27दिसंबर1831के दिन इंग्लैंड के तट पर से बीगल नाम के सरकारी जहाज पने दक्षिण अमेरिका की ओर कूच किया.जहाज के कप्तान की आदेश दिया गया था कि वह दक्षिणअमेरिका के दक्षिणी कोने का चक्कर लगाकर उसके तट और समुद्र का सर्वेक्षण करे.बीगल नेदक्षिण अमेरिका का चक्कर लगाकर प्रशान्त महासागर और हिन्द महासागर को पार किया और अफ्रीका का चक्कर लगाकर पांच साल बाद वापस लौटा. इस प्रकार कप्तान ने अपना काम पूरा किया.लेकिन बात इतनी सी होती तो आज उसे कोई याद नहीं करता.लेकिन इतिहास में बीगल को अमर होना था.
लेकिन उसी जहाज पर 20-25 साल का एक नौजवान था.बीगल को सौंपे गए काम सरकारी काम से उसे कोई मतलब नहीं था.जहाज पर जिस काम से वह गया था उसके लिए उसे कोई वेतन नहीं मिलनेवाला था . इस नौजवान का नाम था चार्ल्स डार्विन.उन्हें शौक था प्राणी, वनस्पति और उसके प्राचीन अवशेषों का संग्रह करना.वे केवल संग्रह ही नहीं कर रहे थे बल्कि वहां के प्राणियों और वनस्पतियों के बारे में अध्ययन कर रहे थे.
1836 में डार्विन अपने घर लौटे. इन तमाम जानकारियों के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले. उन्होंने देखा कि इन प्राणियों मे कुछ अदभुत समानताएँ थी और फर्क भीथा. यह बात को वह समझ गए कि इन सारी जीवो में आपस में सम्बन्ध रही होगी. अलग अलग तरीकों से विकसित होकर अलग हुए होंगे.इसी यात्रा के दौरान उदविकासका आधारभूत सिद्धांत उनके दिमाग में आया. डार्विन आगामी बीस साल तक इसी पर अन्वेषण करते रहे. 1842 में वे इन विचारों को लिखा.फिर काफी चिन्तन के बाद 1858 में इन विचारों के वैज्ञानिक जगत के सामने रखा. हालांकि यह संयोग है कि मलाया से वालेस ने डार्विन को इसी विषय पर इन्हीं विचारों से जुड़े शोध प्रवंध भेजा. दोनो का शोध प्रबंध एक ही समय दुनिया के सामने आया .लेकिन उदविकास के सिद्धांत का श्रेय डार्विन को ही दिया गया क्योंकि 1858से कई साल पहले वह इन सिद्धांतो को ढूंढ़ा और सारे सबूतों के साथ पेश किया.1859में डार्विन का अविस्मरणीय ग्रन्थ प्रकाशित हुआ जो द ऑरिजीन आफ स्पीसीज के नाम से जाना जाता है जिसने वैचारिक जगत में क्रांति ला दी.
इस सिद्धांत नें दो बातें प्रमुख थीं ---
(1)सभी प्राणियों में चक्रवृद्धि दर से वंश बढ़ाने की प्रवृति होती है.
(2)इतना प्रजनन होने के बावजूद भी आम तौर किसी भी प्रजाति के प्राणियों की संख्या स्थिर होती है.
इन दो बातों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि सभी प्राणियों में जीवन के लिए संघर्ष चलता रहता है.सभी प्राणियों में जीवन संघर्ष,उसके शरीर में पायी जानेवाली विऎविधता और 'प्राकृतिक चयन 'के संयोग में जीवसृष्टि में उदविकास होता चला गया.डार्विन के सिद्धांत का यही सार है.
अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द ऑरिजीन आफ स्पीसीज' में डार्विन ने लिखा कि इस सिद्धांत से मनुष्य कीउत्पत्ति हुईफिर भी उनके इस एक वाक्य सेहो-हल्ला उठ खड़ा हुआ.परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना के बारे में इस तरह का नास्तिकऔर जड़वादी विचार पेश करने के कारण उनपर जोरदारहमला बोल दिया गया. लेकिन डार्विन अपने सिद्धांत पर अडिग रहे और अन्तमें1871में डिसेंट आफ मैन (मनुष्य)नामक पुस्तक में उन्होंने इन विचारों को स्पष्ट पूर्वक से पेशकिया.
