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Saturday, 29 October 2022

तुलसीदास

तुलसीदास जी के पहले उसी काशी में कबीर और रैदास का प्रादुर्भाव हो चुका था और इन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर बहुत गहरे रूप से सांस्कृतिक आघात किया था |संत आंदोलन भी पूरे भारत में जन चेतना को प्रभावित कर रहा था और एक समानांतर सांस्कृतिक बोध भी रच रहा था |ब्राह्मणवादी नाव में सुराख हो रहा था सूक्ष्म ही क्यों न सही |तुलसीदास की एक प्रमुख चिंता यह भी थी जिसे उन्होंने इस तरह से व्यक्त किया है

बाजहिं शूद्र द्विजन संग, आंख देखावहिं डाटि 
ब्रह्म सो जानइ विप्रवर हम तुमते कछु घाटि 

अर्थात शूद्र अब तर्क और वितर्क करने लगे हैं इसके साथ ही आंख दिखाकर डांट भी देते हैं ब्राह्मणों को |और यह तर्क देते हैं कि जो ब्रह्म को जानता है वही ब्राह्मण होता है |जन्मना ब्राह्मण की पूरी चिंतन प्रक्रिया को एक चुनौती देते हैं |कहीं ना कहीं ब्राह्मणवादी चिंतन पर प्रहार हो रहा था |यह नहीं कहा जा सकता की ब्राह्मणवादी परंपरा नष्ट हो गई थी लेकिन उसके सांस्कृतिक स्वरूप पर पत्थर जरूर मारे जा रहे थे दीवालें कुछ-कुछ चरमराने लगी थी | उनकी बहुत बड़ी चिंता थी कि शूद्र उनके बराबर आने लगा है और उन्हें आंख दिखाकर डाट रहा है उनके साथ अपनी तर्कणा प्रस्तुत कर रहा है | सांस्कृतिक रूप से ब्राह्मणवाद दरक तो कहीं जरूर रहा था |इसलिए तुलसी जी को यह बात कहनी पड़ी| इसीलिए ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक चेतना के चिर स्थायित्व एवं पुनर्यौवनीकरण के लिए तुलसीदास ने भरसक कोशिश किया और काफी हद तक उन्होंने सफलता भी पाई | पुनर्स्थापित का अर्थ है यहां नहीं कि ब्राह्मणवाद समूल नष्ट हो गया था लेकिन उस पर जो प्रश्न उठाए जा रहे थे जो शूद्र उसके विरुद्ध खड़े हो रहे थे उन प्रश्नों को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी 
|अगर ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर प्रश्न ना उठता तो उपरोक्त पंक्तियां उन्हें कहने की जरूरत नहीं पड़ती | जब कबीर कहते हैं तू काशी का बाभना मैं काशी का जुलाहा पूछ ले मेरा गियाना | इस चुनौती के लिए तुलसीदास के कंधों पर प्रति उत्तर देने की जवाबदारी भी थी| तुलसीदास के लिए ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि जो उन्हें अवतार रचने की जरूरत पड़ी |साधारण व्यक्ति की भी कहानी वह गा सकते थे | मीरा जहां कृष्ण का मानवीकरण कर उन्हें अपना दूल्हा बना लेती हैं और तुलसी दास राम का दैवी करण करके अवतार बताते हैं |
जबकि वाल्मीकि ने राम को ईश्वर या अवतार नहीं बताया है |तो यह उनकी जो समस्या थी उनके वर्ण की समस्या थी उनके वर्ग की समस्या थी |जिसे हल करने के लिए उन्होंने भली-भांति कोशिश की | तुलसीदास ने जिनके लिए लिखा था वह मुदित हो लेकिन जिनके विरुद्ध लिखा था वह क्यों मुदित हो भाई |वह तो अपना प्रतिनिधित्व कबीर और रैदास में ही खोजेंगे | कबीर और रैदास के द्वारा घायल ब्राह्मणवाद का उन्होंने मरहम पट्टी की और फिर से  फीके पड़ते ब्राह्मणवाद को सांस्कृतिक मंच के केंद्र बिंदु में लाने की कोशिश की | या इसे यूं कह सकते हैं कितुलसीदास ने ब्राह्मणवाद की फीकी पड़ती दीवालों को फिर से नया रंग रोगन दिया |
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Julmiram Singh Yadav




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