10 मई 1857 का पावनतम दिवस हिंदुस्तान के इतिहास में हमेशा ही सबसे दैदिप्यमान सितारे की मानिंद चमकता रहेगा. भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हिंदू मुस्लिम एकता की अनुपम मिसाल है. आजादी के इस महाभारत ने भारतीयों में स्वाभिमान और मनुष्यत्व का बोध जगाया, इस महासंग्राम ने अंग्रेजों के अजेय होने या बने रहने के होंसले को चकनाचूर कर दिया.
भारत के इस स्वतंत्रता संग्राम ने भारतीयों के दिलों में आशा और उम्मीद व विश्वास का दिया जला दिया और एक ऐसी मशाल प्रज्वलित की कि जो नब्बे सालों तक यानी आजादी प्राप्त होने तक जलती रही. 1857 की आजादी की लडाई ने एशिया के मुल्कों को अंग्रेजों के गुलाम और तबाह होने से बचा लिया और सबसे बड़ी बात यह कि भारतीय जन और मन ने अंग्रेजों की सुपरनेचुरल होने के घमंड को चूरचूर कर दिया और यह भी कि उन्हें जंग में बाकायदा हराया जा सकता है.
मेरठ से शुरू हुई 1857 की आजादी और क्रांति की चिंगारी में मेरठ के 85 सैनिक थे जिनमें 53 मुस्लिम और 32 हिंदू सैनिक थे. जंगे आजादी के संग्राम में यह एक अद्भुत मिसाल है. भारत के मुक्ति संग्राम के लिए 1763 से सन 1900 तक भारत की जनता ने लुटेरे अंगरेजों से 123 विद्रोह किये. यानि की भारतीयों ने अपने निरंतर संग्राम से उन्हें अमन सुकून से नही जीने दिया.
अंग्रेजों जानपूछकर और एक षडयंत्र के तहत इस महान संग्राम को सिपाही बगावत ही बताते और लिखवाते रहे, मगर हकीकत कुछ और ही थी, महान क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स और ऐंगेल्स ने इस लडाई को फौदी बगावत नही सचमुच राष्ट्रीय विद्रोह बताया और उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन को उखाड़ फैंकने के लिए यह भारतीय जनता की क्रांति है. ब्रिटिश लेबर लीडर अर्नेस्ट जोन्स ने कहा कि विश्व के इतिहास में जितने भी विद्रोहों की चेष्टा की गई है यह एक सबसे ज्यादा न्यायपूर्ण, भद्र और आवश्यक विद्रोह है. ब्रिटिश सांसद डिजरेली ने कहा कि 1857 का विद्रोह राष्ट्रीय विद्रोह है. भारतीय इतिहासकार अयोध्या सिंह ने बताया कि भारतीय स्वाधीनता के लिए यह पहला राष्ट्रीय संग्राम था.
इस संग्राम को विस्तार देने और लोकप्रिय बनाने के लिए पंडितों, साधुओं, मौलवियों और फकीरों को पलटनों में भेजकर उन्हें फिरंगियों के खिलाफ भडकाया गया. संग्राम को संगठित करने के लिए "तीर्थयात्रायें" की गयीं, विद्रोह के गुप्त दूत" कमल के फूल" हिंदुस्तानी पलटनों में और "रोटियां" गांवों में किसानों को जाग्रित करने और विद्रोह की तैयारियों के लिए एक सोची समझी रणनिती के तहत भेजी गयीं.
इस महासंग्राम का मकसद था, फिरंगियों को मार भगाना, देश को आजाद कराना, लुटेरे अंगरेजों की लूट, अत्याचार और शोषण से जनता और वतन को बचाना.
इस आजादी के संग्राम के सिपाही थे,,, किसान मजदूर, जमींदार ताल्लुकदार, राजा रानी और नवाब व बेगम, कारीगर सेठ साहूकार, और हिंदू मुस्लिम भारतीय सैनिक.इस संग्राम की तैयारियां 1854 से एक साझा अभियान और रणनिती के साथ चल रही थीं. इस संग्राम के अगुवा सम्राट बहादुर शाह जफर कोऔर उनके सचिव अमिचंद बनाये गये. संग्राम की कमान नाना साहिब और उनके सचिव अजीमुल्ला खां के हाथों में सौंपी गयी थी .
इस महायुद्ध के संचालन के लिये एक युध्द संचालन समिति का गठन किया गया था जिसमें पचास प्रतिशत हिंदू और पचास फीसदी मुस्लिम थे.आजादी की इस लडाई में सबसे बहादुर दो महिलायें थी, महारानी लक्छमीबाई जिनके तोपची गौसखान और कर्नल जमां खां और खुदा बख्श थे. महारानी लक्छमीबाई ने सभी जातियों के नौजवानों और नवयुवतियों की मिली जुली फौज तैयार की थी.