लेकिन चारों तरफ डार्विन का जमकर विरोध शुरू हो गया था. खुद के खिलाफ हो रहे विरोध से डार्विन इतने आहत थे कि इसका जिक्र करते हुए उन्होंने एक बार कहा था, 'यह नर्क जैसा है.' चर्च के साथ मीडिया ने भी इस किताब के लिए डार्विन को आड़े हाथों लिया था. बताया जाता है कि यह जानकर कि इंसान वानर का वंशज हैं अमेरिका औऱ यूरोप के कई लोग बुरी तरह से हिल गए थे. उसी का परिणाम था कि किताब के प्रकाशन के बाद अमेरिका और पूरे यूरोप केस्कूलकॉलेजोंमें डार्विन की थ्योरी पढ़ाने पर पाबंदी लगा दी गई थी. डार्विन के सिद्धांत पढ़ाने पर जीव विज्ञान के एक अध्यापक पर अमेरिका की एक अदालत में मुकदमा आधुनिक दुनिया के सबसे चर्चित केसों में से एक चलाया गया था जिसे मंकी ट्रायल के नाम से जाना जाता है.
जब यह मुकदमा चल रहा था.कुछ प्रतिष्ठित लोग बाहों पर पट्टी लगाए अदालत के सामने मोर्चा निकाला जिसमें लिखाथा, "हम बंदर नहीं हैं और कोई हमें बंदर नहीं बना सकता.अंत उस न्यायाधीशने फैसला में कहा कि कि मानव और बंदर ने कोई रिश्ता नहीं है.उस शिक्षक 500 डालर का दंड दिया गया है.
आखिर ऐसी क्या चीज थी इस पुस्तक में कि पूरा धार्मिक समुदाय इसके खिलाफ हो गया.तमाम इसाईधर्म गुरूओं की मानना था किपृथ्वी की रचना क्राइस्ट के जन्म से 4004 साल पहले हुई थी. लेकिन डार्विन के विकासवाद की थ्योरी पृथ्वी की उत्पत्ति को लाखों-करोड़ों वर्ष पहले का बताती थी. डार्विन के तर्कों से धर्मगुरूओं को दूसरी बड़ी आपत्ति इस बात से थी कि बाइबिल के मुताबिक ईश्वर ने एक ही सप्ताह में सृष्टि की रचना कर दी थी जिसमें उसने पेड़-पौधे, जीव-जंतु, पहाड़-नदियां और मनुष्य को अलग-अलग छह दिन में बनाया था. (बाइबिल के मुताबिक परमेश्वर ने पहले दिन सूरज और पानी बनाए. दूसरे दिन आसमान. तीसरे दिन पानी को एक जगह इकठ्ठा कर ईश्वर ने धरती और समुद्र बनाए और धरती पर पेड़-पौधे लगाए. चौथे दिन परमेश्वर ने तारों का निर्माण किया. पांचवें दिन परमेश्वर ने समुद्र में रहने वाले जीव-जंतुओं के साथ उड़ने वाले पक्षियों को बनाया और छठे दिन परमेश्वर ने धरती और जानवरों पर अधिकार के लिए अपनी छवि में इंसान की रचना की और उसे गिनती में बढ़ने का आशीर्वाद दिया.इसप्रकार सृष्टि की रचना एक सप्ताह में हुई.
लेकिन डारविन ने अपनी पुस्तक में बताया कि
'मैं नहीं मानता कि पौधे और जीवित प्राणियों को ईश्वर ने अलग-अलग बनाया था.' डार्विन कहते थे कि ये सारे जीव कुछ चुनिंदा जीवों के वंशज हैं जिनमें वक्त के साथ परिवर्तन आते गए और धरती पर लाखों प्रजातियों का जन्म हुआ. उनके मुताबिक पीढ़ी दर पीढ़ी सूक्ष्म बदलावों के कारण बड़े बदलाव घटित हुए, जैसे मछलियां जल-थल जंतुओं में तब्दील हो गईं और बंदर इंसान में. इन्ही बदलावों को 'महाविकास' कहा जाता है.'तभी तो उनके जीवन से जुड़ी फिल्म 'क्रिएसन' जो पुस्तक 'आरिजीन आफ स्पेसिज' में थामस हेनरी डेविड हक्सले से कहते हैं
,"इसके बाद ईश्वर एक सप्ताह में सारे सजीवों के निर्माण का दावा नहीं कर सकता, आपने ईश्वर का कत्ल कर दिया है श्रीमान.'
