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किसी नारी का बलात्कार ,उसका क्रूरतम उत्पीड़न व दमन है। चिंता की बात है कि ऐसी घटनाएंँ साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं । ' राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो' के अनुसार भारत में हर रोज औसतन 87 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है जिनमें 4 महिलाएंँ अनुसूचित जाति( "दलित") की होती हैं। इसी माह एक महिला मजदूर के साथ दुष्कर्म के मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट यह कहे बिना नहीं रह सका कि " भारत भूमि दुष्कर्मियों की भूमि में बदल गई" है । दरअसल ,शोषक-शासक पूंँजीपति वर्ग नारी को "उत्पादन के एक औजार" एवं "वासना की दासी" व "भोग की वस्तु" समझता है । नारी के प्रति उपरोक्त विचार ही निजी स्वामित्व पर आधारित, इस पुरुष विशेषाधिकारवाले पूंँजीवादी व्यवस्था में प्रभुत्वशील विचार है , जिसका दुष्परिणाम सामान्यता तमाम नारियों को और विशेषकर मजदूर वर्ग की नारियों को झेलना पड़ रहा है।
हाथरस की घटना ने एक पूंँजीवादी राज्य के गुंडागर्दीवाले चरित्र को भी खोल कर रख दिया है। सबको पता है कि गुंडा एक व्यक्तित्व -विघटित व असामाजिक व्यक्ति होता है जो मनमानी, डराने-धमकाने एवं निर्दोष व्यक्तियों पर अत्याचार करके दहशत फैलाता है। उत्तर प्रदेश में यही देखने को मिल रहा है । एक तो बलात्कार की घटना के 72 घंटे की बजाय 11 दिन बाद मेडिकल जांँच की प्रक्रिया शुरू हुई ; दूसरे, 19 वर्षीया युवती की मौत के बाद उसकी लाश परिजनों को नहीं सौंपी गई ,उन्हें घरों में बंद कर ढाई बजे रात में ही पेट्रोल छिड़ककर अपमानजनक ढंग से लाश जला दी गई । मीडिया को भी इजाजत नहीं थी । इसके बाद हाथरस के जिलाधिकारी ने सरकार की ओर से 25 लाख रुपए देने की घोषणा की एवज में मृत लड़की के पिता (पार्ट टाइम सफाई मजदूर) से कहा," मीडिया के सामने ऐसे बोल देना कि अब सब सही है और कोई दबाव नहीं है" ...कि " मीडियावाले तो आजकल में चले जाएंँगे, मैं ही यहांँ रहूंँगा "आदि । बूलगढ़ी गांँव को चारों ओर से पुलिस ने घेर रखा था ताकि मीडिया या कोई व्यक्ति पीड़ित परिवार से न मिल सके । यहांँ तक कि घर में पुलिस जमी बैठी थी और परिवार के लोगों से मोबाइल तक छीन लिए गए थे । यहांँ सवाल उठता है कि दहशत पैदा करनेवाला ऐसा राज्य व्यापक मेहनतकश जनता के भला किस काम का ? मजदूर वर्ग को उत्पीड़न-दमन-अपमान के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपना राज्य कायम करने के लिए लड़ना ही होगा।
इस घटना के सिलसिले में आमजनों के सामने इस बात की फिर से पुष्टि हुई कि यदि किसी साधु या धार्मिक गुरु या महंथ के हाथ में शासन की बागडोर आ जाए तो पूंँजीपति वर्ग के अन्य सेवकों की तुलना में वह और अधिक निर्ममता से जनता की छाती पर मूंग दलने लगता है। चूँकि वह भक्तों को अपना सेवक और अपने को उसका प्रभु समझने का अभ्यस्त होता है ,इसलिए राजनीति में आने पर वह पूंँजीवादी जनवाद व कानून के समक्ष समता की भावना को पैरों तले रौंदता है ।नारियों के गले पर गुलामी का फंदा और अधिक कस जाता है। हमें पता है, अफगानिस्तान में तालिबानी मुल्लों ने आम जनता पर कैसा कहर ढाया था !!