दूसरी बहुत ही बहादुर, पराक्रमी और सुयोग्य सेनापति बेगम हजरत महल अवध की महारानी थी जो अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हों तक अंगरेजों से युध्दरत रही, उनके अनेक हिंदू राजा और सरदार थे जैसे सरदार मामू, रावराम बख्शसिंह, चंदा सिंह, गुलाब सिंह, हनुमंत सिंह आदि आदि. राजा बालकृष्ण सिंह उनके प्रधानमंत्री थे.
इस संग्राम की सफलता के लिये बहादुरशाह जफर ने अपने हाथों से भारत के कई राजाओं को अपने हाथ से एक खत लिखा था,,,,, मेरी यह दिली इच्छा है कि फिरंगी किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर हिंदुस्तान से भगा दिये जायं और सारा हिंदुस्तान आजाद हो जाये.
इस महासंग्राम में औरतों का भी बडा योगदान है. एक औरत थी अजीजन. कौन भुला सकता है उनके योगदान को? ये नर्तकी थीं. ये भारतीय सिपाहियों की
बहुत प्यारी थीं, ये मर्दाना भेस धारण करती और हमारे स्वतंत्रता सेनानी सिपाहियों को जंगेआजादी के लिए प्रोत्साहित करती. यह भी कहा जाता है कि ये अंग्रेजों के भेद हमारे सिपाहियों को बताती थीं.
बैरकपुर में मंगलपांडे के शहीद हो जाने के बाद अंग्रेज ,हिंदुस्तानी सैनिकों से इस कदर खफा और खौफजदा हो गये थे कि वे विद्रोहियों को "पांडे "और विद्रोहीसेना को "पांडे सेना" कहने लगे थे .
आइये देखते हैं कि हमारे शहीद जंग और हमें गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के बारे में क्या कहते थे. शहीद अली नकी खां ने कहा था कि हिंदुस्तान की क्रांति इंसाफपसंद है और अंग्रेजों का रास्ता अन्याय और जुल्मोसितम, ठगी व खुदगर्जी का है " एक पुस्तक विक्रेता पीर अली ने फांसी के फंदे पर खडा होकर कहा था कि तुम हम जैसे लोगों को फांसी दे सकते हो मगर हमारे आजादी के अादर्श को नही और मेरे खून से हजारों वीर पैदा होंगे ."
देखिये बिहार के अस्सी साला वीर कुंवर सिंह का अदभुत कारनामा, वे मैदानेजंग में लड रहे थे कि एक गोला उनको आकर लगता है और उनका एक हाथ कोहनी से नीचे से जखमी हो जाता है तो वे दूसरे हाथ से इसे काट कर गंगा मैया में अर्पित कर देते हैं और लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं और मरने से पहले लडाई की कमान अपने छोटे भाई अमरसिंह को सौंप जाते हैं जो आजादी की जंग में लडते हुए शहीद हो जाते हैं,
इस मादरेवतन को आजाद कराने वाला एक और आश्चर्य चकित करने वाला कारनामा देखिये, वीर कुंवर सिंह के परिवार की 150 औरतों ने 19वीं सदी का "जौहर व्रत" किया.अपने को अंग्रेजों के हाथों पडकर अपना पत्नीत्व लुटवाने से बचने के लिए इन तमाम स्वतंत्रता सेनानियों ने तोपों के मुहाने पर खडे होकर, तोप के पलीतों में खुद ही आग लगाली और आजादी के लिए कुरबान हो गयीं, कुरबान जाऊं इन सबसे बहादुर औरतों पर.नंदन वंदन और अभिनंदन इन सब माताओं, बहनों बेटियों बहुओं का. क्या ऐसी मिसाल दुनिया के किसी जंगेआजादी के आंदोलन में मिल सकती है?
दगाबाजी, छल कपट और मक्कारियां अंग्रेजों के सबसे बडे हथियार रहे हैं और इनमें उनका कोई सानी नही था. अब देखिये इस आजादी के संग्राम में कुछ गद्दार और देशद्रोहियों भारतीय राजाओं, नवाबों की कारस्तानियां,,,,,, गद्दार सिंधिया और उसके मंत्री दीवान दिनकर ने महारानी लक्छमीबाई को अपने किले में नही घुसने दिया था, जीयाजी राव सिंधिया के बारे में तत्कालीन गवर्नर जनरल कैंनिंग का विलायत को भेजा गया तार से जानिये कि वह क्या कहता है,,,,," अगर जियाजी राव विद्रोह में शामिल हो जाता तो हमें कल ही अपना बिस्तर बोरिया बांधकर चले आना होगा ".
