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Wednesday, 12 April 2023

अर्थ

Arvind Shukkla  जी। 

कृषि अर्थशास्त्री व पत्रकार रहे देवेन्द्र शर्मा जी द्वारा प्रस्तुत एक आकलन के अनुसार 1976 में गेंहू 76/-₹ प्रति कुंतल था।45 साल बाद 2015 में गेंहू की कीमत 1450/-₹ प्रति कुंतल थी, जो कि 76/-₹ का 19 गुना होती है।

1970 से 2015 के बीच सरकारी कार्मिकों के वेतन में 120 गुना,स्कूल अध्यापक के वेतन में 280 गुना तथा विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों के वेतन में 150 गुना की वृद्धि हो चुकी है।

मेरी सरकारी नौकरी मई 1997 में लगी तो मेरा पहला वेतन 5100/-₹ मिला था।24 साल के बाद जब मैं सेवानिवृत्त हुआ तब तक यह वेतन 25 
गुना बढ़ चुका था।मतलब कि 24 साल की सरकारी सेवा में 25 गुना वेतन वृद्धि हो गयी।

उपरोक्त वृद्धि के अनुपात में अगर किसान द्वारा अपने खेत में पैदा किए जाने वाले गेहूं की 1970 में कीमत 76/-₹ प्रति कुंतल में 100 गुना भी वृद्धि की जाए तो 2015 में उसे 7600/-₹ प्रति कुंतल गेंहू की कीमत मिलनी चाहिए थी।पर 1970 के 52 साल बाद आज की तारीख में किसान के गेंहू का समर्थन मूल्य 2200 रूपये के भीतर ही है।

इसके अतिरिक्त सरकारी कार्मिकों को वेतन के अतिरिक्त मकान किराया भत्ता,चिकित्सा प्रतिपूर्ति भत्ता तथा शिक्षा भत्ता सहित 108 तरह के भत्ते मिल रहे हैं।यही नही सुप्रीम कोर्ट के जजों को 21 हजार रूपये सालाना धुलाई भत्ता तथा सेना के अधिकारियों 20 हजार रूपये सालाना धुलाई भत्ता मिल रहा है।पर किसान को इनके स्थान पर क्या मिल रहा है-यह विचारणीय सवाल है।

पिछले 08 सालों में देश के कॉर्पोरेट्स के 10 लाख करोड़ से अधिक के बैंक लोन को राइट आफ (माफ) किया जा चुका है और किसान की पिछले 15 सालों के भीतर कुल कर्ज माफी 2 लाख करोड़ से अधिक नही हुई है।

पूरे देश में सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू करने पर देश के सालाना बजट में लगभग 05 लाख करोड़ की वृद्धि हो जाने की संभावना है।सरकारी कर्मचारी को हर छ: महीने पर मंहगाई भत्ते की एक अतिरिक्त किश्त मिल जाती है,जिससे उसका वेतन साल दर साल बढ़ता रहता है।

इस सबके बावजूद देश व विदेश के अर्थशास्त्रियों का यह मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था देश के 15 करोड़ किसान परिवारों की मेहनत के बलबूते पर टिकाऊ बनी हुई है।लेकिन हकीकत यह है कि इस देश की अर्थव्यवस्था देश के किसान को निचोड़कर चल रही है।इसके लिए देश के किसान लगातार अपने जीवन की आहुति दे रहे हैं।

गांव व खेती से जुड़े तथा देश के गांवों किसानों व मजदूरों से सहानुभूति रखने वाले अपने फेसबुक मित्रों से अनुरोध है कि वे कृपया अपनी फेसबुक वाल पर इस पोस्ट को शेयर करें और इसे कृपया मुझे भी टैग करें।

(जागें गांव जागें किसान) 

(17-03-2023)


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