वलीमियाँ शेख़पीर उर्फ़ चचा विलियम शेक्सपियर कह गये हैं -
सोना? पीला, चमचमाता, बहुमूल्य सोना?
नहीं, देवताओ, मैं नहीं झूठा उपासक!..
इतना-सा सोना बनाता स्याह को सफ़ेद, अनुचित को उचित,
निकृष्ट को उदात्त, वृद्ध को तरुण, कायर को नायक!
...यह छीन लेता तुमसे तुम्हारे पुजारी और सेवक,
खींच लेता तकिये बलवानों के सिर के नीचे से :
यह पीत दास
जोड़ता-तोड़ता धर्मों को, अभिशप्तों को देता वरदान,
जीर्ण कोढ़ को बनाता उपास्य, दिलाता चोरों को सम्मान,
और पदवी, अवलम्ब, सांसदों के बीच स्थान :
यह क्रन्दन करती विधवा को फिर बना देता दुल्हन;
रिसते नासूर और अस्पताल भी भागें जिससे दूर,
कर देता उसे सुरभित, पुष्पित;
पीछे मुड़, अभिशप्त धरती, गणिका सारे जगत की,
कारण राष्ट्रों के युद्धों, वैमनस्य का।
... ... ...
राजाओं का मधुर हत्यारा!
बच्चों से पिता का नाता प्यार से तोड़ता तू,
दम्पति की पवित्र शय्या का दूषणकर्ता,
शूरवीर युद्ध देवता, तू!
चिर तरुण, चिर नूतन,
प्रणय-पात्र, प्रणय-याचक सुकोमल,
डियान की गोदी का पावन हिम
तेरी लज्जारुणिमा से जाता पिघल!
तू प्रत्यक्ष भगवान,
असम्भव है जिन्हें करना संलग्न,
उन्हें देता तू जोड़, बाध्य कर देता
उन्हें लेने को एक दूसरे का चुम्बन !
हर उद्देश्य के लिए, हर भाषा बोलने वाला तू,
ओ हृदय को छूने वाले, ज़रा सोच यह,
दास तेरा करता विद्रोह, तेरे बूते पर
उनमें होता कलह, रक्तपात,
ताकि संसार पर हो जाये हैवानों का राज !
'तिमोन ऑफ़ एथेन्स', अंक 4, दृश्य तीन
कार्ल मार्क्स, '1844 की आर्थिक-दार्शनिक पाण्डुलिपियाँ' में उद्धृत
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