी सरकार बड़ी-बड़ी जमीनों के मालिकों को माफिया बनने से रोक नहीं सकती और न ही ऐसे एनकाउण्टरों और बुलडोजरों के बल पर माफिया को मिट्टी में मिला सकती है।
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*
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