दिवंगत कॉमरेड अरविंद सिंह के नाम पर एक ट्रस्ट बना था, जिसमें बतौर ट्रस्टी मेरा भी नाम था। लेकिन, अब मैं खुद को धतकरमी लाला शशिप्रकाश के गिरोह से किसी भी प्रकार से सम्बद्ध नहीं पाता तो क्या ही बेहतर होगा कि ट्रस्टीशिप से मुझे अलग कर दिया जाए। लाला शशिप्रकाश ने अपनी इकटंगड़ी, गिरि-लंघी औलाद की खिदमत के लिए जांबियों की फौज तैयार की है, जो मेरी तरह साधारण मनुष्य थे सब भाग खड़े हुए और जो सत्यम वर्मा की तरह के जांबी थे सब मज़बूती से लाला की इकलौती औलाद की चड्ढी धो रहे हैं। पैसा कमाने के लिए लाला-गिरोह अगर गाँजा बेचता, पेडलर-सप्लायर का काम करता तो शायद फिर भी क्षम्य होता लेकिन मार्क्सवाद को बेचकर जलेबी खाने के हुनर को तो हिकारत की नज़र से ही देखा जाएगा।
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