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Saturday, 8 April 2023

सरकार द्वारा बनाई गईं मज़दूर कल्याण योजनाएँ – असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के साथ भद्दा मज़ाक़

सरकार द्वारा बनाई गईं मज़दूर कल्याण योजनाएँ – असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के साथ भद्दा मज़ाक़

हमारे देश में बहुत बड़ी संख्या में मज़दूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। निर्माण मज़दूर, खेत मज़दूर, भट्ठा मज़दूर, घरों में साफ़-सफ़ाई के काम करने वाली औरतें और ऐसे अनेकों ठेके और पीस रेट पर दिहाड़ी-मज़दूरी के काम जो उद्योग में नहीं होते, ये सारे काम असंगठित क्षेत्र में आते हैं। इस क्षेत्र के मज़दूर सख़्त शारीरिक मेहनत और बहुत कम मज़दूरी मिलने के कारण ग़रीबी भरी ज़िंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। आँकड़ों के मुताबिक़ कुल मज़दूरों का 83 फ़ीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है।

इन मज़दूरों की बहुत ही छोटी-सी संख्या है, जिनके मज़दूर-कार्ड बने हैं या अन्य मज़दूर कल्याण योजनाओं के तहत पंजीकृत हैं। बाक़ी मज़दूर पंजीकृत ना होने के कारण इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे। क्योंकि मज़दूर-कार्ड या अन्य मज़दूर कल्याण योजनाएँ लागू कराने की प्रक्रिया आम मज़दूर के लिए बड़ी दुश्वारियाें भरी हैं। यदि थोड़ी-सी संख्या में पंजीकृत मज़दूरों की बात करें तो इनमें भी बड़े हिस्से को सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल रहा, जिसका कारण अनेक तकनीकी और दस्तावेज़ी झमेले हैं।

पिछले समय में सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए 'ई-श्रम कार्ड' नामक एक नई योजना शुरू की थी। जिसके ज़रिए असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के लिए दो लाख पेंशन देने के बारे में कहा गया था। जैसे कि ऊपर बताया गया है कि असंगठित क्षेत्र के बड़ी संख्या में मज़दूर तो पहले ही सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले रहे और जो छोटी-सी संख्या में मज़दूर इन योजनाओं के लिए पंजीकरण कराते हैं, उनमें से भी ज़्यादातर इन योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते क्योंकि उनके आधार कार्ड और बैंक खाते जड़े हुए नहीं। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, अनेक योजनाओं के लाभ बैंक खाते और आधार कार्ड जुड़े न होने के कारण बड़ी संख्या में लाभार्थियों तक नहीं पहुँच रहे। ई-श्रम पोर्टल पर दर्ज जानकारी के अनुसार पंजीकृत 5.29 करोड़ असंगठित मज़दूरों में से 74.78 फ़ीसदी या 3.9 करोड़ मज़दूरों के बैंक खाते आधार से नहीं जुड़े हुए।

ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत कराने के दौरान मज़दूर को एक 12 अंकों का पहचान नंबर जारी किया जाता है, इसके बिना पोर्टल पर पंजीकरण नहीं माना जाता, लेकिन ई-श्रम नंबर होने के बावजूद भी मज़दूर योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते, क्योंकि इनके बैंक खाते और आधार कार्ड जुड़े हुए नहीं हैं। सर्वोच्च अदालत का आदेश है कि चाहे किसी मज़दूर के पास आधार नंबर नहीं है, फिर भी उसे राशन समेत सेवाएँ देने से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन काला धन रोकने से संबंधित क़ानून इसके विपरीत हैं। मनी लॉन्डरिंग रोकथाम नियम 2019 के तीसरे संशोधन के मुताबिक़ यदि कोई भी व्यक्ति किसी तरह की सब्सिडी प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपना आधार नंबर और बैंक खाता जोड़ना ज़रूरी है और अब तक सभी सरकारी कल्याण योजनाएँ चाहे वह घरेलू गैस सब्सिडी, प्रधानमंत्री आवाज़ योजना हो या प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधी योजना, इनका लाभ लेने के लिए लाभार्थी की पहचान को प्रमाणित करने के उद्देश्य से बैंक खाते और आधार को जोड़ना ज़रूरी है।

