लेनिन के जन्मदिवस (22 अप्रैल) पर बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता
लेनिन की मृत्यु पर कैंटाटा* (अनुवाद- सत्यम)
1.
जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: 'इलिच
शोषक आ रहे हैं।' वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।
2.
जब कोई भला आदमी जाना चाहे
तो आप कैसे रोक सकते हैं उसे?
उसे बताइये कि अभी क्यों है उसकी ज़रूरत।
यही तरीक़ा है उसे रोकने का।
3.
और क्या चीज़ रोक सकती थी भला लेनिन को जाने से?
4.
सोचा उस सैनिक ने
जब वो सुनेंगे, शोषक आ रहे हैं
उठ पड़ेंगे वो, चाहे जितने बीमार हों
शायद वो बैसाखियों पर चले आयें
शायद वो इजाज़त दे दें कि उन्हें उठाकर ले आया जाये, लेकिन
उठ ही पड़ेंगे वो और आकर
सामना करेंगे शोषकों का।
5.
जानता था वो सैनिक, कि लेनिन
सारी उमर लड़ते रहे थे
शोषकों के ख़िलाफ़
6.
और वो सैनिक शामिल था
शीत प्रासाद पर धावे में, और घर लौटना चाहता था
क्योंकि वहाँ बाँटी जा रही थी ज़मीन
तब लेनिन ने उससे कहा था: अभी यहीं रुको !
शोषक अब भी मौजूद हैं।
और जब तक मौजूद है शोषण
लड़ते रहना होगा उसके ख़िलाफ़
जब तक तुम्हारा वजूद है
तुम्हें लड़ना होगा उसके ख़िलाफ़।
7.
जो कमज़ोर हैं वे लड़ते नहीं। थोड़े मज़बूत
शायद घंटे भर तक लड़ते हैं।
जो हैं और भी मज़बूत वे लड़ते हैं कई बरस तक।
सबसे मज़बूत होते हैं वे
जो लड़ते रहते हैं ताज़िन्दगी।
वही हैं जिनके बग़ैर दुनिया नहीं चलती।
8.
इंक़लाबी की शान में क़सीदा
जब शोषण बढ़ता जाता है
बहुतों के हौसले हो जाते हैं पस्त
मगर उसकी हिम्मत और बुलंद होती है।
वह संगठित करता है अपना संघर्ष
मज़दूरी के लिए, रोटी और चाय के लिए
और फिर सत्ता दखल करने के लिए।
वह पूछता है दौलत से:
कहाँ से आई तुम?
पूछता है दृष्टिकोणों से:
किसकी सेवा करते हो तुम?
जब पसरा हो सन्नाटा
वह बोल उठता है
जहाँ भी हो ज़ुल्म, और लोग बात करते हों किस्मत की
वह चीज़ों को पुकारता है उनके सही-सही नाम से।
जहाँ वह बैठता है खाने की मेज़ पर
साथ बैठता है असंतोष भी
खाना लगने लगता है ख़राब
और कमरा कुछ ज़्यादा ही तंग।
जहाँ भी उसे भगाया जाता है
पीछे-पीछे चली आती है उथल-पुथल
और अशांति बनी रह जाती है
जहाँ किया जाता है उसका शिकार।
9.
जब लेनिन नहीं रहे और
लोगों को उनकी याद आई
जीत हासिल हो चुकी थी, मगर
देश था तबाहो-बर्बाद
लोग उठकर बढ़ चले थे, मगर
रास्ता था अँधियारा
जब लेनिन नहीं रहे
फुटपाथ पर बैठे सैनिक रोये और
मज़दूरों ने अपनी मशीनों पर काम बंद कर दिया
और मुट्ठियाँ भींच लीं।
10.
जब लेनिन गये,
तो ये ऐसा था
जैसे पेड़ ने कहा पत्तियों से
मैं चलता हूँ।
11.
तब से गुज़र गये पंद्रह बरस
दुनिया का छठवाँ हिस्सा
आज़ाद है अब शोषण से।
'शोषक आ रहे हैं!': इस पुकार पर
जनता फिर उठ खड़ी होती है
हमेशा की तरह।
जूझने के लिए तैयार।
12.
लेनिन बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में,
वो थे हमारे शिक्षक।
वो हमारे साथ मिलकर लड़ते रहे।
वो बसते हैं
मज़दूर वर्ग के विशाल हृदय में।
(1935)
* कैंटाटा – वाद्य संगीत के साथ गायी जाने वाली संगीत रचना, जो प्राय: वर्णनात्मक और कई भागों में होती है (कुछ-कुछ हमारे बिरहा की तरह)। इस कैंटाटा के संगीत को अंतिम रूप दिया था ब्रेष्ट के साथी और महान जर्मन संगीतकार हान्स आइस्लर ने। इस रचना का आठवाँ भाग 'इंक़लाबी की शान में क़सीदा' ब्रेष्ट ने पहलेपहल 1933 में, गोर्की के उपन्यास 'माँ' पर आधारित अपने नाटक के लिए लिखा था।
अनुवाद: सत्यम
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