क्रांतिकारी मजदूर वर्ग "पूंँजीपति वर्ग और उसके राज्य का गुलाम" है लेकिन उसी के कंधे पर इतिहास ने यह कार्यभार सौंपा है कि पूंँजीपति वर्ग को सत्ता से उखाड़ फेंके । निजी स्वामित्व को समाप्त कर , वह शोषण- दमन के तमाम रूपों का खात्मा करे और सदियों से चली आ रही नारियों की दोहरी गुलामी की बेड़ियों को तोड़ डाले। कहना न होगा कि नारी- मुक्ति का सवाल मजदूर वर्ग के आंदोलन के उत्थान के साथ जुड़ा हुआ है । परजीवी पूंँजीपति वर्ग और उसकी पार्टियांँ यह नहीं चाहते कि अपनी आजीविका हेतु श्रम शक्ति बेचनेवाले तमाम मजदूर एक वर्ग में संगठित होकर अपनी स्वतंत्र राजनीति करे; यही कारण है कि मजदूर वर्ग को धर्म, जाति आदि जैसे प्रतिक्रियावादी आधारों पर लगातार विभाजित करने की कोशिशें की जाती हैं । पूंँजीवादी -प्रतिक्रियावादी विचारों व राजनीति का दुष्परिणाम यह हो रहा है कि कठुआ (जम्मू )में 8 साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में उसके मुसलमान होने के पहलू को प्रधानता देने , उछालने और बलात्कारियों के हिंदू होने को प्रधानता देने के चलते बलात्कारियों के पक्ष में धार्मिक प्रतिक्रियावादी शक्तियांँ गोलबंद होकर सड़क पर उतर आईं। आज बूलगढ़ी ( हाथरस)की घटना में पूंँजीवादी पार्टियों व जातिवादी संगठनों द्वारा बलात्कृत लड़की के "दलित "होने को प्रधानता देने, मुख्य पहलू बताने के सिलसिले में बलात्कारियों के पक्ष में "12 गांँव के सवर्णों की पंचायत" होने एवं 'अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा' द्वारा बलात्कार का आरोप हटाने को लेकर गांँव के बाहर प्रदर्शन की खबरें आ रही हैैं । पूँजीवादी समाज में बलात्कार जैसे जघन्य कुकृत्य व बहुत बड़ी समस्या पर एक "जाति "या" जाति समूह "के विरुद्ध दूसरी" जाति" या "जाति समूह" के खड़े होने से मरणासन्न पूंँजीवादी व्यवस्था ,मानव द्रोही शासक वर्ग व उसका राज्य छिप जाता है। मजदूर वर्ग द्वारा शासक पूंँजीपति वर्ग को कटघरे में खड़े करने के अभियान को भारी धक्का पहुंँचता है, जब मजदूर वर्ग के पिछड़े हिस्से धर्म या जाति के आधार पर पूंँजीपतियों के पीछे गोलबंद हो जाते हैं।
यदि उत्पादन- संबंधों या संपत्ति संबंधों की बात की जाए तो पूंँजीवादी संबंध ही प्रभुत्वशील नजर आएगा और इसलिए जिस समाज में हम रह रहे हैं ,उसे पूंँजीवादी समाज कहते हैं। साम्यवाद ( कम्युनिज्म ) का क,ख,ग जाननेवाला भी यह मानता है कि पूंँजीवादी समाज की यह विशेषता है कि वह अधिकाधिक मुख्यत: दो विरोधी वर्गों-- पूंँजीपति वर्ग और सर्वहारा वर्ग-- में बँटता जाता है एवं वर्गीय शोषण -उत्पीड़न -दमन सर्वप्रमुख -सर्वव्यापक स्थान ग्रहण कर लेता है ।लेकिन,शासक पूंँजीपति वर्ग ,उसके विचारक व राजनीतिज्ञ धनी -गरीब की मौजूदगी को स्वीकारते हुए भी उपरोक्त विज्ञानसम्मत वर्गीय विभाजन को नहीं मानते और धर्म व जाति जैसे प्रतिक्रियावादी आधारों पर समाज को हिंदू- मुसलमान ,आदि में तथा "अगड़ा" ," पिछड़ा" ," दलित", "आदिवासी "आदि में बाँटकर वर्गीय शोषण-दमन पर पर्दा डालना चाहते हैं । समस्या है कि कम्युनिस्ट नामधारी अवसरवादी पार्टियांँ जो संसदीय लोकतंत्र यानी पूंँजीवादी लोकतंत्र का महिमामंडन करती हैं ,शोषक वर्ग की खास पार्टियों का पिछलग्गू बन उनके सुर में सुर मिलाती नजर आती हैं। ऐसी कम्युनिस्ट पार्टियांँ व संगठन जो वर्तमान समाज को पूंँजीवादी समाज के रूप में नहीं देखते यानी आधुनिक वर्ग- विभाजन से सहमति नहीं रखते ,वे जाने-अनजाने शोषक- शासक पूंँजीपति वर्ग द्वारा किए गए प्रतिक्रियावादी विभाजन को मजबूती प्रदान कर बैठते हैं । इसके अलावे ऐसे भी कम्युनिस्ट संगठन हैं जो पूँजीपति वर्ग व उसके अमले-जमले द्वारा धर्म व धार्मिक उत्पीड़न, जाति व जातिगत उत्पीड़न के संबंध में लगातार व जोरदार ढंग से फैलाए जा रहे पूँजीवादी विचारों से भ्रमित हो जाते हैं, क्रांतिकारी सिद्धांत में विश्वास खोने लगते हैं और परिणामस्वरूप वर्ग के साथ जाति, वर्गीय संघर्ष के साथ विजातीय संघर्ष( गैर वर्गीय संघर्ष ) की खिचड़ी पकाने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में मजदूर वर्ग की एक अखिल भारतीय क्रांतिकारी पार्टी जरूरी है जो क्रांतिकारी सिद्धांतों पर दृढ़ रहते हुए पूंँजीपति वर्ग का भंडाफोड़ करे एवं मजदूर -विरोधी विचारों का भंडाफोड़ करते हुए मजदूर वर्ग के मुक्ति- आंदोलन को सही दिशा में नेतृत्व दे।
जयप्रकाश ललन
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