समस्या यह है कि सख़्त मेहनत वाले काम करते वक़्त मज़दूरों के हाथ घिस जाने के कारण उनकी उँगलियों के निशान नहीं आते और आम तौर पर ऐसी हालत में बैंक और अन्य जगहों पर लोगों के बार-बार चक्कर लगवाए जाते हैं। बहुत से मज़दूरों के राशन कार्ड भी इसी कारण के चलते काट दिए गए हैं और ऐसी समस्याएँ बैंक खाते से आधार लिंक करने में भी आती हैं। दूसरी समस्या है कि यह तबक़ा हर रोज़ कुआँ खोदकर पानी पीने की स्थिति में जीता है यानी हर रोज़ दिहाड़ी मज़दूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता है, बीमारी की हालत में भी ये मज़दूर सख़्त मज़दूरी करते हैं और इसलिए छुट्टियाँ लेकर बैंकों और अन्य जगहों के चक्कर काटना इनके बस की बात नहीं होती। तीसरी समस्या है मज़दूरों-ग़रीबों के साथ भेदभाव और रिश्वत, जिसके चलते इनके थोड़े-बहुत दस्तावेज़ी काम भी लंबे समय के लिए लटक जाते हैं। इनकी वजह से ही आधार कार्ड और बैंक खाते होने के बावजूद भी ये मज़दूर सरकारी योजनाओं के ज़रिए कोई लाभ या सब्सिडी नहीं ले पाते। इस समस्या के हल के लिए श्रम विभाग, सरकार और न्यायपालिका द्वारा चुप्पी धारण की हुई है। क्योंकि ये मज़दूरों के लिए कोई भी क़दम नहीं उठाना चाहते बल्कि बड़े पूँजीपतियों की तोंदें भरने में ही मशरूफ़ हैं। पिछले लंबे वक़्त के दौरान कोरोना के नाम पर लगाए गए लॉकडाउन ने श्रम मज़दूरों को बुरी तरह से झकझोरकर रख दिया। सबसे बुरी हालत असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की हुई, इनमें से भी प्रवासी मज़दूरों की हालत अधिक बुरी हुई, उनके रोज़गार छिने, भयंकर भुखमरी जैसे हालातों से सिर पर छत्त भी नहीं रही और प्रवासी होने के कारण रिहायश के सबूत आदि जमा ना करा सकने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ भी नहीं ले सकते और दूसरी ओर सरकानों ने अमीरों के घाटों को पूरा करने के लिए ख़ज़ाने खोल दिए और ग़रीबों के लिए योजनाओं के विज्ञापन जारी करने के सिवाए कुछ नहीं किया। हर सरकार के पास संकट के वक़्त लोगों को राहत देने के लिए अलग कोष होता है जो लोगों से ही वसूला जाता है, लेकिन लॉकडाउन की भयंकर हालातों के दौरान भी इसका इस्तेमाल लोगों को राहत देने के लिए नहीं, बल्कि पूँजीपति वर्ग को लाभ पहुँचाने के लिए किया। इसके अलावा केवल मतदान सूची में दर्ज लोगों की थोड़ी-सी मदद के लिए जो राशन किटें भेजीं, उन पर भी अपनी फ़ोटो और चुनाव निशान लगाकर वोटें पक्की करने की राजनीति की गई। ऐसे में असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों तक तो राशन किटें भी नहीं पहुँची, क्योंकि उनके पास वोट-कार्ड नहीं हैं।

देखा जाए तो यदि सरकार को मेहनतकश-मज़दूरों की कोई चिंता होती तो लॉकडाउन का बहाना बनाकर उन्हें घरों में ठूँसकर, उनके मुँह पर मास्क लगाकर ज़ुबानबंदी करके, आफ़त नहीं मौक़ा जैसे नारे देती हुई मोदी सरकार मज़दूरों के कल्याण के लिए बने श्रम क़ानूनों को पूँजीपतियों के हक़ में क्यों संशोधित करती। वक़्त-वक़्त पर सरकार द्वारा बनाई गईं कल्याण के नाम पर योजनाएँ केवल लोगों के आक्रोश को दबाने के लिए जुमले साबित हो जाती हैं। इन जुमलों की राजनीति अब मेहनतकश जनता कब तक सहारेगी।                   

– बलजीत कौर

मुक्ति संग्राम  – बुलेटिन 13 ♦ दिसंबर 2021 में प्रकाशित

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