और गद्दारों के बारे में भी जानिये,,,,, पोबाई के राजा गद्दार जगन्नाथ सिंह ने इस स्वाधीनता संग्राम के सबसे बेहतरीन वक्ता और संगठनकर्ता मौलाना अहमदशाह का सिर कलम करके अंग्रेजों को भेंट किया और अंग्रेजों से 50000रू का इनाम पाया. यही पर एक और गद्दार की कारस्तानी देखिये,,,,, दग़ाबाज़ जागीरदार मानसिंह ने इस महासंग्राम के सर्वश्रेष्ठ वीर तातिया टोपे को पकडकर अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया, तातिया टोपे दक्षिण भारत में जाकर अंग्रेजों से छापामार जंग जारी रखना चाहते थे, अंग्रेजों ने महान राष्ट्रवादी वीर तातिया टोपे को 18 अपैल 1859को शिवपुरी में फांसी लगा दी.
और देखिये इस गद्दारों की फहरिस्त में कौन कौन शामिल थे,,, अधिकांश सिख सामंतों, गुरखा सामंतों, राजाओं, जमांदारों, हैदराबाद के निजाम, सम्राट बहादुरशाह जफर के समधी मिर्जा इलाही बख्श ने जमकर दगाबाजी और गद्दारी की और क्रांतिकारियों की बैठकों की सूचनायें अंग्रेजों को दी और लगातार अंग्रेजों का बखूबी साथ निभाया.
इन्हीं तमाम सूचनाओं के आधार पर खूंखार, खूनी और हत्यारे अंग्रेज हडसन ने साम्राट बहादुरशाह जफर के दो बेटों और एक पौते को सडक पर खडा करके गोलियों से उडा दिया, उनकी लाशें कई दिनों तक वहीं पडी रही, उन्हें चील कऊऐ नोचते रहे और बाद में उनके कंकालों को जमना नदी में फैंक दिया गया.
यह है संक्षेप में हमारे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की छोटी सी दास्तान. यह दुनिया के आजादी के इतिहास में सबसे बडी लडाई, यह था स्वाधीनता के लिये भारतीय जनता का अद्भुत इतिहास.दोस्तों हम अभी भी पूरी तरह से आजाद नही हुऐ हैं, हम आर्थिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से अभी भी गुलाम बने हुए हैं. हमें अभी भी पूर्ण रूप से आजाद होना है, 1857 की आजादी की जंग हमें पूर्ण रूप से आजाद होने के कुछ मंत्र, कुछ हथियार, कुछ दाँवपेंच मौहिया कराती है, हमें पूर्ण रूप से आजाद होने के लिए इनका प्रयोग करना ही होगा.याद रखना वही साम्राज्यवाद दूसरे भेष भरके हमारी बची खुची आजादी पर हमले करके हमें फिर से गुलाम बनाने पर आमादा है. हमें उम्मीद है कि हिंदुस्तान की महान जनता जातिवाद, जुमलेबाजी, साम्प्रदायिकता बेईमानी और भ्रष्टाचार की विकृतियों को परास्त करके, किसानों, मजदूरों और तमाम मेहनतकशों को पूर्ण रूप से आजाद कराने की जंग एकबार फिर लडेगी.
अपने इस लेख में हम कुछ काव्यांश भी डाल रहे हैं, दिखिये जरा,,,,,,, देखिये सुभद्रा कुमारी चौहान क्या कहती हैं,,,,,,,
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी.....
बहादुरशाह जफर का एक बहुत ही खूबसूरत और मशहूर शेर देखिये,,,,,,,
गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमाम की,
तख्त लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की.
उनकी एक और ख़्वाहिश भी देखिये, वे अपनी मादरेवतन मे दफनाये जाने के लिए कितने बैचेन और लालायित थे,,,,,,,
कितना बदनसीब है जफर, दफ्न के लिए,
दो गज जमीन भी न मिली कू-ऐ-यार में.
और देखिये हिंदुस्तानी जनता की जुल्म से उलझने और लडने की इच्छा और कुव्ववत,,,,,,,,
यूं ही हमेशा जुल्म से उलझती रही है खल्क,
न उनकी रस्म नयी और ऩ अपनी रीत नयी.
यूं ही हमेशा हमने खिलायें हैं आग में फूल ,
न उनकी हार नयी और न अपनी जीत नयी .
भारत की जंगे आजादी में इस महाभारत का बहुत बडा योगदान है.इसका इतिहास डेढ लाख पन्नों में लिखा गया है, दुनिया में आजादी का सबसे लंबा विस्तृत विवरण. इस महासंग्राम की बडी विरासत है,हिंदू मुस्लिम की एकता की विरासत , यह धरम को राजनीति में आडे नही आने देता, यह हमारी आजादी का मक़सद तय कर देती है, और इस देश और दुनिया को एक महामंत्र दे जाता है कि इस देश के मजदूर किसान और मेहनतकशऔर बुध्दिजीवी एकजुट होकर किसी भी दुश्मन को हरा सकते हैं और किसी भी जंग को जीत सकते हैं, यहीं इस जंग के सबसे बड़े सबक हैं.
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