आज भी बहुत सारे लोग उस टेनेसी के न्यायाधीश की तरह हैं. लेकिन आज भी वह मंकी ट्रायल जारी है.केन्द्रिय मंत्री सत्पाल मलिक आज भी कहते हैं कि डारविन का सिद्धांत सिद्धांत: गलत है.मेरे पूर्वज बंदर नहीं हैं.एक बार चीन के प्रसिद्ध कथा कार लुशुन से इसी सवाल किसी ने यह साधारण बुद्धि का सवाल पूछा तो इसके जबाब में उन्होंने कहा कि चार पैरों से चलने वाले बंदरों में से कुछ ने अपने अनुभवोंके आधार पर दो पैड़ों से चलना ज्यादा मुफीद समझा लेकिन बाकी सबने यहकर विरोध किया कि लाखों साल से हमारे पूर्वज चार पैड़ों से चल रह् हैं.हम उनके रास्ते पर चलेंगे.लुशुन ने कहा कि जीवन के प्रत्येक मोड़ पर इस प्रकार के परिवर्तनों को स्वीकार आगे बढ़ते गये वे ही आज के मनुष्य हैं और आज की सभ्यता केहर मोड़ पर इसी प्रकार पूर्वजों के पथ पर चिपके रहने की दलीलों पर अनेक लोग मनुष्यरूपी बंदर के तौर परपीछे रह जाते हैं उनमें हमारे मंत्री सतपालजी भी हैं जो पूर्वजों के पथ पर आंख मूंदकर चलने वाले."तो आज भी कोशिस जारी है कि ऐसे अवैज्ञानिक बातों को फैलाने की ताकि सच पर हमेशा के लिए ग्रहण लग जाय.
जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने 1953 मे एक ऐसी खोज की, जिससे चार्ल्स डार्विन द्वारा प्रतिपादित अधिकतर सिद्धांतों की पुष्टि होती है. उन्होंने जीवधारियों के भावी विकास के उस नक्शे को पढ़ने का रासायनिक कोड जान लिया था, जो हर जीवधारी अपनी हर कोषिका में लिये घूमता है. यह नक्शा केवल चार अक्षरों वाले डीएनए-कोड के रूप में होता है. अपनी खोज के लिए 1962 में दोनो को चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला था. वे कहते हैं कि जिसे डबलहेलिक्स स्ट्रक्चर कहते हैं, सहखोजी हैं और मानते हैं कि आनुवंशिकी भी पग-पग पर डार्विन की ही पुष्टि करती लगती हैः
"मेरे लिए तो चार्ल्स डार्विन इस धरती पर जी चुका सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है."
एडवर्ड ऑसबर्न विल्सन आजकल के सबसे जानेमाने विकासवादी वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं और वे भी डार्विन के आगे सिर झुकाते हैं:
"हर युग का अपना एक मील का पत्थर होता है. पिछले 200 वर्षों के आधुनिक जीवविज्ञान का मेरी दृष्टि में मील का पत्थर है 1859, जब जैविक प्रजातियों की उत्पत्ति के बारे में डार्विन की पुस्तक प्रकाशित हुई थी. दूसरा मील का पत्थर है 1953, जब डीएनए की बनावट के बारे में वॉटसन और क्रिक की खोज प्रकाशित हुई."भारत के प्रसिद्ध भौतिकविद जयंत नार्लिकर कहते हैं
Charles Darwin's theory of evolution is based "completely on several scientific observations and there is no reason to believe that it is inc
स्टीफन हीकिंग विकासवाद पर कहते हैं
We are just an advanced breed of monkeys on the minor planet of average star.
विज्ञान जगत में तहलका मचादेनेवाले चार्ल्स डार्विनका जन्म 12 फरवरी 1809 ईसवी को इंग्लैंड में हुआ था.अपने माता-पिता की पांचवी संतान डार्विन एक बहुत ही पढ़े – लिखे और अमीर परिवार में पैदा हुए थे.उनके पिता राबर्ट डार्विन एक जानेमाने डॉक्टर थे. डार्विन जब महज 8 साल के थे तो उनकी माता की मृत्यु हो गई थी.चार्ल्स डार्विन को मेडिकल में कोई ज्यादा रूचि नहीं थी.चार्ल्स डार्विन को मेडिकल में कोई ज्यादा रूचि नहीं थी। वो हमेशा प्रकृति का इतिहास जानने की कोशिश करते रहते। विविध पौधों के नाम जानने की कोशिश करते रहते और पौधों के टुकडो को भी जमा करते थे.जब चार्ल्स डार्विन क्राइस्ट कॉलेज में थे तभी प्रोफेसर जॉन स्टीवन से उनकी अच्छी दोस्ती हो गई थी जॉन स्टीवन भी डार्विन की ही तरह प्रकृति विज्ञान में रूचि रखते थे.19 अप्रैल 1882 को चार्ल्स डार्विन की दिल की धड़कन बंद हो जाने के कारण मृत्यु हो गई.ऐंगल्स (Friedrich Engels)ने कहा ----
Just as Darwin discovered the law of development or organic nature, so Marx discovered the law of development of human history.
(Copied from fb post of Sunil Singh)
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