*आमने-सामने की दुकान*
एक बाजार में दो दुकाने आमने-सामने लगी होती हैं। दोनों दुकानों के दुकानदार अपना-अपना माल बेचने के लिए किस तरह से ग्राहकों को पटाने की होड़ कर रहे हैं। एक चिल्ला रहा है-सामने वाली दुकान पर रखी आलू अंदर से सड़ी हुई है, दूसरा चिल्ला रहा है सामने वाली दुकान पर रखी प्याज जहरीले रसायन से तैयार की गई है, उसकी मटर की फलियों में फफूंद है,.... इत्यादि। दोनों एक दूसरे के माल के बारे में बुरा-भला कह रहे हैं। यह उस बाजार की कहानी है जहां सबको अपनी दुकान चलाने की व अपने माल के प्रचार-प्रसार की संवैधानिक आजादी है।
यही बात धर्म की दुकान पर फिट बैठ रही है, कुछ लोग 22 तरह की प्रतिज्ञाएं दिला रहे हैं, यानी सामने वाली दुकान पर खरीद-फरोख्त ना करने की कसम दिला रहे हैं। जिससे लोग उनकी अपनी दुकान के पक्के ग्राहक बन सके। वे सिद्ध करना की कोशिश कर रहे हैं कि यह दुनिया में चलने वाली सबसे बड़ी दुकान "बौद्ध धर्म" की दुकान है। दूसरी दुकान वाला भी कुछ इसी तरह से भीड़ में चिल्ला रहा है। वह भी सामने वाली दुकान के माल सडे़ होने की बात कहते हुए, अपने दुकान के पक्के ग्राहक बनाने की कसम दिला रहा है। कह रहा है, इस दुकान का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है, यह हिंदू धर्म की दुकान है। हालाँकि पहले ऐसी या इस नाम की कोई दुकान नहीं थी, यह दुकान अभी निर्माणाधीन है।
इसी तरह से तीसरी दुकान वाला चिल्ला कर कह रहा है। वह भी अपनी दुकान के पक्के ग्राहक तैयार करने की फिराक में लगा हुआ है। कह रहा है यह दुनिया में फैले हुए इस्लाम धर्म की दुकान है। कोई कह रहा है यह ईसाई धर्म की दुकान है। कोई यहूदी धर्म की बता रहा है।
यह उस भारतीय बाजार की कहानी है, जहां धर्म और आस्था की संवैधानिक आजादी है। लोग चिल्ला चिल्ला कर संविधान की रक्षा की बात करते हैं। यही संविधान की रक्षा की बात करने वाले लोग, एक दूसरे धर्म के खिलाफ नफरत का माहौल तैयार कर रहे हैं। लगता है संविधान ने उन्हें धार्मिक आजादी इसी तरह की दे रखी है कि वे एक दूसरे की आस्था पर कुठाराघात कर रहें। और रोज नये-नये दंगों की तैयारी करते रहें। उनका धार्मिक उन्माद सिर्फ चंदा चढ़ावा की होड़ का परिणाम है।
कार्ल मार्क्स ने पूँजी प्रथम खण्ड की भूमिका में सही कहा है कि– "चर्च के चालीस नियम होते हैं, कोई उनमें से 39 नियमों की अवहेलना कर डाले तो पादरी उसे माफ कर सकता है, परन्तु एक नियम ऐसा है जिसकी अवहेलना करने पर पादरी कभी भी आप को माफ नहीं कर सकता। वह नियम है- चढ़ावा प्राप्त करने का नियम।"
यह बात लगभग सभी धर्मों के मठाधीशों पर लागू होती है। सभी धर्मों के ठेकेदार दान, चन्दा, चढ़ावा प्राप्त करने के लिए धार्मिक उन्माद पैदा करते हैं।
धर्म में आस्था रखने वाली भोली भाली जनता निष्कपट भाव से प्रार्थना करती है। यह जनता आम तौर पर किसी दूसरे धर्म से नफ़रत नहीं करती। ये मठाधीश ही होते हैं जो अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए धार्मिक उन्मादफैला कर दंगे-फसाद कराते रहते हैं।
*राजेन्द्र प्रसाद*
*यह लेख नया अभियान मासिक पत्रिका के मार्च-अप्रैल संयुक्ताक से लिया गया है।*
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