1931 में कानपुर में हुए दंगों में स्व.गणेशशंकर विद्यार्थी मारे गए थे। "जोश " मलीहाबादी ने इस दंगे को लेकर एक बहुत ही मार्मिक कविता लिखी थी। रामनवमी को जिस प्रकार सांप्रदायिक संगठन दंगानवमी बना देना चाहते हैं, ऐसे माहौल में ऐसी कविताओं को पढ़ना और दूसरों को पढ़ाना हर संवेदनशील व्यक्ति का कर्तव्य है। अपनी समझ से इसका भावार्थ भी मैने नीचे दे दिया है।
ऐ सियह रू, बेहया, वहसी, कमीने, बदगुमाँ!
ऐ जबीने अर्ज़ के दाग़, ऐ दनी हिन्दोस्ताँ !! -1
तुझ पै लानत ऐ फिरंगी के गु़लामे बेशऊर !
यह फ़िजाये सुलह परवर, यह क़ताले कानपुर।।-2
तेगे़बुर्राँ और औरतका गला क्यों बदसिफ़ात ?
छूट जायें तेरी नब्जे़ं, टूट जाएंँ तेरे हात।।-3
कोहनियों से यह तेरी कैसा टपकता है लहू ?
यह तो है ऐ संगदिल ! बच्चोंका खूने मुश्कबू।।-4
मर्द है तो उससे लड़ पहले जो मारे फिर मरे।
तूने बच्चों को चबा डाला, खुदा गा़रत करे।।-5
तूने ओ बुज़दिल ! लगाई है घरोंमें जिनके आग।
क्या इन्हीं हाथोंमें लेगा रख़्शे आजादी की बाग ?-6
इस तरह इन्सान, और शिद्दत करे इन्सानपर।
तुफ़ है तेरे दीनपर, लानत तेरे ईमानपर।।-7
(भावार्थ)
1.ऐ कलंकित मुख वाले, बेहया, वहशी, शक्की! ऐ धरती के माथे के दाग, ऐ हिन्द के कमीने!!
2.लानत है तुझपे ऐ फिरंगी के बर्बर गुलाम! मेल मिलाप का यह मौसम, और यह मारकाट का कानपुर।।
3.गर तेरी तलवार इतनी ही तेज, तो औरत का गला क्यों रे दुष्ट? तेरी धड़कन रुक जाय, तेरे हाथ टूट जाँय ।।
4.तेरे कोहनी से यह कैसा लहू टपक रहा ? ऐ पत्थर दिल, इससे बच्चों के खून की कस्तूरी महक आ रही।।
5.मर्द है तो उससे लड़ जो मारे और मरे। तूने बच्चों को मारा, खुदा तेरा नाश करे।।
6.अरे ओ कायर, जिन हाथों से घरों में तूने आग लगाई, क्या इन्हीं हाथों से आजादी के अश्व की बागडोर थामेगा ।।
7.इन्सान होकर इन्सान पर ऐसा अत्याचार। तेरे धर्म पर थू, तेरे ईमान पर धिक्कार।।
(आदरणीय Jagadishwar Chaturvedi जी के वॉल से साभार ली गयी यह कविता)
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